ऋषि दयानंद जन्मभूमि टंकारा में गीत व भजनों का मनोरम कार्यक्रम : हरी हरी वसुंधरा पे नीला नीला ये गगन उड़ा रहा है पवन , यह कौन चित्रकार है ; सुकीर्ति एवं अविरल
ओ३म
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ऋषि जन्म भूमि न्यास, टंकारा में ऋषि बोधोत्सव के प्रथम दिवस 20 फरवरी, 2020 की रात्रि को ऋषि दयानन्द के भक्त युवा-दम्पति श्रीमती सुकीर्ति माथुर एवं श्री अविरल माथुर जी के गीतों व भजनों का कार्यक्रम हुआ। हम जब इस कार्यक्रम में पहुंचे तो कुछ भजन हो चुके थे। श्रीमती सुकीर्ति एवं श्री अविरल जी ने एक भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘तेरा जीवन संवर जायेगा ओ३म् कहने से तर जायेगा। बड़ी मुश्किल से नर तन मिला, पार करने से तू तर जायेगा। अपनी झोली को फैला जरा, देने वाला ये भर जायेगा।।’ कहते हैं कि स्थान व मन की स्थिति का मनुष्य पर प्रभाव हुआ करता है। हमें भी ऐसा ही लगा। हमें श्रीमती सुकीर्ति एवं श्री अविरल जी गाये भजन उसन बहुत ही मधुर व अच्छे लगे। हृदय में स्थित आत्मा को ऐसा आनन्द कभी कभी ही आता है। इसके बाद एक भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘प्रभु जी हमारी यही प्रार्थना है जीवन तू सबका खूशबू से भर दे, जीवन तू सबका उजाले से भर दे।। तेरी दया का गुणगान गाऊं, तेरी कृपा पे वार वार जाऊं, हम तो आये तेरी शरण में, जीवन तू सबका भक्ति से भर दे। प्रभु जी हमारी यही प्रार्थना है, जीवन तू सबका खूशबू से भर दे।। ऊंच-नीच का ये कैसा है फेरा सबसे बड़ा जिस दिल में तेरा डेरा। हम हैं तेरी बगिया तुम सबके माली, जीवन तू सबका खुशियों से भर दे।। धरती पे आये ऋषि महर्षि भी, देव दयानन्द आर्यों के स्वामी। वेदों की बहती अविरलधारा, हे प्रभु सबके मन में तू खुशियों को भर दे।।’ इस भजन ने भी हमें तथा सभी श्रोताओं को भीतर तक प्रभावित व संतुष्ट किया। श्रीमती सुकीर्ति दम्पति ने अगला भजन सुनाया जिसके बोल थे ‘सूरज बन के दूर किया था जिसने घोर अन्धेरा, वो देव गुरु है मेरा।’ हमें यह भजन अच्छे लग रहे थे, अतः हमने इनकी आडियो रिकार्डिंग भी की। कार्यक्रम का संचालन श्री अजय सहगल जी के द्वारा उत्तमता से किया गया। उन्होंने रात्रि 9.50 पर दिल्ली से पधारे आर्य विद्वान श्री इन्द्रदेव सत्यनिष्ठ को संक्षिप्त उपदेश के लिये आमंत्रित किया।
श्री इन्द्रदेव सत्यनिष्ठ जी ने बताया कि एक बार किसी ने उनसे प्रश्न किया कि क्या वह टंकारा गये हैं? उन्होंने कहा कि मैंने इस प्रश्न पर विचार कर उत्तर दिया कि जिस दिन मैं अपने आप को ऋषि दयानन्द जैसा बनाऊगां, तब टंकारा जाऊगां। श्री इन्द्रदेव जी ने श्रोताओं को कहा कि हमें विचार करना चाहिये कि हमने अपने जीवन को कितना और कहां तक आर्यत्व में बदला है। उन्होंने आगे कहा यदि हमने अपने जीवन को आर्यत्व में नहीं ढाला तो मैं कहूंगा कि हम ईश्वर तथा ऋषि इन दोनों से बहुत दूर हैं। आचार्य इन्द्रदेव जी ने कहा कि हम सत्यार्थप्रकाश पढ़ंेगे तो हमारी सभी भ्रान्तियां दूर हो जायेंगी। श्री इन्द्रदेव जी ने सबको सत्यार्थप्रकाश का स्वाध्याय करने का परामर्श दिया। उन्होंने सत्यार्थप्रकाश को सरल ग्रन्थ बताया। अपनी बात को उन्होंने उदाहरण देकर स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि सत्यार्थप्रकाश की कोई सी भी तीन पंक्तियां पढे़। यह आपको समझ में आयेंगी। अतः सत्यार्थप्रकाश कठिन नहीं अपितु एक सरल ग्रन्थ है जिसे हिन्दी पाठी कोई भी व्यक्ति पढ़ व समझ सकता है।
आचार्य इन्द्रदेव जी ने आर्यसमाज के छठे नियम की चर्चा की। उन्होंने कहा कि हम सभी को अपने शरीर व स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिये। हमें अपनी आत्मा की उन्नति स्वाध्याय एवं सदाचरण सहित योग साधना के द्वारा करनी चाहिये। उन्होंने कहा कि आत्मा की उन्नति के बाद ही सामाजिक उन्नति की जा सकती है। आचार्य जी ने कहा कि हमने अपने दुर्गुणों एवं दुव्र्यसनों को दूर करने का प्रयत्न नहीं किया। हमें इसके लिये संकल्प लेना चाहिये। आचार्य जी ने योग तथा यम व नियमों की भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि हमें निर्दोष प्राणियों के प्रति हिंसा न करने का संकल्प लेना चाहिये। हम शाकाहारी रहेंगे इसका भी हमें संकल्प लेना चाहिये। आचार्य जी ने सत्य के पालन में जीवन को लगाने की सलाह दी। इसके साथ ही उन्होंने पारिवारिक सामंजस्य बनाने की भी सलाह श्रोताओं को दी। परिवार व समाज में सभी सदस्य एक दूसरे का सम्मान करें। आचार्य जी ने श्रोताओं को कहा कि वह उनकी बातों पर चिन्तन व मनन करें।
इसके बाद पुनः श्रीमती सुकीर्ति माथुर दम्पति के गीत व भजन हुए। उनका गाया गया अगला भजन था ‘हरि हरि वसुन्धरा पर नीला नीला ये गगन, उड़ा रहा है पवन, ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार है।। तपस्वियों की सी हैं अटल ये पर्वतों की चोटियां। ये सर्प की घुमावदार ये घुमावदार घाटियां। ध्वजा सी ये खड़े हुए ये वृक्ष देवद्वार के, बगीचे ये देवद्वार के। यह किस कवि की कल्पना का चमत्कार है। ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार है।।’ इसके बाद एक अन्य भजन भी श्रीमती सुकीर्ति जी और श्री अविरल जी ने मिलकर गाया। भजन के बोल थे ‘कहते हैं ऋषियों का सरताज वो टंकारे वाला। महाराजाओं का महाराज वो टंकारे वाला।। ऐसा मतवाला योगी, घर घर में चर्चा होगी। दुनियां में धूम मची है आज, वो टंकारे वाला।।’ इन भजनों को संगीत के आधुनिक वाद्ययन्त्रों पर प्रस्तुत किया गया। दोनों गायक-गायिका के मधुर स्वरों तथा संगीत के स्वरों ने इस रात्रि को इसके श्रोताओं को अमृत रस से तृप्त करने का कार्य किया। रात्रि काफी हो चुकी थी। अगले दिन प्रातः बोधोत्सव का मुख्य पर्व वा सामवेद पारायण यज्ञ आदि अनेक कार्यक्रम होने थे। अतः इस कार्यक्रम का सत्रावसान किया गया। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य