ऋषि दयानंद जन्मभूमि न्यास टंकारा में युवा सम्मेलन , माता-पिता अपने बच्चों को स्वाध्याय करने तथा आर्य समाज के सत्संग में जाने के लिए प्रेरित करें : स्वामी शांतानंद
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हमने इस वर्ष ऋषि दयानन्द जन्मभूमि, टंकारा में आयोजित ऋषि बोधोत्सव पर्व में दिनांक 20 एवं 21 फरवरी, 2020 को भाग लिया। हम बोधोत्सव 21-2-2020 का सम्पूर्ण वृतान्त 5 लेखों के माध्यम से प्रस्तुत कर चुके हैं। बोधोत्सव के प्रथम दिन दिनांक 20-2-2020 को आयोजित सामवेद पारायण यज्ञ एवं इसमें डा. विनय विद्यालंकार का उद्बोधन भी दो लेखों के माध्यम से प्रस्तुत कर चुके हैं। ऋषि जन्मभूमि न्यास, टंकारा में अपरान्ह 3.00 बजे से एक युवा सम्मेलन आयोजित किया गया था जिसका संचालन आर्यसमाज, टंकारा के युवा मंत्री श्री देवकुमार जी ने बहुत योग्यता पूर्वक किया। युवा सम्मेलन में बालक-बालिकाओं की प्रश्नोत्तर प्रतियोगिता हुई। इसमें किशोर विद्यार्थियों से ऋषि दयानन्द, आर्यसमाज और वैदिक धर्म विषयक प्रश्न पूछे गये। एक प्रश्न था कि ऋषि दयानन्द जी को किसकी मृत्यु से वैराग्य प्राप्त हुआ था? इसका उत्तर था कि उनकी बहिन और चाचा की मृत्यु से उनको वैराग्य प्राप्त हुआ था। दूसरा प्रश्न था भारतीय सृष्टि संवत वर्ष कब आरम्भ होता है? इसका उत्तर था चत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से भारतीय व आर्यों का संवत् आरम्भ होता है। तीसरा प्रश्न था भूकम्प, अतिवृष्टि आदि को क्या कहते हैं? इसका उत्तर था आधिदैविक दुःख। चैथा प्रश्न था सृष्टि को बने हुए कितने वर्ष हो चुके हैं? इसका उत्तर दिया गया कि 1,96,08,53,120 वर्ष। एक प्रश्न यह पूछा गया कि देश का राजदूत किस व्यक्ति को बनाना चाहिये। इसका उत्तर दिया गया कि जिस व्यक्ति में निभीकता, निःस्वार्थ भाव होने सहित वह कुशल वक्ता हो। अगला प्रश्न था कि अष्टांग योग का मुख्य उद्देश्य क्या है? इसका उत्तर दिया गया कि सम्पूर्ण दुःखों से निवृत्ति सहित आनन्दस्वरूप पूर्ण परमेश्वर की प्राप्ति करना व कराना। सम्मेलन में एक प्रश्न यह पूछा गया कि आत्मा का मोक्षकाल कितना होता है? इसका उत्तर दिया गया कि 31 नील 10 खरब 40 अरब वर्ष जो कि सही उत्तर है। इसके बाद पुरस्कार वितरण किया गया। दूसरे व तीसरे स्थान के लिये दो बालकों इशान्त आर्य और सन्दीप आर्य के बराबर अंक थे। इन दोनों से स्वामी शान्तानन्द जी ने प्रश्न पूछें। स्वामी जी ने इनसे पूछा कि यम व नियम कितने और कौन कौन से हैं? बालक ठीक उत्तर नहीं दे सके। स्वामी जी ने इसके बाद पंचमहायज्ञों के नाम पूछे। नाम बता दिये गये। इस प्रतियोगिता में कोटिंगा वेद को प्रथम, ईशान्त आर्य, अहमदाबाद को द्वितीय तथा सन्दीप आर्य को तीसरा स्थान वा पुरस्कार प्राप्त हुआ।
न्यास द्वारा उपदेशक विद्यालय की ओर से आयोजित वालीवाल प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर आई टीम को भी पुरस्कृत किया गया। उत्तम निशाने बाज का पुरस्कार श्री गजेन्द्र जी को दिया गया। यह प्रतियोगिता उत्सव से पूर्व आयोजित की गईं थीं। न्यास द्वारा आयोजित अन्य प्रतियोगिताओं के विजयी प्रतियोगियों को भी इस अवसर पर पुरस्कार प्रदान किये गये। युवा सम्मेलन के अध्यक्ष स्वामी शान्तानन्द जी का सम्बोधन हुआ। स्वामी जी ने मनुष्य की शारीरिक एवं पारिवारिक उन्नति की चर्चा की। स्वामी जी ने कहा कि हमें समाज सुधार व समाज की उन्नति के लिये भी आगे आना चाहिये। स्वामी जी ने दर्शक माता-पिताओं को प्रेरणा की कि आप अपने बच्चों को शारीरिक दृष्टि से सबल बनायें। उन्हें स्वाध्याय करने तथा आर्यसमाज के सत्संगों में जाने के लिये प्रेरित करें। हमारे बच्चों का धार्मिक जीवन न के बराबर है। स्वामी जी ने कहा कि माता-पिता अपने बच्चों को मोबाइल फोन आदि देकर बिगाड़ रहे हैं। पांच प्रतिशत माता-पिता ही अपने बच्चों पर ध्यान देते हैं। स्वामी जी ने कहा कि अधिकांश माता पिता अपने बच्चों को नौकर बनाना चाहते हैं। स्वामी जी ने प्रेरणा की कि माता-पिता को अपने बच्चों को नौकर रखने वाला बनाने का प्रयत्न करना चाहिये। स्वामी जी ने कहा कि सबसे घटिया काम नौकरी करना है। स्वामी जी ने माता-पिताओं को अपने बच्चों को विद्वान बनाने की प्रेरणा की। उन्होंने कहा कि अपने बच्चों को विद्वान बनाने के लिये गुरुकुलों में पढ़ने के लिये भेजें। स्वामी जी ने आगे कहा कि माता-पिता अपने बच्चों को विद्वान बनाना तथा गुरुकुल भेजना नहीं चाहते। विद्वान संन्यासी ने कहा कि ईसाई व मुसलमानों में अपने धर्म के लिये जो तड्फ है, वह हिन्दुओं व आर्यों में नहीं है।
स्वामी शान्तानन्द जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द ने जीवन के हर क्षेत्र में काम किया। हमें अपने बच्चों को स्वामी दयानन्द की शिक्षायें प्रदान करनी चाहिये। स्वामी जी ने माता-पिताओं को कहा कि आप अपने बच्चों में निम्न पांच चीजें भर दें:
1- ईश्वर का ध्यान करना।
2- यज्ञ का अनुष्ठान करना।
3- वेदों का स्वाध्याय व वेदज्ञान प्राप्त करना।
4- बच्चों को सुसंस्कारी सन्तान बनाना।
5- देश हित के लिये बलिदान होने के लिये बच्चों में देशभक्ति की भावनाओं का भरना।
स्वामी जी ने कहा कि उपर्युक्त बातों से देश का कल्याण होगा। न्यास के सहमंत्री श्री अजय सहगल जी ने इस अवसर पर अपने सम्बोधन में कहा कि श्री हंसमुख भाई परमार यहां प्रत्येक वर्ष युवा सम्मेलन आयोजित किया करते थे। वह बहुत कम आयु में हमसे दूर चले गये। श्री अजय सहगल जी ने सबको खड़े होकर उनकी पुण्यात्मा को श्रद्धांजलि अर्पित कराई। श्री अजय सहगल जी ने कहा कि आज युवा सम्मेलन का संचालन श्री देव कुमार जी द्वारा किया जा रहा है। श्री देवकुमार जी आर्यसमाज टकारा के मंत्री हैं। श्री हंसमुख भाई परमार हमें यह युवा ऋषिभक्त देवकुमार दे गये हैं। हम आशा करते हैं कि श्री देवकुमार जी श्री हंसमुख परमार जी द्वारा किये जा रहे सब कार्यों को करेंगे। श्री देवकुमार जी ने हमें इसका विश्वास दिलाया है। श्री अजय सहगल जी ने श्री देवकुमार जी का धन्यवाद किया। श्री सहगल जी ने कहा कि श्री देव कुमार जी ने श्री हंसमुख भाई परमार जी की भूमिका को अच्छी प्रकार से निभाया है।
इसके बाद कार्यक्रम को आगे जारी रखते हुए उसका संचालन चन्द्र प्रकाश, संचालक आर्यवीर दल, गुरुकुल टंकारा द्वारा किया गया। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द के कार्य को युवा ही पूरा करते हैं। उनेक अनुसार समाजों में 60 प्रतिशत लोग वृद्ध होते हैं। 20 से 40 प्रतिशत लोग कम आयु के होते हैं। हमारे वृद्ध व्यक्ति व कम आयु के व्यक्ति युवा पीढ़ी को प्रेरित नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम अपनी संस्कृति के प्रति जागरुक रहें और युवा शक्ति को पे्ररित करें। टंकारा का हमारा गुरुकुल गुजरात की युवा शक्ति को जागरुक करने का काम कर रहा है।
इसके बाद किशोर व युवा बच्चों के योगासन प्रदर्शन का कार्यक्रम हुआ। कुछ बच्चों ने सिर पर दीपक रखकर भी योगासन किये। कराटे का प्रदर्शन भी इस कार्यक्रम में हुआ। बालकों ने अनेक कठिन आसन करके दिखाये और अनेक मनमोहक आकृतियां बनाकर दिखाईं जो अत्यन्त कठिन थी। लोगों में इन प्रदर्शनों को देखकर प्रसन्नता एवं उत्साह देखा गया। संचालक महोदय ने बताया कि आर्य वीरांगना मृदुला मुम्बई में नारियों को कराटे व योगासनों का प्रशिक्षण देती है। मुदुला जी आचार्य रामदेव जी की सुपुत्री हैं। उन्होंने मंच पर लाठी चलाकर दिखाई। कार्यक्रम में उपस्थित आर्य विदुषी एवं आर्यनेत्री उत्तमायति जी ने मृदुला जी के योगासनों एवं लाठी आदि वीरतापूर्ण प्रदर्शनों की सराहना की। इसके बाद पुनः युवकों द्वारा लाठी चलाने व प्रहार करने का प्रदर्शन किया गया। युवकों ने मार्शल आटर््स का प्रदर्शन भी किया गया। गुरुकुल के दो ब्रह्मचारियों ने मार्शल आर्ट्स का प्रदर्शन किया। इसके बाद दो किशोरों ने तलवार चलाने का प्रदर्शन भी किया। इस प्रस्तुति के बाद चार ब्रह्मचारियों के द्वारा अनेक कठिन आसन करके दिखाये गये। तत्पश्चात 10 ब्रह्मचारियों ने कुछ भिन्न आसन किये। यह आसन महत्वपूर्ण एवं दर्शनीय थे। इस प्रस्तुति के बाद लगभग 20 युवकों ने आसनों की विभिन्न मुद्रायें करके दिखाईं। इनके द्वारा की गई प्रस्तुति मन को भा रही थी। बहुत ही आकर्षक दृश्य था। हमने दूर से बैठे हुए इसका चित्र भी खींचा।
इन प्रस्तुतियों के बाद अनेक ब्रह्मचारियों ने मिलकर अनेक आसनों का मिलाजुला मनमोहक दृश्य प्रस्तुत किया। इन सभी आसनों के पाश्र्व में बहुत सटीक एवं मधुर व भावनाओं को वीर रस में डूबोने वाला संगीत बज रहा था। इसके बाद हमें पुनः युवकों द्वारा प्रस्तुत एक भव्य एवं नयनाभिराम आसनों का दृश्य देखने को मिला। लगभग 20 युवकों ने अनेक आसनों से युक्त एक सुन्दर मुद्रा बनाकर प्रस्तुत की। इसके बाद 15-20 युवकों ने पुनः कुछ नये आसनों को भव्य दृश्य के माध्यम के रूप में प्रस्तुत किया। इसी क्रम को जारी रखते हुए ब्रह्मचारियों ने मिलकर एक ऊंचा भव्य पिरामिड बनाकर दर्शकों को दिखाया। यह विद्यार्थी एक दूसरे के ऊपर नीचे खड़े होकर अनेक आसन भी किये जा रहे थे। इसके बाद पुनः एक बिलकुल नया आसन करके दिखाया गया। ब्रह्मचारियों के एक दूसरे के ऊपर खड़े होकर चार मंजिल बनाकर एक भव्य दृश्य प्रस्तुत किया जिसमें लगभग 30 ब्रह्मचारी सम्मिलित थे। वृक्ष पर एक रस्सी बांधकर व उस रस्सी पर लटक कर कुछ ब्रह्मचारियों ने अनेक कठिन आसन पद्मासन, सुप्त वज्रासन तथा सलभासन आदि प्रस्तुत कर दर्शकों को दिखाये। इन सभी आसनों व इनके दृश्यों ने दर्शकों में उत्साह को बढ़ाया। इसी के साथ यह युवा सम्मेलन, प्रश्नोत्तर एवं आसनों का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत