ऋषि बोधोत्सव पर्व टंकारा : यज्ञ करने से सब मनुष्य व प्राणियों को सुख मिलता है — आचार्य रामदेव
ओ३म्
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हम इस वर्ष ऋषि दयानन्द सरस्वती जी के बोधोत्सव पर उनकी जन्मभूमि टंकारा गये और वहां आयोजित कार्यक्रमों में भाग लिया। वहां उपस्थित होकर हमने तृप्ति च सन्तुष्टि प्राप्त की। बोधोत्सव के प्रथम दिन प्रातः लगभग 8.30 बजे सामवेद पारायण यज्ञ किया गया। सामवेद पारायण यज्ञ दिनांक 15-2-2020 को आरम्भ किया गया था तथा प्रतिदिन प्रातः व सायं किया जा रहा था। यज्ञशाला में टंकारा न्यास द्वारा संचालित बालकों के गुरुकुल के आचार्य रामदेव जी यज्ञ के ब्रह्मा के आसन पर विद्यमान थे। गुरुकुल के कुछ ब्रह्मचारी मन्त्रोच्चार करने के लिये तैयार थे। यजमान अपने-अपने आसनों पवर विराजमान थे। न्यास के सहमंत्री श्री अजय सहगल जी भी यज्ञशाला में उपस्थित थे और कार्यक्रम का संचालन कर रहे थे। यज्ञारम्भ से पूर्व उन्होंने न्यास की गतिविधियों सहित न्यास परिसर में जल आदि की न्यूनता आदि की चर्चा की। उन्होंने यज्ञवेदी पर उपस्थित यजमानों का परिचय भी दिया। यज्ञ वेदी पर यजमान के रूप में वरुण शाही जी, आस्ट्रेलिया उपस्थित थे। डा. सुश्री अरुणा शर्मा, सिडनी भी यजमान के आसन पर उपस्थित थी। श्रीमती मारवाह, श्रीमती कौल एवं श्रीमती नय्यर आदि विदुषी देवियां यजमान के आसनों पर आसीन थे। इन यजमानों का श्री अजय सहगल जी ने विस्तार से परिचय दिया। उन्होंने बताया कि न्यास में बोधोत्सव के कार्यक्रम में गुजरात के राज्यपाल महोदय आचार्य देवव्रत जी तथा मुख्यमंत्री श्री विजय रुपाणी जी दिनांक 21-2-2020 को पधारेंगे। महाशय धर्मपाल जी, एमडीएच भी ‘ऋषि स्मृति सम्मेलन’ में आयेंगे। महाशय जी ने 2 करोड़ रुपये की ऋषि जन्म भूमि एवं न्यास परिसर के सौन्दर्यीकरण की योजना बनाई है। इस योजना से ऋषि जन्म भूमि एक भव्य स्थान बनेगा।
इस भूमिका के साथ सामवेद पारायण आरम्भ हुआ। आरम्भ में सबने गायत्री मन्त्र का मिलकर पाठ किया। मुख्य यजमान ने पुराहित का वरण किया। इसके पश्चात आचमन, स्तुति-प्रार्थना-उपासना के मन्त्रों का पाठ तथा स्वस्तिवाचन आदि का पाठ किया गया तथा यज्ञ की आहुतियां दी गईं। न्यास में हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं। यज्ञशाला में स्थान सीमित होने के कारण सभी लोग अपनी इच्छित जगह पर नहीं बैठ पाते। अतः चण्डीगढ़ से पधारे श्री सुशील भाटिया जी प्रत्येक वर्ष टंकारा आते हैं और यज्ञशाला में लोगों को अनुशासन एवं व्यवस्था में बैठाते हैं जिससे किसी को कष्ट न हो और यज्ञ निर्विघ्न सम्पन्न किया जा सके। हमें श्री सुशील भाटिया जी का स्नेह प्राप्त हैं। वह जो व्यवस्था करते हैं उसकी जितनी प्रशंसा की जाये कम होगी। जहां पर इस प्रकार व्यवस्था नहीं की जाती वहां अव्यवस्था की सम्भावना रहती है और लोगों को असुविधा भी होती है। बोधोत्सव के प्रथम दिन दिनांक 20-2-2020 को सामवेद के 120 मंत्रों से आहुतियां दी गई। यज्ञ के ब्रह्मा जी ने इस अवसर पर अपने कुछ विचार भी प्रस्तुत किये। उन्होंने अपने सम्बोधन में प्रश्न उपस्थित किया कि परमात्मा ने सृष्टि की रचना क्यों की? इसका उत्तर देते हुए आचार्य रामदेव जी ने कहा कि परमात्मा ने मनुष्यों को यज्ञ का सुख प्राप्त कराने के लिये सृष्टि की रचना की। यज्ञ करने व कराने के लिये सृष्टि को रचा गया। यह बात सामवेद के अध्ययन से सामने आती है। आचार्य जी ने कहा कि यह समस्त संसार एक ही सम्राट परमात्मा के वश में संचालित हो रहा है। परमात्मा स्वयं यज्ञ के वश में हैं। यज्ञ मनुष्य में चलता है। यज्ञ करने से सब मनुष्यों व प्राणियों को सुख मिलेगा। यज्ञ करने वाले लोग संसार का सुख भोगेंगे। यज्ञ करने वाले लोग मृत्यु के बाद ईश्वर को प्राप्त होंगे। यज्ञ के प्रभाव से उनको जीवन में तथा मृत्यु के बाद भी आनन्द प्राप्त होगा।
आचार्य रामदेव जी ने कहा कि शतपथ ब्राह्मण में यज्ञ को श्रेष्ठतम कर्म कहा गया है। यज्ञ को परोपकार करने के लिये किया जाता है। परोपकार के सभी कर्म यज्ञ हैं। यज्ञ श्रेष्ठतम कर्म को कहते हैं। आचार्य जी ने कहा कि परमात्मा का दूसरा नाम ‘पूर्ण’ है। उन्होंने कहा कि सर्व व पूर्ण परमात्मा के नाम के पर्यायवाची शब्द हैं। संसार का एक ही सम्राट ईश्वर है। ईश्वर का ज्ञान, बल व क्रियायें स्वाभाविक हैं। दूसरों को सुख देना परमात्मा का स्वभाव है। हम सुख व दुःख आदि अपने शुभ व अशुभ कर्मों के अनुसार प्राप्त करते हैं। परमात्मा सर्वत्र विद्यमान है। परमात्मा गलत काम करने वालों का सहयोगी नहीं रहता। यज्ञ करने से सुख मिलता है। आचार्य रामदेव जी ने कहा कि हमें ऋतुओं के अनुसार सामग्री का चयन कर उससे यज्ञ करना चाहिये। यज्ञ सामग्री में प्रत्येक पदार्थ के अपने-अपने भिन्न-भिन्न गुण होते हैं। पदार्थ के उन गुणों का लाभ यज्ञ करने वालों को मिलता है। आचार्य श्री ने कहा कि घृत का गुण जहर का नाश करना है। काले सर्प का विष गोघृत पीने से पचास प्रतिशत से अधिक मात्रा में नष्ट हो जाता है। आचार्य जी ने यह भी कहा कि हमारा शरीर व्याधियों का घर है। ‘शरीर व्याधि मन्दिरम्’ यह वचन आयुर्वेद के ग्रन्थों में आया है। इस संक्षिप्त प्रेरक उद्बोधन के बाद सामवेद के मन्त्रों से यज्ञाग्नि में आहुतियां दी गईं।
इसी बीच श्री अजय सहगल जी ने हल्द्वानी उत्तराखण्ड से पधारे आर्यसमाज के वरिष्ठ विद्वान डा. विनय विद्यालंकार जी का परिचय दिया। उनका शाल ओढ़ाकर स्वागत व सम्मान किया गया। यज्ञशाला में आर्य विद्वान श्री रामनिवास गुणग्राहक जी भी उपस्थित थे। उनका भी श्री अजय सहगल जी ने परिचय दिया और उनको भी शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। माननीय श्री अजय सहगल ने हमारे नाम का भी उल्लेख किया। उन्होंने यज्ञशाला में यज्ञ कर रहे ऋषिभक्तों को हमारे लेखन कार्य का परिचय दिया और उसकी प्रशंसा की। उन्होंने यज्ञशाला में उपस्थित आर्यजनों को बताया कि हम प्रतिदिन एक से चार तक लेख लिखते हैं। अजय जी ने हमारे विषय में अनेक प्रशंसात्मक वचन कहे और हमें शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया। हम श्री अजय सहगल जी और न्यास का इस कृपा पूर्ण व्यवहार के लिये हृदय से कृतज्ञता एवं आभार व्यक्त करते हैं। हम नहीं समझते कि हम किसी सम्मान के अधिकारी हैं परन्तु अनेक आर्य संस्थाओं सहित इतर संस्थाओं से भी हमें सम्मान प्राप्त हुए हैं। इसे हम ईश्वर, ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज के गुणी जनों की कृपा व प्रेम का प्रसाद समझते हैं। हमारे बाद चण्डीगढ़ से पधारे श्री रघुनाथ राय आर्य जी का भी सम्मान किया गया। श्री वरुण शाही जी, आस्ट्रेलिया का भी सम्मान किया गया। सुश्री अरुणा शर्मा, सिडनी, श्रीमती नय्यर जी, श्री सुरेन्द्र कुमार गुप्ता दिल्ली, अत्यन्त मधुर भजन गाने वाली स्वामी दीक्षानन्द जी की दौहित्री श्रीमती सुकीर्ति माथुर आदि अनेक ऋषिभक्तों का सम्मान भी किया गया।
उपर्युक्त आर्य बन्धुओं एवं विदुषियों के सम्मान के बाद गायत्री मन्त्र का पाठ किया गया। यज्ञ भी जारी रहा। यज्ञ के ब्रह्मा आचार्य रामदेव जी ने बताया कि यज्ञशाला में उपस्थित डा. विनय विद्यालंकार जी उनके सहपाठी रहे हैं। उन्होंने गुरुकुल एटा में अपने बाल्यकाल में क्रिकेट खेलने, एक ब्रह्मचारी के मुंह में क्रिकेट की गेंद लगने से उसके आगे के दांत गिर जाने, एक अन्य ब्रह्मचारी द्वारा उन दांतों को उठाकर पुनः उसी स्थान पर लगा देने और वह बालक पूर्णतः ठीक हो जाने अर्थात् दांत मांस में जुड़े जाने आदि संस्मरण सुनाये। आचार्य रामदेव जी ने गुरुकुल एटा के आचार्य, सम्भवतः स्वामी ब्रह्मानन्द दण्डी जी, का उल्लेख कर कहा कि वह व्याकरण के पहले प्रामाणिक विद्वान थे। आचार्य जी ने कहा कि गुरु जी चंचल प्रवृत्ति के थे। प्रातः 5 से 8 बजे तक पढ़ाते थे। गुरुकुल के बड़े विद्यार्थी छोटे विद्यार्थियों को पढ़ाते थे। गुरुजी प्रायः शरीर को नंगा रखते थे। आचार्य जी ने अपने गुरु के अनेक गुण बताये। उन्होंने कहा कि एटा में अध्ययन करते समय उनके दिन आनन्द के दिन होते थे। आचार्य जी ने यह भी बताया कि एटा जैसा गुरुकुल सारे भारत में नहीं था। श्री अजय जी ने बताया कि कुछ वर्ष पहले विनय जी टंकारा आये थे तो उन्होंने हमें कुछ सुझाव दिये थे। उनका अनुसरण करने से हमारे पास ब्रह्मचारियों को निःशुल्क अध्ययन कराने के लिए दानी महानुभावों से धन प्राप्त हो रहा है। श्री अजय सहगल जी ने कहा कि वैदिक धर्म की रक्षा के लिये हमें अपने एक बच्चे को गुरुकुल में पढ़ाना चाहिये। इसके बाद डा. विनय विद्यालंकार जी का व्याख्यान हुआ। इस व्याख्यान को हम एक पृथक लेख के माध्यम से प्रस्तुत करेंगे। श्री अजय सहगल जी ने टंकारा न्यास की व्यवस्थाओं के बारे में श्रोताओं को जानकारी दी। इसके बाद यज्ञ प्रार्थना हुई। लगभग 11.15 बजे इस प्रातःकालीन यज्ञ व सत्संग का समापन हुआ। शान्ति पाठ के बाद यज्ञशाला में उपस्थित लोग विसर्जित हुए। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य