वैदिक संपत्ति : दक्षिण एशिया के विषय में
दक्षिणी एशिया पर कुछ लिखने के पूर्व दक्षिण भारत में आबाद द्रविड़ जाति की उत्पत्ति का विवरण विस्तारपूर्वक हो जाना चाहिए। क्योंकि पाश्चात्यों और उनके द्वारा शिक्षा पाए हुए कतिपय एतद्देशीय विद्वानों का मत है कि भारतवर्ष के मूल निवासी कोल और द्रविड़ ही है। आर्य लोग तो यहां कहीं बाहर से आकर आबाद हुए हैं। यहां के स्वामी कोल और द्रविड़ ही थे,पर आर्यों ने यहाँ आकर उनको यद्धों में परास्त करके जंगलों में भगा दिया,आप राजा हो गए और मूल निवासियों को दास,दस्यु,राक्षस, असुर और यातुधान आदि नामों से पुकारने लगे। ये विद्वान अपने इस आरोपों की पुष्टि वे कहते हैं कि:-
1- वेदों में आर्य और दस्यु दो जातियों का वर्णन है।
२- दस्युओं के श्याम वर्ण और उनकी भाषा का वर्णन है।
३- उनके साथ युद्धों का वर्णन है और ४- यहां के मूल निवासी कोल, भील,संथाल,नट,कंजर और द्रविड़ो में श्याम वर्ण और अनार्य भाषा पाई जाती है। अतएव यह समस्त वर्णन उन्ही के लिए है I
हम देखते हैं कि इन वर्णोंनों और अवलोकनों से उपर्युक्त आरोप को सहारा मिलता है।अतएव इस बात के जांच नें की आवश्यकता है कि यह आरोप और ये प्रमाण परस्पर कितने सहायक हैं।सबसे पहले हम देखना चाहते हैं कि–
1- आर्यों के बाहर से आने और उनके पूर्व यहां के मूलनिवासियों के विषय में क्या क्या प्रमाण है ?
२- दस्युओं के रूप,रंग,भाषा और युद्धों का वेद में क्या उल्लेख है ? ३- और मूल निवासियों की मौलिकता का क्या रहस्य है? इन तीनों ही वाक्यों में समस्त जिज्ञासा भरी हुई है। इन सबमें पहला प्रश्न यह है कि क्या आर्य लोग बाहर से आए ?
इस प्रश्न के उत्तर के लिए आर्य जाति का साहित्य ही आदरणीय हो सकता है। क्योंकि यह बात सर्वमान्य हो चुकी है कि आर्यों के वैदिक साहित्य (वेद) से पुराना साहित्य आर्यों की किसी शाखा के पास नहीं है। अतः हम सबसे प्रथम यही देखना चाहते हैं कि आर्यों ने अपने साहित्य में भारत आगमन के विषय में खुद क्या लिखा रक्खा है। आर्यों ने अपने इतिहास में कहीं नहीं लिखा कि वे कहीं बाहर से आए।आर्यों को विदेशी सिद्ध करने वाले विद्वानों में मि०मूर प्रसिद्ध है।आप आर्य साहित्य को अरसे तक उलट-पलटने के बाद हताश होकर लिखते हैं कि ‘जहां तक मुझे ज्ञात है संस्कृत की किसी पुस्तक से अथवा किसी प्राचीन पुस्तक के हवाले से यह बात सिद्ध नहीं होती कि भारतवासी किसी अन्य देश से आए’।
आर्यों के साहित्य से न सही मूल निवासियों की ही किसी कथा से यह बात सिद्ध होती कि आर्य लोग कहीं बाहर से आए और उनको जगलो में निकाल दिया। परंतु यह बात भी अब तक किसी ने नही ढूंढ निकाली। इसके अतिरिक्त यदि आर्यों के पहले कोल और द्रविड़ यहां के मूल निवासी होते, तो उनकी भाषा में इस देश का कुछ नाम अवश्य होता। पर अनार्यों की भाषा में आर्यवर्त और भारतवर्ष नाम के पहले का कोई भी नाम नहीं मिलता। इससे तो यह बात बिल्कुल ही उड़ जाती है कि यहां आर्यों के पूर्व कोल और द्रविड़ रहा करते थे।कुछ समय से पढ़े लिखे द्रविड़ो ने अपना कुछ इतिहास लिखना शुरू किया है। परंतु उन्होंने अपना इतिहास किन्ही अनार्य नामों से आरम्भ न करके अगस्त्य और कण्व आदि ऋषियों के चरित्रों से ही आरंभ किया है।अगस्त्य और कण्व नि:सन्देह आर्य नाम है। इतिहास के मूल में इन नामों के होने से तो यह बात बिल्कुल ही स्पष्ट हो जाती है कि द्रविडों के पूर्व भी यहां आर्य ही निवास करते थे।इस विषय पर एक द्रविड़ पंडित मद्रास प्रान्त से लिखते हैं कि द्रविड़ की भाषा, रूप, विश्वास, धर्म और इतिहास से मुझको पूर्ण संतोष हो गया है कि वे लगभग 500 वर्ष ईसवी सन् पूर्व पश्चिम एशिया के समुद्र पार से यहां आए। यह एक पढ़े लिखे द्रविड़ जाति के आधुनिक विद्वान की राय है।सभी जानते हैं कि बुद्ध भगवान के जन्म का संवत् ईसवी सन पूर्व छठी शताब्दी है। उस समय से हजारों वर्ष पूर्व तक आर्यों के यहां बसने का प्रमाण मिलता है। परंतु उपर्युक्त विद्वान ने स्पष्ट कह दिया है कि द्रविड़ लोग ईस्वी सन से 500 वर्ष पूर्व बाहर से आए। ऐसी दशा में द्रीवड़ो के मत से भी आर्य लोग द्रविड़ से पूर्व यहां बसे हुए पाए जाते हैंI इसके अतिरिक्त आर्यों की किसी भिन्न शाखा ने भी स्वीकार नहीं किया कि वैदिक आर्य हमसे जुदा होकर भारत को गये। कहने का मतलब है कि संसार में इस प्रकार का कोई इतिहास उपलब्ध नहीं है,जिसमें लिखा हो,या कहा जाता हो कि आर्य लोग भारत में कहीं बाहर से आए। इसके विरुद्ध वैदिक आर्यों ने अपने प्राचीनतम इतिहास में लिख रक्खा है कि ब्रह्यावर्त के जंगलों को काटकर सबसे प्रथम हमने ही आबादी की है।
क्रमशः
प्रस्तुति : देवेंद्र सिंह आर्य
चेयरमैन ‘उगता भारत’
मुख्य संपादक, उगता भारत