ओ३म्
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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अकेला रहकर जीवनयापन नहीं कर सकता। उसे समान विचारों तथा अपने शुभचिन्तकों की आवश्यकता होती है जो उसकी चिन्ता करें, उससे प्रेम करें व उससे स्नेह करें। ऐसे वातावरण में ही मनुष्य सुरक्षित रह सकता है। आज के संसार की विडम्बना यह है कि ज्ञान व विज्ञान बढ़ जाने पर भी संसार में सत्य व असत्य के आधार पर सत्य विचारधारा व सत्य धर्म का अस्तित्व स्वीकार नहीं किया गया है। सभी मत-मतान्तर, जो अविद्या से युक्त हैं, जिनकी अविद्या का अनावरण ऋषि दयानन्द ने अपने अमर ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश में किया है, वह भी स्वयं को सत्य धर्म ही मानते हैं। इतना ही नहीं कुछ मत तो अपने मत का प्रचार कर उसे येन-केन प्रकारेण सबसे मनवाना भी चाहते हैं। इसी विचारधारा ने भारत के अधिकांश लोगों को अपने पूर्वजों की सत्य वैदिक विचारधारा से दूर कर उन्हें अविद्यायुक्त जीवन जीने पर विवश किया है। आज भी सत्य को केन्द्र में रखकर संसार के मत-मतान्तर परस्पर प्रेम एवं सौहार्दपूर्वक संवाद नहीं करते जिसका परिणाम यह होता है कि सत्य का ग्रहण और असत्य का त्याग नहीं हो पाता। सभी अपनी अपनी ढफली अपना अपना राग के समान व्यवहार करते हुए दृष्टिगोचर होते हैं जिसमें हमारे आर्यावर्तीय वा भारत देश के मत-मतान्तर भी सम्मिलित है। विवेक के आधार पर देखा जाये तो बिना विचार किये किसी विचार व विचारधारा को ग्रहण करना व उसे अपनाना उचित नहीं कहा जा सकता। परमात्मा ने मनुष्य को बुद्धि किस लिये दी है? इसलिये नहीं कि किसी विचार व विचारधारा को नेत्र मूंद कर बिना सत्यासत्य की परीक्षा किये माना जाये। बुद्धि इसलिये दी गई है कि हम प्रत्येक विचार व सिद्धान्त की परीक्षा कर उसे सत्य होने पर ही स्वीकार करें। ऐसा करने पर ही विश्व में सुख व शान्ति तथा संसार के सभी लोगों को सुख प्राप्त हो सकता है। ऐसा न होने पर वही होगा जो मध्यकाल से आज तक होता आया है जिसमें युद्ध व हिंसा के द्वारा एक-दूसरे देश पर कब्जा और ऐसी अनेक बातें सम्मिलित हैं।
संसार के मत-मतान्तरों ने असंगठित भोलेभाले लोगों का जीवन असुरक्षित कर दिया है। विधमी उन्हें अपने मत में येन केन प्रकारेण सम्मिलित करना चाहते हैं। इसके लिये भय, लोभ व छल आदि अनेक प्रकार के साधनों का प्रयोग किया जाता है। अतः सत्य प्रिय लोगों को सुरक्षित रखने का प्रथम महत्वपूर्ण उपाय यही होता है कि वह स्वाध्यायशील बने। सत्य ग्रन्थों वेद व सत्यार्थप्रकाश आदि का नित्य प्रति स्वाध्याय व अध्ययन करें। सज्जन पुरुषों की सगति करें। आपस में मिलकर सगठित रहे। अपने विवादों व समस्याओं को परस्पर मिलकर शान्तिपूर्वक सुलझायें। अपने अन्धविश्वासों व वेद विरोधी अव्यवहारिक सामाजिक कुरीतियों को दूर करें। राम व कृष्ण को मानने वाले निर्धन व दुर्बल लोगों की उन्नति व सुख के लिये सेवा व दान के द्वारा उनके जीवन को सुरक्षित व सुखी करने का प्रयत्न करें। समाज में यह काम नहीं हो रहे हैं इसीलिये आर्य व हिन्दू सामाजिक व संगठन की दृष्टि से निर्बल व कमजोर हैं। निहित स्वार्थों व महत्वाकांक्षी लोग अपनी बुरी दृष्टि इन लोगों पर रखते हैं और इन्हें अनेक प्रकार से पीड़ा देते हैं। ऐसे लोग देश व समाज सभी के लिये हानिकारक होते हैं। वह देशहित की भी परवाह नहीं करते। उन्हें कुछ स्वार्थी राजनीतिक दलों से समर्थन व सहयोग मिलता है।
भारत में सामाजिक व राजनीतिक स्थिति है वह संसार के अन्य देशों में नहीं है। अमेरिका, रुस, चीन, फ्रांस, जर्मनी, इजराइल आदि देशों में हमारे देश के समान स्वार्थ व वोटबैक की राजनीति कर लोगों को आपस में बांटा नहीं जाता। किसी वर्ग विशेष की हिंसात्मक एवं अन्य सम्प्रदायों के विरुद्ध विचारों को संरक्षण नहीं दिया जाता। वहां अल्पसंख्यकवाद का कृत्रिम सिद्धान्त नहीं पाया जाता है। वहां के सभी नियम व कानून देश व समाज हित में मत-सम्प्रदाय व धर्म से ऊपर उठकर निर्धारित किये जाते हैं जिसे समान आचार-संहिता कह सकते हैं। यही कारण है कि उन देशों में उन्नति हो रही है। वहां के सभी लोग हमारे देश से अधिक सुखी व सुरक्षित है। भारत इन देशों से कहीं पीछे हैं। सौभाग्य से भारत की वर्तमान सरकार निष्पक्ष एवं देशहित को महत्व देने वाली सरकार है परन्तु उसके मार्ग में भी अनेक प्रकार के अवरोध खड़े किये जाते हैं जिससे वह जितना अधिक काम कर सकती है, नहीं कर पाती। देश की युवा पीढ़ी पर ही भरोसा किया जा सकता है। वह राजनीतिक दलों के विचारों व क्रियाकलापों पर दृष्टि रखते हुए समय आने पर अपना सही निर्णय करे, तभी देश उन्नति के पथ पर अग्रसर रहकर अपने सभी नागरिकों को सुरक्षा व सुख के साधन उपलब्ध करा सकता है। भविष्य क्या होगा, कहा नहीं जा सकता। स्थिति यह है कि हम महाभारत युद्ध के बाद से अवनत व असुरक्षित होते जा रहे हैं। कारण यही है कि हमने सत्य का ग्रहण और असत्य का त्याग करना छोड़ दिया है। हम संगठन के महत्व को भूल गये। हमने अपने ही भाईयों के साथ निष्पक्षता व न्याय का व्यवहार नहीं किया। यदि न्यायपूर्वक व्यवहार किया होता तो आज हमारा समाज विश्व का सबसे संगठित एवं आदर्श समाज होता। अभी भी देर नहीं हुई है। यदि हम अब न सम्भले और हमने वेद के विचारों व सिद्धान्तों को न अपनाया तो भविष्य में हमे शायद सुधरने का अवसर भी नहीं मिलेगा। इतिहास में इसके उदाहरण मिल जायेंगे। सबसे उत्तम विचारधारा वही होती है जो पूर्ण सत्य पर आधारित व सत्य को समाहित किये हुए हो। हमें इसका ध्यान रखते हुए वेद, उपनिषद, दर्शन, विशुद्ध-मनुस्मृति, सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका आदि ग्रन्थों से प्रेरणा लेनी होगी। ऐसा करने पर ही हमारा अर्थात् समस्त हिन्दू वा आर्य जाति का कल्याण हो सकता है। अन्य कोई मार्ग दिखाई नहीं देता है।
हम इस लेख में अपनी जाति की सुरक्षा के उपायों की चर्चा करना चाहते हैं। हमारेे देश में अनेक मत व सम्प्रदायों को मानने वाले लोग हैं। देश का सबसे बड़ा वर्ग हिन्दुओं का है जिनकी जनसंख्या लगभग 100 करोड़ बताई जाती है। यह सब वेद और ईश्वर को मानते हैं। यह भी बता दें कि पुराणों में वेदों की प्रशंसा है और बहुत से वैदिक काल के ऐतिहासिक तथ्यों का समावेश भी हैं। पुराणों में अनेक ऋषि व मुनियों के नाम आते हैं जो वेद को ईश्वर के बाद सबसे अधिक महत्व देते थे। ऋषि दयानन्द भी उन सभी ऋषि मुनियों सहित ईश्वर व वेद के प्रतिनिधि थे। इन सब वेदानुयायियों की रक्षा कैसे हो यह विचारणीय है। इनको खतरा किससे है? इसका उत्तर यह है कि जिन लोगों ने विगत 1200 वर्षों से निर्दोष हिन्दुओं पर अत्याचार, आक्रमण, उत्पीड़न, जुल्म, हत्या, भय, छल व लोभ से धर्मान्तरण, स्त्रियों का अपमान किया है, उस विचारधारा के बढ़ते प्रभाव व आक्रामकता से है। हिन्दू 1 या 2 बच्चे पैदा करते हैं। अधिक उम्र में विवाह करते हैं। बहुत से कंुवारे ही रहते हैं। बहुत से साधु बनकर विवाह ही नहीं करते। इस कारण हिन्दुओं की जनसंख्या वृद्धि की दर कुछ मतों व सम्प्रदायों से बहुत कम है। दूसरे जनसंख्या वृद्धि को वरदान मानते हैं और उसमें किसी प्रकार की रोक व हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करते। उसके पीछे के निहित कारण भी जाने व समझे जा सकते हैं जो इस विषय के विशेषज्ञों की पुस्तकों, लेखों व व्याख्यानों से जाने जा सकते हैं। अतीत में भारत से अनेक देश अलग हुए हैं। पाकिस्तान व बंगलादेश तो हमारे माता-पिता व हमारे अनेक मित्रों की आंखों के सामने बने। वह सब बताते हैं कि इसके पीछे क्या भाव व विचार थे और क्या योजनायें कार्यरत थी। अतः जनसंख्या वृद्धि भारत में ईश्वर व वेद को मानने वाली धार्मिक जनता व संस्कृति को प्रमुख चुनौती व खतरा है। बढ़ती जनसंख्या ने देश के सामने अनेक चुनौतियां उत्पन्न की हैं।
जनसंख्या वृद्धि पव असन्तुलन से हमारे देश के गरीब और गरीब हो रहे हैं और अन्य लोग इससे अनेक प्रकार से लाभ भी उठा रहे हैं। हमें जनसंख्या नियंत्रण की नीति बनाने की सरकार से मांग करनी है व उसके लिये सम्भव उपाय करने हैं। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें ईश्वर व वेद को मानने वाले सब लोगों को संगठित करना है जिससे हम आन्तरिक व बाह्य अशान्ति के अवसर पर अपनी रक्षा करने में समर्थ हो सके। यदि ऐसा नहीं करेंगे तो न तो परमात्मा, न सरकार और न ही हमारे देवी देवता व अन्य कोई हमें बचा सकता है। सोमनाथ मन्दिर के लूट व पतन में मन्दिर के पुजारी व शिवभक्तों सहित हमारी पुलिस व सेना को भी अकारण लूट के इरादों से मार दिया गया था। माताओं व बहिनों का अपमान किया गया था। ऐसी स्थिति पुनः न आये, इसका हमें प्रबन्ध करना है। हमें नहीं पता कि हिन्दू समाज इसके लिये तैयार होगा या नहीं? होगा तो अच्छा है, इससे उन्हीं व उनकी सन्ततियों की रक्षा होगी। यदि नहीं होगा तो विनाश होना सम्भावित है। इसके साथ ही हमें अपने सभी अन्धविश्वासों व सामाजिक कुरीतियों का सुधार भी करना होगा और इसके लिये ऋषि दयानन्द ने वेदों के आधार पर जो मार्ग बताया है, इसका अनुसरण करना होगा। सूत्र रूप में सत्य का ग्रहण, असत्य का त्याग, अविद्या का नाश तथा विद्या की वृद्धि, वेदों का प्रचार व वेद विरोधियों को शास्त्रार्थ तथा वार्तालाप की चुनौती आदि का प्रयोग करना होगा। यही हमारे सात्विक व शान्तिपूर्ण अस्त्र हो सकते हैं। हमें साम्प्रदायिक हिंसा में शहीद व घायल अपने बन्धुओं को भी अपनी श्रद्धा अर्पित करनी चाहिये और उनके परिवारों के साथ खड़ा होना चाहिये। दूसरों की तुलना में हमारी जनसंख्या कम न हो, इस पर विद्वानों व धार्मिक नेताओं को विचार करना चाहिये। हम विद्वानों से भी इस विषय में परामर्श देने की अपील करते हैं। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य