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कविता

जुगनू का जुनून

जुगनू का जुनून

कुछ भी नहीं कहा सूरज से
कुछ भी नहीं सवेरे से ।
जुगनू स्वयं लड़ा करता है
गहन तिमिर के घेरे से ।।

जब निशीथ का गहरा तम हो
कोई साथ न देता है ।
तब जुगनू का छोटा फेरा
अंधकार हर लेता है ।।
राजमहल जब ठुकरा दे तो
आशा रैन बसेरे से ।। कुछ भी नहीं——-

संघ शक्ति में बल अपार है
मनचाहा मिल जाता है ।
जो भी महिमा जान न पाया
जीवन भर पछताता है ।।
मीन शक्ति जब संघित होती
छूटे जाल मछेरे से ।। कुछ भी नहीं——–

चाहत कभी नहीं तुम रखना
अनचाहे पुज जाने की ।
आज जरुरत सही समय पर
तालमेल बैठाने की ।
मिले नहीं जब तालमेल तो
रूठे बीन सपेरे से ।। कुछ भी नहीं ———–

अभिमानी का साथ न करना
भले अकेले जाना तुम ।
झुकना जहाँ जरुरी हो तो
बिना कहे झुक जाना तुम ।।
समभावो से प्यार पनपता
घटता तेरे मेरे से । कुछ भी नहीं ————–

अनिल कुमार पाण्डेय
संस्थापक-“तुलसी मानस साहित्यिक संस्थान”
ए-265 आई टी आई संचार विहार , मनकापुर (गोण्डा)
मो-9198557973.

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