पशु प्रवृत्ति चर रहीं,
जीवन रूपी खेत।
चंदन कोयला बन रहा,
चेत सके तो चेत॥1255॥
व्याख्या:- चंदन के वृक्ष की यह विशेषता है कि वह जहां उगता है, वहां के आस-पास के वृक्षों में भी अपनी जैसी खुशबू पैदा कर देता है। चंदन की नायाब खुशबू के कारण चंदन की लकड़ी बड़ी महँगी बिकती है।कल्पना कीजिए यदि कोई व्यक्ति चंदन की लकड़ी के कोयला बनाकर बेचे, तो क्या वे कोयले चंदन की लकड़ी की तरह महँगे बिकेंगे ? ठीक यही अवस्था मानव जीवन की होती है, जब पाशविक प्रवृत्ति उसे दीमक की तरह चट कर जाती है।
मानव- जीवन एक सीढ़ी की तरह है,जो ऊध्र्व मुखी भी है और अधोमुखी भी है।यदि यह ऊधर्वमुखी हो जाय, तो देवत्व को प्राप्त होता है, भागवत्ता को प्राप्त होता है। और यदि यह मानव- जीवन अधोमुखी हो जाये, तो दानवता को प्राप्त होता है, पशुता को प्राप्त होता है। यह पाशविक प्रवृत्ति बड़ी खतरनाक होती है, आत्मघाती होती है। इनका शमन करने के लिए लोग नेपाल मे बने पशुपतिनाथ मंदिर में प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु ! हमें पशु प्रवृत्तियों से सदैव दूर रखना, इनका उन्मूलन करना।इस संदर्भ में,वेद मैं भी आता है – हे मनुष्य ! तेरी सोने जैसी खेती को छः पशु खा रहे हैं।यदि तू अपना उत्थान चाहता है, तो इन पशुओं से अपनी रक्षा कर।लोगों ने वेद का वास्तविक आश्य तो समझा नहीं और यज्ञ में पशुओं की बलि देने लगे।अज्ञान और अंधविश्वास के कारण अर्थ का अनर्थ कर दिया जबकि वास्तविक अर्थ अथवा आश्य वेद का यह था कि- हे मनुष्य! तेरे सोने जैसे बहुमूल्य जीवन को पाशविक प्रवृत्ति नष्ट कर रही है ,इसे उजाड़ रही है, तू इनसे से अपनी रक्षा कर।
इसलिए वेद कहता:- मनुर्भव जनया दैव्यं जनम।
(ऋग्वेद 10/53/6)
अर्थात् मनुष्य बन और देवजन पैदा करI मनुष्य को मनुष्यता की सारी सामग्री मानवीय समाज से मिलती है। अतः उसे चाहिए कि वह भी समाज को कुछ देकर जाये। ऐसी संताने पैदा करें जिनमें मनुष्यता हो, जो देवत्व को प्राप्त हो। ‘ दैव्यं ‘ अर्थात देव हितकारी जन को कौन पैदा करेगा? बड़ा जटिल प्रश्न है। क्या राक्षस,दस्यु पैदा करेंगे ? कभी नही। अतःदेवजन हितकारी सन्तान उत्पन्न करने के लिए मनुष्य को स्वयं ‘देव’ बनना पड़ेगा और छः पाशविक प्रवृत्तियों का शमन करना पड़ेगा। जो तेरे जीवन की सोने जैसी खेती को चर रही है। ये पाशविक प्रवृत्ति छ: है,जो निम्नलिखित है:-
1- काक प्रवृत्ति प्रवृत्ति:-
काक प्रवृत्ति जिस व्यक्ति की होती है,वह बनते काम को बिगाड़ देता है। जैसे – बेशक आप गाय का ताजा दूध बाल्टी भर कर निकाल कर लायें और आंगन मे रख दें। कौआ नज़र बचाते ही उसमें अपनी गन्दी चोंच मारकर, उस अमृत जैसे दूध को जहर बना देता है। ठीक इसी प्रकार के लोग समाज में भी होते हैं। आफिस में भी ऐसे लोग होते हैं,जो अपने अधिकारी को चुगली की चोंच मारकर किसी का कल्याण करने के लिए गुमरहा कर देते हैं और अधिकारी फाइल पर हस्ताक्षर करते-करते पीछे हट जाता है। कुछ लोग हैं – जो विवाह-शादी के समय चुगली की चोंच मारकर बने- बनाये काम को गुड़-गोबर कर देते हैं।अंग्रेजी में इसे-
To have a crow to pluck (to find fault with)
अर्थात् दोष निकालना कहते हैं। ऐसे मनुष्यों को ही लोग चुगलखोर,निन्दक,छिद्रान्वेषी भी कहते है। यहां तक कि दु:खी दिल से उसे कौआ भी कहते हैं। इतिहास में देखे तो,मन्थरा और शकुनि इसी श्रेणी में आते हैं।आज भी ऐसे लोगों की समाज में भरमार है किंतु रखो,मनुष्य का उत्थान किसी की चढ़ती बेल काटने से नहीं अपितु अमुक बेल को चढ़ाने और सीचने से होता है। अतः काक प्रवृत्ति का सर्वदा शमन करें।
2- हंस प्रवृत्ति:- हंस देखने में बहुत सुंदर होता है किंतु कामुक बहुत होता है। सारा जीवन कामवासना में जीता है।ठीक इसी तरह के मनुष्य इस संसार में बहुत अधिक है,जो अपना सारा जीवन काम वासना में लिप्त होकर अपने चेहरे के अोज और तेज को अपने ही हाथों नष्ट करते है। जिसका दुष्परिणाम यह होता है कि उनके सोने जैसे स्वास्थ्य के कोयले बनने लगते हैं। ऐसा व्यक्ति अपनी सेहत को तो नष्ट करता ही है साथ ही आयु घट जाती है,प्राणशक्ति घट जाती है। अतः मनुष्य को इस पाशविक प्रवृत्ति पर भी नियंत्रण रखना चाहिए।
3- गरुड़ प्रवृत्ति:- गरुड़ प्रवृत्ति को गिद्ध प्रवृत्ति भी कहते हैं। गरुण ऐसा पक्षी है,जो बड़ी ऊंची और लंबी उड़ान भरता है। इसलिए उसे अपने पंखों पर बड़ा घमंड होता है। इस घमंड के कारण वह अन्य पक्षियों को हेय और अपने आप को श्रेष्ठ समझता है। उसका यह अहंकार जब टूटता है,जब वह किसी वायु यान से टकराता है। तत्क्षण वह स्वयं भी मरता है और वायुयान भी दुर्घटनाग्रस्त होता है। अतः मनुष्य को गरुड की तरह अंहकारी नही होना चाहिए। अंहकार मनुष्य का सर्वनाश करा देता है। इस संदर्भ में कवि कहता है :-
अहंकार में तीनों गए, धन वैभव और वंश।
ना मानो तो देख लो, रावण कौरव कंस॥
गरुड़ अथवा गिद्ध जहां अंहकारी होता है,वहां उसमें एक मुख्य दोष यह भी होता है कि वह अतिलुब्ध होता है,अपहारी होता है अर्थात् बहुत अधिक लालची होता है। परमपिता परमात्मा ने इस वसुंधरा पर अन्न-औषधि, अनेकों प्रकार के व्यंजन और मिष्ठान बनाये हैं।मनमोहक फल, फूल और सुंदर बाग बगीचे,पहाड़ों की दिलकश और रमणीक वादियां बनाई है,किंतु आनन्त आकाश में उड़ता हुआ गिद्ध जिसे(Eagle eyed) यानि कि sharp sighted अर्थात् सुदूरदर्शी सूक्ष्मदर्शी भी कहते हैं।ऐसा उसे उसकी पैनी नजर के कारण कहते हैं किंतु उसकी तेज निगाह वसुंधरा की सुंदरतम वस्तुओं पर नहीं टिकती है। वह तो इतनी ऊंचाई पर पहुंचने पर भी उसकी नजर तो मरे हुए और सड़े हुए पशु पर टिकती है। ठीक इसी प्रकार कुछ लोग ऐसे होते हैं जो जीवन में ऊंचे-ऊंचे पद और प्रतिष्ठा को तो प्राप्त कर लेते हैं किंतु उनकी दृष्टि गिद्ध की तरह लालची होती है जिसके वशीभूत होकर वे रिश्वत लेते हैं,देश में बड़े-बड़े घोटाले करते हैं।अतीत के गड़े मुर्दे उखाड़ते हैं और खुंदक निकालते हैं,बदले की भावना से ग्रस्त रहते हैं। बड़प्पन पाने पर भी नजर और नीयत उनकी गिद्ध जैसी रहती है जबकि बड़प्पन पाने पर मनुष्य को क्षमाशील और उदार होना चाहिए और गिद्ध प्रवृत्ति से बचना चाहिए।
प्रोफेसर विजेंद्र सिंह आर्य
मुख्य संरक्षक : उगता भारत