महामति चाणक्य ने कहा है कि दुष्ट लोग मन की दुष्टता को छुपाए रखते हैं और केवल जीभ से अच्छी बातें करते हैं। मन से परपीड़न आदि के उपाय सोचते हैं और वाणी से परोपकार, देश-सेवा, साधुता आदि का बखान करते हैं। भारत के पड़ोस में एक ऐसा ही व्यक्ति परवेज मुशर्रफ के नाम से जाना जाता है। अब से छह वर्ष पूर्व इस व्यक्ति ने अपने देश में भेष बदलकर (राष्ट्रपति के रूप में सैनिक तानाशाह) अपने यहां के कई जजों को बर्खास्त कर दिया था। परिस्थितियों ने करवट ली और एक तानाशाह के साथ वही हुआ जो हुआ करता है, परवेज को दुबई में जाकर दुबकना पड़ा। अब पाकिस्तान में चुनाव हो रहे हैं, तो परवेज के भीतर सत्ता का लालच उमड़ने लगा इसलिए ‘देश सेवा और साधुता’ का उपदेश देते हुए अपने देश आने की योजना बनाई। उधर इस ‘साधु’ के दंशों से जख्मी सत्ताधारी लोग और न्यायपालिका के जजों की भौहें तन गयीं। इसलिए ‘दुष्टता’ के बदले लेने की योजनाएं पाकिस्तानी सियासती गलियों में बनने लगीं। स्थिति यहां तक पहुंची कि परवेज मुशर्रफ को चुनाव के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया और छह जजों की बर्खास्तगी को अलोकतांत्रिक मानते हुए अब उनके फार्म हाउस को ही उनके लिए जेल घोषित कर दिया गया है। जिन न्यायाधीशों के सामने परवेज मुशर्रफ को अपमान की अनुभूति हो रही थी उन्होंने ही पाकिस्तान के पूर्व सैनिक तानाशाह को भरे न्यायालय में फटकार लगायी। इस प्रकार मुर्शरफ ने फिर पाकिस्तानी इतिहास में एक पन्ना और जोड़ दिया है, क्योंकि ऐसा व्यवहार और न्यायिक कार्यवाही पाकिस्तान में किसी भी पूर्व सेना प्रमुख के खिलाफ नही हुई है। राजनीति में जब व्यक्ति का अचानक उत्थान होता है तो कुछ लोगों का उसे और कुछ लोगों को उसका साथ लेना पड़ता है। फिर जैसे ही स्वार्थ निकल जाता है और एक दूसरे के स्वार्थ पूर्ण हो जाते हैं तो दोनों एक दूसरे को छोड़ देते हैं। पाकिस्तान में मुशर्रफ ने जब एक लोकतांत्रिक सरकार का तख्तापलट किया था तो उस समय उसका आका अमेरिका बना था। परवेज ने भी अमेरिका को सारी सुविधाएं देने में कमी नही छोड़ी क्योंकि उसे पता था कि यदि अमेरिका का साथ छोड़ दिया तो क्या हो सकता है? अमेरिका ने परवेज मुशर्रफ से जितना काम लेना था वह ले लिया इसे मुशर्रफ भलीभांति जानता था, इसलिए उसने सत्ता को बिना हील हुज्जत के छोड़ दिया और इसे ‘दिन का फेर’ समझकर दुबई में जा दुबका। पर अब फिर जी ललचाया और बेचारा अपने आप ही पिंजड़े में आ फंसा। जिस फार्म हाउस को शांति के लिए बनाया था अब वही फार्म हाउस उसके लिए यातना केन्द्र बन गया है। मुशर्रफ को अपने कर्मों का फल मिल गया है। हमारे वीर सैनिकों ने कारगिल में इस दुष्ट की दुष्टता का सामना किया था और अपना बलिदान देकर भी इसकी दुष्टता को सफल नही होने दिया था, अपने बलिदानियों का ऋणी यह राष्ट्र आज उनके बलिदान को उस समय और भी अधिक श्रद्घा से स्मरण कर रहा है जब उस बलिदान के षडयंत्रकर्ता को दण्डित होते देख रहा है। आगरा का ‘ताज’ जो अपने कवि हृदय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और कुटिल हृदयी मुशर्रफ की वार्ता का साक्षी बना था भी आज उन क्षणों को याद कर रहा है जब एक कवि हृदयी लोकतांत्रिक प्रधानमंत्री को कुटिल हृदयी सैनिक तानाशाह ने कष्ट पहुंचाया था और हमारे प्रधानमंत्री की शांति की पहल का मजाक उड़ाकर स्वदेश लौट गया था। सचमुच कुटिलताएं कैसे परास्त होती हैं, ये आज मुशर्रफ को देखने से ज्ञात होता है, जिसका फार्म हाउस आज लोगों के लिए घृणा का कारण बन गया है, जबकि भारत के कवि हृदयी पीएम अटल बिहारी वाजपेयी का निवास स्थान पूरे देश के लिए ‘मंदिर’ की हैसियत रखता है, मुशर्रफ के घर से भी आज लोगों को बदबू आ रही है जबकि अटल जी के आवास से खुशबू आ रही है। इसे ही हमारे धर्मग्रंथों ने नरक और स्वर्ग की पहचान बताया है। पाप और पुण्य का फल बताया है। मुशर्रफ को अपना पाप फल मिल रहा है। न्यायचक्र में पिसते एक दुष्टï को देखते हुए हमें हंसना नही चाहिए अपितु ईश्वर के न्यायचक्र के सामने नतमस्तक होना चाहिए।
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।