किसान क्रांति के प्रथम प्रणेता पथिक जी : 27 फरवरी जयंती पर विशेष
डाॅ. राकेश राणा
विजय सिंह पथिक भारतीय राजनैतिक परिदृश्य पर ऐसा नेतृत्व हैं, जिन्होंने समाज के साथ मिलकर सफल सत्याग्रह की शैली ईजाद की। होली के दूसरे दिन दुल्हेंडी 27 फरवरी, 1884 को जन्में भूपसिंह ही विजय सिंह पथिक बने। उनके पिता व माता दोनों के परिवारों की 1857 की क्रांति में सक्रिय भागीदारी थी।
पथिक इन्दौर में 1905 में प्रसिद्ध क्रांतिकारी देशभक्त शचीन्द्र सान्याल के सम्पर्क में आये। उन्होंने पथिक जी को रासबिहारी बोस से मिलाया। क्रांतिकारियों के इस समूह में पथिक जी कई महत्वपूर्ण कार्रवाहियों का हिस्सा रहे। 1912 में जब अंग्रेजों ने दिल्ली को राजधानी बनाया तो क्रांतिकारियों ने उद्घाटन समारोह में वायसराय के जुलूस पर चांदनी चौक में बम फेंका। इस कर्यवाही में पथिक जी शामिल थे। 1914 में रासबिहारी बोस और शचीन्द्र सान्याल ने सम्पूर्ण भारत में एकसाथ सशस्त्र क्रांति के लिए ’अभिनव भारत समिति’ नाम का संगठन बनाया। पथिक जी को इस काम के लिए राजस्थान का जिम्मा सौंपा गया। अजमेर से प्रमुख समाचार पत्रों का सम्पादन और प्रकाशन प्रारम्भ किया।
बिजौलिया का प्रसिद्ध किसान आन्दोलन, बेगू किसान आन्दोलन, सिरोही का भील आन्दोलन, बरार किसान आन्दोलन ये सब बड़े किसान आन्दोलन पथिक जी के नेतृत्व में खड़े हुए। राजस्थान के स्वतंत्रता आन्दोलन का विस्तार कर राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक ले गये। उस दौर के बड़े नेता गांधी और तिलक थे, उनतक राजस्थान के स्वतंत्रता संघर्ष की पूरी योजना और परिणामों को पहुंचाया। ऐनी हडसन के जरिये ब्रिटेन के हाउस ऑफ काॅमन में राजस्थान स्वतंत्रता संघर्ष की आवाज उठायी। रियासतों के दमन और शोषण को समझाने वाली विशाल प्रदर्शनी अधिवेशन स्थलों पर आयोजित की। यह सब पथिक जी की दूरदृष्टि और नेतृत्व शैली को समझने के लिए पर्याप्त है। 1920 में वर्धा में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की। इसके माध्यम से सत्याग्रह के प्रयोग शुरू किए। बाद में संघ की गतिविधियों का केन्द्र अजमेर बना। देशभक्त युवाओं को खोज-खोजकर आन्दोलन में शामिल किया। माणिक्य लाल वर्मा, राम नारायण चौधरी, हरिभाई किंकर, नैनूराम शर्मा और मदनसिंह करौला जैसे देशभक्त और आजाद भारत के बड़े नेता पथिक जी के राजस्थान सेवा संघ की ही देन हैं।1929 में पथिक जी राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये।
पथिक जी की कार्यशैली और नेतृत्व शैली दोनों अद्भुत है। दोनों के केन्द्र में सत्याग्रह की पद्धति है। उनके कार्यक्रम और प्रबंधन का जो अनूठापन और परिणाम देने वाला है वह सत्याग्रह ही है। लगान के सम्बन्ध में, ठिकाने के अत्याचारों के सम्बन्ध में, किसानों की बहादुरी के सम्बन्ध में, गीत और भजन के द्वारा किसानों में गांव-गांव आन्दोलन का प्रचार करना, सबकुछ सत्याग्रह को साक्षी मानकर ही किया। पथिक जी ने सम्मिलित हस्ताक्षरों से राज्य को किसानों के अभाव अभियोगों के लिए आवेदन देना बन्द करवा दिया। केवल पंचायत के सरपंच के नाम से ही लिखा-पढ़ी की जाने लगी। चेतावनी दी गई कि अब किसान अनुचित लागतें और बेगारें नहीं देंगे। पंचायत ने यह निश्चय किया है कि यदि ठिकाना इन्हें समाप्त नहीं करेगा तो पंचायत उन्हें अन्य टैक्स भी नहीं देगी। राज्य ने अपने कर्मचारियों और ठिकाने के पक्ष में आदेश दिया कि सरपंच या पंचायत के नाम से किसी अर्जी या आवेदन पर कोई कार्यवाही न हो अर्थात राज्य ने पंचायत के अस्तित्व को मानने से इनकार कर दिया। विजय सिंह पथिक ने किसानों को समझाया कि कोई किसान व्यक्तिगत रूप से या सम्मिलित हस्ताक्षर करके आवेदन न दे। सभी किसानों की ओर से बोलने का अधिकार एकमात्र पंचायत को ही होगा। उनके इस आह्वान से सम्पूर्ण राजस्थान सत्याग्रह की गूंज से जागृत हो उठा। पथिकजी के आह्वान पर बिजोलिया के किसानों ने युद्ध का चन्दा देने से इन्कार कर दिया। प्रेमचन्द भील भजन गा-गाकर किसानों को सत्याग्रह के लिए प्रेरित करते रहे। पथिकजी ने गणेश शंकर विद्यार्थी को पत्र लिखा कि वे बिजोलिया में किसान सत्याग्रह चला रहे हैं, उनके प्रसिद्ध पत्र प्रताप की सहायता की आन्दोलन को अत्यन्त आवश्यकता है। साथ ही बिजोलिया के किसानों की ओर से गणेश शंकर विद्यार्थी को राखी भेजी गई। पत्र मिलते ही गणेश शंकर विद्यार्थी का जवाब आया कि बिजोलिया आन्दोलन के लिए प्रताप के पृष्ठ सदैव खुले हैं। आप अपने सत्याग्रह पथ पर चलते रहिए। यह सत्याग्रह की शैली का ही प्रभाव था कि देखते ही देखते राजस्थान का स्वतंत्रता संघर्ष पूरे देश में पहचाना जाने लगा।
विजयसिंह पथिक सत्याग्रह पथ पर अडिग रहे और आजादी के लिए जीवन पर्यन्त संघर्ष करते रहे। 29 मई, 1954 को जब उनका देहान्त हुआ, तब भी पथिक जी एक समरस, शान्तिपूर्ण और सुन्दर समाज के निर्माण में जुटे थे। एक नया अखबार शुरू करने की योजना बना रहे थे। पथिक जी जीवन भर सामंतवाद, जातिवाद, पूंजीवाद, सम्प्रदायवाद, धर्मांधतता, सामाजिक कुप्रथाओं, शोषण, दमन और अन्याय के विरूद्ध संघर्ष करते रहे। पथिक जी जहां देश, समाज और राष्ट्र के बड़े सवालों को लेकर चिंतनशील थे, वही बेरोजगारी, पर्यावरण विनाश, स्वास्थ्य और स्वच्छता जैसे सामाजिक महत्व के मुद्दों पर अपने अखबारों के जरिए बराबर लिख रहे थे। इसीलिए देश का पहला सत्याग्रही विजयसिंह पथिक हैं। सत्याग्रह की शक्ति ने स्वतंत्रता संघर्ष को सामाजिक महत्व के जनान्दोलन में बदलने का बड़ा काम किया।
पूरे स्वतंत्रता संग्राम में सत्याग्रह एक शक्तिशाली हथियार की तरह उपयोग में आया। वास्तव में भारतीय स्वाधीनता संग्राम की कहानी सत्याग्रह की ही कहानी है। आज भी न इसका महत्व कम हुआ है और न ही इसकी प्रासंगिकता कम हुई है। जैसे-जैसे दुनिया में अन्याय, शोषण और अत्याचार बढ़ेगा, सत्याग्रह के लिए आग्रह और तीव्र होंगे। इस जादुई हथियार को समझने के लिए पथिक साहित्य/शोधकार्य/इतिहास सामग्री/संस्मरण और उनके जीवनानुभवों तथा सामाजिक कार्यों को समझना आवश्यक है। उनके द्वारा प्रकाशित छः प्रमुख समाचार-पत्रों में राजस्थान केसरी, नवीन राजस्थान, तरुण राजस्थान, राजस्थान संदेश, नव-संदेश और उपरमाल को डंको है। पथिक जी ने पत्रकारिता को सत्याग्रह का शस्त्र बनाया और समाज व राष्ट्र को संघर्ष सिखाया। एक सफल सत्याग्रह राष्ट्रीय चेतना में कैसे प्रस्फुटित होता है और समाज को बदलाव के लिए खड़ा करता है, यह पथिक के प्रयोगों से ही सीखा जा सकता है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)