अनूपशहर में महर्षि का आगमन सात बार हुआ। अनूपशहर लघु काशी के नाम से जाना जाता है । यहां कबीर के समकालीन सेनापति कवि हुए हैं । यहां का मस्तराम घाट महर्षि की तप:स्थली रही है । आज मस्तराम गंगा घाट देखने योग्य है । अनूपशहर कभी आर्य समाज का बहुत बड़ा केंद्र हुआ करता था। महर्षि दयानंद के प्रभाव से हिंदू विश्वविद्यालय से एक वर्ष पूर्व सन 1915 फरवरी 15 में डीएवी की नींव महामहिम लक्ष्मण प्रसाद सेठ ने रखी । आज यह उच्च माध्यमिक विद्यालय अध्ययन अध्यापन एवं अनुशासन में देश के सबसे बड़े राज्य में प्रसिद्ध है। यहां के प्राचार्य सतपाल तोमर आर्य समाज से प्रभावित हैं । यहां उसी कालखंड में आर्य कन्या इंटर कॉलेज एवं जी डी ए वी कन्या इंटर कॉलेज के साथ-साथ महाविद्यालय पीजी भी है ।
अनूपशहर भारतवर्ष का प्रथम कस्बा है , जहां पर इतने छोटे स्थान पर जेपी विश्वविद्यालय चल रहा है। यह डीएवी के पूर्व छात्र एवं वर्तमान उद्योगपति जयप्रकाश गौड़ द्वारा निर्मित है । यहां पर अनेकानेक पौराणिक पंडितों को परास्त किया गया और स्वामी जी का इतना प्रभाव पड़ा कि पौराणिकों ने मूर्तियों को गंगा में विसर्जित कर दिया । यहां पर नवल जंग का अखाड़ा कुश्ती के लिए प्रसिद्ध है । पहलवान नवल सिंह एवं नवल की बहन स्वामी जी के परम भक्त थे । कई बार स्वामी जी की रक्षा गुंडों से पहलवान नवल सिंह ने की थी । नवल पहलवान के बारे में दंत कथा है कि वे किसी ईंट को अपने हाथ से इतने वेग से फेंकते थे कि ईंट वृक्ष में जाकर गड़ जाती थी । अनूप शहर के पास ही भृगु क्षेत्र है। यहां ऋषि भृगु का आश्रम एवं गुरुकुल है ।
यहां भी महर्षि दयानंद का आगमन हुआ था । अनूप शहर के बाद आर्य शोभा यात्रा फतेहपुर , हरिद्वारपुर , उदयपुर होती हुई करणवास पहुंची । महर्षि दयानंद करणवास में 11 बार आए । अपनी तप:स्थली से व्याख्यान करते रहे । यहां महर्षि दयानंद स्मारक बना हुआ है । तप:स्थली का स्थान सुरक्षित है। इसी स्थान पर ठाकुर गोपालसिंह की बहन विधवा हंसा देवी को यज्ञोपवीत धारण कराया गया और गायत्री मंत्र जप करने का निर्देश दिया ।
महर्षि दयानंद के अनुसार हंसादेवी भारत की प्रथम महिला थी जिसे ऋषि ने यज्ञोपवीत संस्कार कराया था । करणवास में ही ठाकुर गोपालसिंह के रिश्तेदार राव करण सिंह के घमंड को तलवार छीन कर दो टुकड़े कर दिए । दकियानूसी राव करणसिंह तलवार से हमला करना चाहता था , तब ऋषि ने उसका सारा अहंकार चकनाचूर कर कहा कि युद्ध करना है तो राजस्थान के शूरवीरों से करो । संन्यासी के धर्म को नष्ट मत करो ।
करण वास के बारे में एक प्रमाणिक दंतकथा है कि यह स्थान महाभारत कालीन राधेय पुत्र महारथी दानी कर्ण के द्वारा बसाया गया है । वह यहाँ पर ही प्रतिदिन सवा मन स्वर्ण दान करते थे । करणवास के बाद शोभायात्रा गुरुकुल राजघाट पहुंची। इस स्थान पर महर्षि का तीन बार आगमन हुआ। गुरुकुल राजघाट का पूरा नाम महर्षि दयानंद आर्ष गुरुकुल है । जिसके प्रबंधक श्री राम अवतार आर्य हैं और संचालक योगेश शास्त्री। यह गुरुकुल स्वामी महेश्वरानंद के द्वारा निर्मित है जो योगेश शास्त्री के दादा थे ।
सन् 1994 से अनवरत शिक्षण कार्य चल रहा है। गुरुकुल राजघाट काशी शास्त्रार्थ महोत्सव के साथ अपना रजत जयंती समारोह मना रहा था। इस समारोह में 10 अक्टूबर से 13 अक्टूबर 2019 तक जाने-माने विद्वानों ने भाग लिया। सिक्किम के राज्यपाल महामहिम गंगा प्रसाद जी , डॉक्टर सोमदेव शास्त्री मुंबई , संजय मासिक मेरठ , स्वामी आर्य वेश की सार्वदेशिक सभा इतिहास वेत्ता डॉक्टर राकेश कुमार आर्य नोएडा , स्वामी धर्मानंद जी राजघाट गुरुकुल , कुलपति चंद्र देव शास्त्री , पवित्रा आर्या कन्या गुरुकुल हाथरस , धर्मबंधु जी उड़ीसा , स्वामी चेतनानंद राजस्थान , राजेंद्र आर्य वैदिक प्रवक्ता भरतपुर राजस्थान आदि गणमान्य लोगों ने अपने अपने विचारों से लोगों को लाभान्वित किया । समस्त कार्यक्रम का संचालन योगेश शास्त्री ने किया । दूरस्थ स्थानों से सभी धर्म प्रेमी आर्य विराट सम्मेलन की शोभा बढ़ा रहे थे ।
गुरुकुल राजघाट से शोभायात्रा चंद्रपाल आर्य डेयरी वालों के प्लांट पर पहुंची । श्री चंद्रपाल सिंह और उनके परिवार की ओर से 1000 से अधिकारियों को दोपहर का भोजन कराकर सम्मान पूर्वक विदा किया गया । संरक्षक क्षेत्रपाल जी एवं गजेंद्र आर्य ने चंद्रपाल आर्य का सपरिवार धन्यवाद व्यक्त किया । राजघाट अलीगढ़ रोड पर जरगंवा पर आर्य समाज ने भव्य स्वागत कर फल वितरित किए । यहाँ से शोभायात्रा धूम सिंह जरौली , रायपुर , अतरौली स्टेशन पहुंची। जहां सभी ग्रामीणों ने फलों पुष्पों से भव्य स्वागत किया । महर्षि दयानंद के उद्घोष से आकाश गूंज उठा। इसी श्रंखला में शोभायात्रा स्वामी श्रद्धानंद साधु आश्रम हरदुआगंज पहुंची । जहां गुरुकुल महाविद्यालय के ब्रह्मचारियों ने मुख्य द्वार (पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह स्मृति द्वार पर प्राचार्य जीवन सिंह आर्य ने सभी का शानदार स्वागत किया एवं फल वितरित किए । सामवेद के मंत्रों से व बैंड बाजों से स्वर लहरी के साथ अभिनंदन किया । स्वामी सर्वदानंद कितने दूरद्रष्टा होंगे कि महामना मदन मोहन मालवीय से 7 वर्ष पूर्व अर्थात सन 1910 में गुरुकुल महाविद्यालय स्थापित किया । आज भी आर्ष गुरुकुल अच्छी शिक्षा दे रहा है । इस गुरुकुल में अन्य विद्वानों के पदार्पण के अतिरिक्त आर्यपुत्र पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह 1984 में पधारे ।
पूर्व प्रधानमंत्री ने अपने हाथों से एक अशोक वृक्ष रौंपा। आज भी यह वृक्ष उनकी स्मृति को संजोए हुए हैं । इस अवसर पर पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने गुरुकुल ब्रह्मचारियों को संबोधित करते हुए कहा कि मैं आज जिस स्थान पर पहुंचा हूं , यह आर्य समाज की देन है । मैंने सत्यार्थ प्रकाश भी पढ़ा है और दयानंद प्रकाश भी ।अतः मैं आर्य समाजी भी हूँ और दयानंदी भी।
मैंने राजनीति में सत्यनिष्ठा दृढ़ता और साहस से जो कार्य किए हैं वह सब आर्य समाज की देन है और महर्षि दयानंद का प्रभाव है। मेरे जीवन में कोई अच्छाई दिखती है तो केवल वैदिक सिद्धांत और आर्य समाज है और बुराई दिखती है तो वह कुछ राष्ट्र का कार्य करने के कारण राजनीति से आई है । अतः मैं आपको भी यही कहता हूं कि सदैव सत्यनिष्ठ , धर्मनिष्ठ बनो । इसके बाद शोभायात्रा सिकरना छलेसर पहुंची । दोनों गांवों में भव्य स्वागत हुआ। छलेसर में स्वामी जी ठाकुर भोपाल सिंह के आग्रह पर पहुंचे । स्वामी जी ने 6 माह से अधिक समय देकर एक झोपड़ी में गुरुकुल खोला और एक यज्ञ शाला स्थापित की ।आज भी हवन कुंड एवं झोपड़ी का स्थान सुरक्षित है । भोपाल सिंह के वंशज प्रपौत्र प्रधान कालीचरण ने बताया कि 2 एकड़ भूमि स्वामी दयानंद के नाम पर अब भी सुरक्षित है।
वहां भी ग्रामीणों ने गुरुकुल खोलने का प्रस्ताव रखा। 1961- 62 में चकबंदी के दौरान भी यह भूमि महर्षि दयानंद के नाम पर आवंटित थी और आज भी है। अतः परोपकारिणी सभा , सार्वदेशिक सभा , आर्य प्रतिनिधि सभा ऐसे स्थानों को चिन्हित करें और दयानंद स्मारक घोषित करें।
सरकार के भरोसे यह कार्य न छोड़ें , क्योंकि वर्त्तमान सरकारों के आदर्श स्वामी विवेकानंद है । महर्षि दयानंद नहीं । इतिहास साक्षी है कि स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाले 85 प्रतिशतआर्य समाजी थे । वे चाहे वह नरम दल के हों या फिर गरम दल के। अन्य महापुरुषों ने हमें डूबने से बचाया पर महर्षि दयानंद ने हमें तैरना सिखाया ।
छलेसर गांव से शोभायात्रा पंडरावल पहुंची । जहां महर्षि एक सप्ताह रहे ।पंडरावल में उनके ठहरने के स्थान पर आर्य समाज का भवन खड़ा होने जा रहा है। जो वर्षान्त पूर्ण हो जाएगा । वहां के प्रधान दधीचि सिंह ने सभी का भव्य स्वागत किया। पंडरावल ग्राम के इतिहास के बारे में चौधरी दधीचि सिंह ने बताया कि पंडरावल ( बुलंदशहर ) और रावलपिंडी (पाक ) दोनों स्थान राणा परिवार बप्पा रावल के द्वारा बसाए गए । पंडरावल से शोभायात्रा पंडरावल पुलिस चौकी होते हुए भीमपुर , अमरपुर , जिरौली , बीरपुर , दौलत नगर , जलालपुर होते हुए राजघाट पहुंची ।
रात्रि विश्राम गुरुकुल राजघाट में हुआ । अपनी अपनी सुविधानुसार 3 दिन अंतर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन में भाग लिया । गुरुकुल राजघाट का रजत जयंती समारोह एवं काशी शास्त्रार्थ की 150वीं वर्षगांठ का महोत्सव हर्षोल्लास से मनाया गया। मेरी अपनी जानकारी में 180 किलोमीटर की आर्य समाज की ऐतिहासिक शोभायात्रा है । जो अपने आप में अद्भुत है। ऐसी शोभा यात्राएं आर्य समाज एवं राष्ट्र को शक्ति प्रदान करती हैं। शोभायात्रा आर्य समाज को दिशा देती हुई निकलती रहे, बस यही कामना है।
सादर
शुभेच्छुक : गजेंद्र सिंह आर्य
पूर्व प्राचार्य वैदिक प्रवक्ता
जलालपुर अनूपशहर बुलंदशहर
उत्तर प्रदेश चलभाष – 9783 89117511
मुख्य संपादक, उगता भारत