संपूर्ण भारत का विजेता नहीं था अकबर , इसलिए संपूर्ण भारत का बादशाह भी उसे नहीं कहा जा सकता
महाराणा प्रताप नाम के हिंदू वीर योद्धा ने अकबर को 1576 से 1585 तक निरंतर चित्तौड़ में उलझा रखा उसका परिणाम यह निकला कि अकबर के 10 वर्ष हमारे अकेले वीर योद्धा महाराणा प्रताप से लड़ते हुए गुजर गए । तब उसने 1585 में देश के अन्य हिस्सों पर अपने नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास प्रारंभ किया । उसने झुंझला कर कहा था कि यदि चित्तौड़ फतेह नहीं होती है तो हिंदुस्तान के दूसरे क्षेत्रों की ओर रुख किया जाए । इतिहास के इस सच को यदि इतिहास बोलने लगे तो महाराणा प्रताप की महानता स्वत: सिद्ध हो जाएगी कि उन्होंने उन विषम परिस्थितियों में अकबर को चित्तौड़ में उलझाए रखकर दक्षिण भारत पर कितना उपकार किया था ?
क्योंकि यदि वे 10 साल अकबर को दक्षिण की ओर प्रस्थान करने के लिए मिल गए होते तो निश्चय ही दक्षिण के बहुत बड़े हिस्से पर अकबर का साम्राज्य स्थापित हो सकता था। महाराणा प्रताप का ही प्रताप था कि भरसक प्रयासों के उपरांत भी अकबर मध्य प्रदेश से आ गए सफलतापूर्वक नहीं पढ़ पाया और शरद दक्षिण भारत वह पूर्वोत्तर का आसाम सहित सारा भारतवर्ष स्वतंत्रता के गीत गाता रहा। कुल मिलाकर मराठा साम्राज्य से भी छोटे साम्राज्य का मालिक अकबर बन पाया। इसके उपरांत भी भारतीय इतिहास का यह दुर्भाग्य है कि वह मराठों के गीत गाकर अकबर के गीत गाता है और अकबर को महान बताता है।(प्रमाण के लिए अकबर और मराठों के साम्राज्य के यहाँ दिए गए दोनों मानचित्रों का आप अध्ययन कर सकते हैं जो इतिहास की पुस्तकों में भी मिलते हैं और गूगल पर भी मिल सकते हैं )
अकबर के कथित विजय अभियानों से तो ऐसा लगता है कि वह संपूर्ण भारतवर्ष का ही बादशाह था, परंतु ऐसा नही था। बंगाल से आगे सारा पूर्वोत्तर भारत और म्यांमार बर्मा तक का क्षेत्र उससे अछूता ही रहा, इसके अतिरिक्त नेपाल और अधिकांश दक्षिणी भारत भी उसके शासन के अधीन कभी नही आ सके। भारत किसी भी शासक के लिए किसी रोटी का ग्रास नही बन सका कि जब जैसे चाहा तोड़ लिया और निगल गये। भारत विद्रोह और स्वतंत्रता की भूमि थी, जिसमें हर पग पर क्रांति की ज्वालाएं धधकती थीं। अकबर भी शांति पूर्वक समस्त भारत को एक साथ और एक ध्वज के नीचे लाने में कभी सफल नही हुआ था।कन्या सौंपने वाले राजाओं का हो गया था सामाजिक बहिष्कारभारत के अधिकांश हिंदू समाज ने आमेर-बीकानेर और जैसलमेर के उन राजाओं का सामाजिक बहिष्कार सा कर दिया था। जिन्होंने अपनी कन्याएं अकबर को सौंपकर उससे वैवाहिक संबंध स्थापित किये थे। यह परंपरा आज तक चली आती है कि हिंदू समाज में इन राज्यों के राजाओं को कोई सम्मान नही देता, पर इन राजाओं को सदा लताड़ते रहे महाराणा प्रताप को लोग आज तक सम्मान देते हैं।यद्यपि अकबर ने राजा भगवान दास को पंजाब का सूबेदार बना दिया था, तथा राजा मानसिंह को तो शाही परिवार के व्यक्ति की बराबर की 7,000 की मनसबदारी भी दे दी थी, परंतु इसके उपरांत भी लोग उसे सम्मान न देकर वन-वन की खाक छानने वाले महाराणा प्रताप को आज भी सम्मान देते हैं। इससे यही सिद्घ होता है कि यश राजभवनों के ऐश्वर्यपूर्ण जीवन से उत्पन्न नही होता है, अपितु वह तो परिश्रम और त्याग की झोंपड़ी से ही उत्पन्न होता है। हमें निस्संकोच स्वीकार करना चाहिए कि इस विषय में महाराणा सबसे आगे रहे कि उन्हें देश की जनता ने सच्चा हिंदू हितैषी, सच्चा देशभक्त, सच्चा नायक और सच्चा ‘महाराणा’ मानकर सम्मानित किया है। लोकमत की मान्यता और राजा की महानताचाहे किसी भी इतिहासकार ने अकबर को कितना ही महिमामंडित क्यों न किया हो पर किसी राजा की महानता का पता उसके विषय में इतिहास की पुस्तकों को पढक़र नही चल पाता है। राजा की महानता का पता चलता है-लोकमत की मान्यता का अध्ययन करके। हमारा प्रश्न है कि क्या भारत में सबने रामायण पढ़ी है, जो सभी राम को अच्छा और रावण को बुरा समझते हैं? उत्तर यही आएगा कि सबने रामायण नही पढ़ी। यही बात महाभारत के विषय में भी कही जा सकती है, कि वह भी सबने नही पढ़ी। पर सबकी मान्यता है कि युधिष्ठिर ठीक था और दुर्योधन गलत था। यही बात अकबर और महाराणा के विषय में है-लोगों का नायक अकबर न होकर महाराणा प्रताप है। लोक का यह प्रमाणपत्र ही महाराणा की श्रेष्ठता को सिद्घ कर देता है।डॉ राकेश कुमार आर्यसंपादक : उगता भारत