ओ३म्
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ऋषि दयानन्द जन्मभूमि न्यास, टंकारा-गुजरात में आयोजित तीन दिवसीय ऋषि बोधोत्सव 20 फरवरी, 2020 को आरम्भ हुआ। प्रथम दिन 15 फरवरी, 2020 से आरम्भ सामवेद पारायण यज्ञ भी उत्सवों के प्रथम दो दिनों में जारी रहा। हम दिनांक 20-2-2020 को प्रातः व दिन के कार्यक्रमों का विवरण प्रस्तुत कर चुके हैं। सायं 5.30 बजे से सामवेद पारायण यज्ञ आरम्भ हुआ जिसके ब्रह्मा आचार्य रामदेव जी थे। यज्ञ के आरम्भ में आचार्य जी ने अपना एक संक्षिप्त सम्बोधन दिया। आचार्य जी ने बताया कि गुरुकुल में उनके गुरु जी ने उनसे प्रतिज्ञा कराई थी कि वह दिन में कभी नहीं सोयेंगे। शरीर रहे या न रहे। आचार्य जी ने कहा उन्होंने इस प्रतिज्ञा का पालन किया है। आचार्य जी ने ऋषि दयानन्द के जोधपुर जाने के प्रसंग का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि उनके कुछ भक्तों ने उनको जोधपुर न जाने अथवा वहां संयम से काम लेने की बात कही थी जिसका उत्तर देते हुए ऋषि ने कहा था मैं जोधपुर अवश्य जाऊंगा चाहे जोधपुर के लोग मेरी उंगलियों को बत्ती बना कर जला भी दें फिर भी मैं सत्य ही बोलूंगा और असत्य का खण्डन करुंगा। आचार्य जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द जोधपुर गये और वहां उन्होंने एक कटु सत्य बोल दिया। उन्होंने जोधपुर नरेश राजा जसवन्त सिंह को वैश्याओं के प्रसंग में कहा कि राजा शेर के समान होते हैं। शेर कुतिया के पीछे कभी नहीं जाता। आचार्य जी ने कहा कि यह शब्द व वाक्य ऋषि दयानन्द की स्पष्टवादिता का उदाहरण हैं। विद्वान आचार्य रामदेव जी ने कहा कि हमने गुरुकुल में प्रविष्ट होकर यज्ञोपवीत को कभी नहीं उतारा। उन्होंने कहा कि अच्छे काम करने से जनेऊ शुद्ध रहता है। दुराचार, असत्य तथा गलत रास्ते पर चलने से जनेऊ दूषित होता है।
ऋषि दयानन्द जन्मभूमि न्यास, टंकारा में संचालित गुरुकुल के आचार्य रामदेव जी ने कहा कि बिगड़ो तो इतना बिगड़ो कि विश्व में नाम हो जाये। सुधरो तो इतना सुधरों की संसार में नाम हो जाये। आचार्य जी ने कहा कि एक बार पहनने के बाद जनेऊ को उतारना नहीं चाहिये। आचार्य जी ने कहा कि मनुष्य के दो धर्म होते हैं। एक राष्ट्रीय धर्म होता है और दूसरा वैदिक धर्म है। वैदिक धर्म में जबरदस्ती नहीं है। उन्होंने कहा कि वैदिक धर्म के सिद्धान्तों का पालन करने से मनुष्य जीवन का कल्याण हो जाता है। आचार्य रामदेव जी ने आगे कहा कि परमात्मा ने सभी मनुष्यों को जन्म दिया है। परमात्मा ने वेदों में कहा है कि कर्म मनुष्य करेगा और फल परमात्मा उसे देगा। गलत काम करने पर दुःख और अच्छा काम करने पर सुख मिलेगा। आचार्य जी ने कहा कि अच्छे कर्म का परिणाम बुरा हो ही नहीं सकता। विद्वान वक्ता आचार्य रामदेव जी ने कहा कि गीता के अनुसार मनुष्य का कर्तव्य शुभ कर्म करना है। फल की इच्छा करना कर्तव्य पालन में विघ्न है। मनुष्य को निष्काम कर्म करने चाहिये। फल की इच्छा छोड़ कर कर्तव्य की दृष्टि से शुभ कर्म करने चाहियें। निष्काम कर्मों का फल भी परमात्मा से मिलता ही है, अतः फल की इच्छा नहीं करनी चाहिये। आचार्य जी ने कृष्ण जी का उल्लेख कर कहा कि उन्होंने अर्जुन से पूछा कि तू कौन है? तू क्षत्रिय है। तेरा काम न्याय करना है। अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करना तेरा कर्तव्य एवं धर्म है। आश्चर्य है कि तू क्षत्रिय होकर भी युद्ध नहीं करना चाहता। लोग तुझे कायर कहेंगे। कहेंगे कि अर्जुन लड़ नहीं सका। कृष्ण जी ने अर्जुन से यह भी पूछा कि तू आर्य है या अनार्य है? आचार्य जी ने कहा कि गुणाकेश शब्द का अर्थ होता है निद्रा को जीतने वाला। कृष्ण ने अर्जुन को कहा कि जब कर्तव्य पालन का समय आया तो तू हथियार डाल रहा है। तेरा यह काम तुझे स्वर्ग देने वाला नहीं है। यदि तू युद्ध नहीं करेगा तो देश में दुष्टों का राज्य हो जायेगा। तेरी मां, बहिन व बेटियां तथा भाई व बन्धु सुरक्षित नहीं रहेंगे। कृष्ण जी ने अर्जुन को नपुंसक तक कह दिया। यह शब्द सुनकर कोई भी मनुष्य शान्त नहीं रह सकता। कृष्ण जी के इन उपदेशों को सुनकर अर्जुन ने युद्ध करने की प्रतिज्ञा की। उसका मोह दूर हो गया था।
आचार्य रामदेव जी ने कहा कि जनेऊ विद्या का चिन्ह है। विद्या का चिन्ह भी मनुष्य की रक्षा करता है। आचार्य जी ने पुलिस व उसकी वर्दी का उदाहरण दिया। वर्दी पहनने वाले उसकी मर्यादाओं का पालन करते हैं। विद्वान आचार्य ने कहा कि हम आर्य वा श्रेष्ठ मनुष्य हैं। लोग हमें देवता समझते हैं। हमें लोगों का विश्वास कम नहीं होने देना चाहिये। आचार्य रामदेव जी ने कहा कि धोती कुर्ता पहनने से हमें बहुत सारे लाभ मिलते हैं। आचार्य जी ने अपने जीवन का उदाहरण दिया। उन्होंने बताया कि वह रोहतक गये थे। रेलयात्रा में शीघ्रतावश वह टिकट नहीं ले पाये। टिकट परीक्षक के आने पर उन्होंने स्पष्ट कहा कि उनके पास टिकट नहीं है। मैं दण्ड राशि देने के लिये भी तैयार था। टिकट परीक्षक ने मेरी बात सुनी और कहा कि आप बैठे रहिये। उसने मेरा टिकट नहीं बनाया। मैंने कई बार उससे टिकट बनाने को कहा परन्तु वह यह कहकर टालता रहा कि आप बैठे रहिये। आचार्य जी ने कहा कि मेरे मन में उस टिकट परीक्षक के विषय में कई प्रकार के विचार उत्पन्न हुए परन्तु मेरी यात्रा सकुशल पूरी हो गई और न तो उसने टिकट बनाया न कुछ धन की अपेक्षा ही की। आचार्य जी ने कहा कि टीटी का यह व्यवहार उनकी ड्रेस धोती व कुर्ता का परिणाम था। हमें अपनी ड्रेस की मर्यादा का ध्यान रखना चाहिये। इसका दुरुपयोग नहीं करना चाहिये। हमें गलत उदाहरण प्रस्तुत नहीं करना चाहिये। हमें प्रतिज्ञा करनी चाहिये कि हम अपने राष्ट्र तथा देशवासियों का अहित नहीं करेंगे। आचार्य जी ने कहा कि उन पर ईश्वर की सदैव कृपा रही है। जब भी कभी कोई कठिनाई आई है तो कोई न कोई आकर उसे दूर करता रहा है।
गुरुकुल, टंकारा के आचार्य रामदेव जी ने कहा कि हम कभी किसी से कुछ मांगते नहीं थे। हमारी मांगने की प्रकृति नहीं है। हमारा अनुभव है कि हमें बिना मांगे ही आवश्यकता के अनुसार मिलता रहा है। आचार्य जी ने कहा कि सुख व दुःख एक चक्र के समान है। यह आते जाते रहते हैं। राही को अपने रास्ते पर चलना चाहिये। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द के रास्ते पर चलने वाला मनुष्य कभी दुःखी नहीं होगा। आचार्य जी ने कहा कि हमें परमात्मा से ऋषि दयानन्द का अनुयायी व अनुगामी बनने की प्रार्थना करनी चाहिये। ऋषि दयानन्द परमात्मा के सच्चे भक्त थे। वह वेदभक्त थे। ऋषि दयानन्द का भक्त परमात्मा का सच्चा भक्त होता है। परमात्मा उसे कभी दुःखी नहीं होने देगा। इसके बाद आचार्य जी ने गायत्री मंत्र का पाठ कराया। इसके साथ ही सामवेद पारायण यज्ञ आरम्भ हुआ एवं समाप्ती तक चला। यज्ञ स्तुति-प्रार्थना-उपासना के आठ मन्त्रों का पाठ किया गया और सायंकाल के मन्त्रों से आहुतियां भी दी गईं। यज्ञ की समाप्ती के बाद सबने मिलकर सन्ध्या की। उसके बाद यज्ञ प्रार्थना हुई। अन्त में शान्तिपाठ किया गया। कार्यक्रम में ऋषिभक्त विजय आर्य जी उपस्थित थे। वह देश देशान्तर में आर्यसमाजों के आयोजनों में आते जाते रहते हैं और दीर्घ स्वर से जय घोष लगाते हैं। उनके द्वारा जयघोष लगाये गये। सायं लगभग 6.45 बजे यज्ञ समाप्त हुआ। इति ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य