– कार्तिक अय्यर
जो लोग बुद्ध जी के नाम पर ब्राह्मणों को कोसते हैं,वे यह भी देख लें कि बुद्ध स्वयं को ही ब्राह्मण मानते थे! इसके बाद भला वे अंबेडररवादी किस बात का विरोध करेंगे? हम भिक्षु धर्मरक्षित के सुत्तनिपात हिंदी अनुवाद का उद्धरण दे रहे हैं। पाठकगण,अवलोकन करें-
१- ऋषिसत्तम ब्राह्मण
वंगीश ने कहा-
एस सुत्वा पसीदामि, वचो ते इसिसत्तम।
अमोघं किर मे पुट्ठं न मं वञ्चेसि ब्राह्मणो।।१४।।
हे सातवें ऋषि!आपकी बात को सुनकर मैं प्रसन्न हूं। मेरा प्रश्न निरर्थक नहीं हुआ। आप ब्राह्मण ने मुझे धोखा नहीं दिया।
(वंगीसुत्त चूळवग्गो सुत्तनिपात)
अकिंचनं ब्राह्मणं इरियमानं।।३।।
“मैं आप अंकिचन ब्राह्मण को विचरण करते हुये देखता हूं।”
( धोतकमाणवपुच्छा ५,६)
यहां पर बुद्ध को ब्राह्मण कहा,पर वे इसका विरोध नहीं कर रहे। मतलब बुद्ध खुद को ब्राह्मणत्व प्राप्त मानते थे।
२- बुद्ध खुद को ब्राह्मण कहवाना चाहते हैं-
ब्राह्मणो चे त्वं ब्रूसि मं च ब्रूसि अब्राह्मणं।
तं सावित्तिं पुच्छामि तिपदं चतुवीसतक्खरं।।३।।
( सुंदरिकभारद्वाज सुत्त ३,४)
तुम अपने को ब्राह्मण और मुझे अब्राह्मण कहते हो तो मैं तुमसे त्रिपद और चौबीस अक्षर वाले सावित्री मंत्र को पूछता हीं।
यहाँ पर बुद्ध खुद को ब्राह्मण कहलवाना चाहते हैं। वरना ऐसा वचन नहीं कहते।वे खुद को अब्राह्मण नहीं समझते थे, अर्थात् ब्राह्मण समझते थे।
३- बुद्ध ब्रह्म है!-
ब्रह्मा ह् सक्खि पटिगण्हातु मे भगवा , भुज्जतु मे भगवा पुरळासं।।२५।।
” हे भगवान! आप साक्षात् ब्रह्म हैं मेरा भोजन स्वीकार करें।”
( सुंदरिकभारद्वाज सुत्त)
अञ्ञेन च केवलिनं महेसिं खीणासवं कुक्कच्चवूपसंतं।
अन्ने पानेन उपट्ठस्सु खेत्तं हि तं पुञ्ञेक्खरस्स होत।।२७।।
‘ज्ञानी महर्षि क्षीणाश्रव और चंचलतारहित मेरे लिये दूसरे अन्न और पेय लाओ। पुण्य चाहने के लिये ये उत्तम क्षेत्र होगा।’
बुद्धो भवं अरहति, पूरळासं पुञ्ञक्खेत्तमनुत्तरं।
अयागो सब्बलोकस्स, भोतो दिन्नं महप्फलन्ति।।३२।।
‘ आप बुद्ध पूड़ी और चिउड़ा के योग्य हैं। आप उत्तम पुण्य क्षेत्र हैं। सारे संसार से पूज्य हैं। आपको देना महाफलदायी।।३२।।
( सुंदरिकभारद्वाज सुत्त)
ऊपर स्पष्ट सिद्ध है कि उस समय लोग गौतम बुद्ध को ब्राह्मण, ऋषि,महर्षि,ब्रह्म स्वरूप बुलाते थे। वे कहीं इन संज्ञाओं का विरोध नहीं कर रहे हैं। हाँ, पर वे खुद को ब्राह्मण ही कहलवाना चाहते हैं। उनको अब्राह्मण कहने का वे विरोध करते हैं। स्पष्ट है, बुद्ध वैदिक गुण-कर्म-स्वभाव से वर्णव्यवस्था मानते थे। उसी के आधार पर खुद को क्षत्रिय से ब्राह्मण होना मान रहे थे।
अतः जो अंबेकरवादी नवबौद्ध कहते हैं कि बुद्ध ब्राह्मण विरोधी थे, उनके दावों का भंडाफोड़ हो जाता है। इनके दादागुरु बुद्ध खुद ही को ब्राह्मण मानते थे,तब फिर बात ही क्या है!
संदर्भ ग्रंथ-
१- सुत्तनिपात- हिंदी अनुवादक- भिक्षु धर्मरक्षित