ओ३म
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ऋषि दयानन्द जी का जन्म राजकोट-गुजरात एवं मोरवी-गुजरात को मिलाने वाले मार्ग पर स्थित टंकारा नामक ग्राम में 12 फरवरी, सन् 1825 को हुआ था। वर्तमान में इस स्थान पर ऋषि दयानन्द जन्मभूमि न्यास, टंकारा के नाम से एक न्यास कार्यरत है। प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के अवसर पर यहां तीन दिवसीय ऋषि बोधोत्सव पर्व मनाया जाता है। हम पहले पांच बार टंकारा के उत्सवों में सम्मिलित हुए हैं। इस वर्ष भी हम उत्सव में सम्मिलित हुए। शिवरात्रि के दिन बोधोत्सव पर प्रातः सामवेद पारायण यज्ञ की पूर्णाहुति हुई। यज्ञ में अनेक यजमान बने जिसमें मुख्य श्री योगेश मुंजाल, उनके परिवार के सदस्यों सहित अमरोहा के डा. अशोक आर्य थे जो अमरोहा से 12 बसे लेकर टंकारा पहुंचे थे। यज्ञ के ब्रह्मा आचार्य रामदेव जी थे तथा मन्त्रोच्चार टंकारा गुरुकुल के ब्रह्मचारियों ने किया। यज्ञ के आरम्भ में न्यास के सहमंत्री श्री अजय सहगल जी ने न्यास का परिचय देते हुए कहा कि इस न्यास के दो प्राण रहे हैं। प्रथम श्री ओकारनाथ जी थे। उन्होंने न्यास के भवनों को नया रूप देने का प्रयत्न किया। दूसरे महनीय व्यक्ति महात्मा सत्यानन्द मुंजाल थे। उन्होंने न्यास के कार्यों को आगे बढ़ाया। श्री अजय सहगल जी ने बताया कि यह दोनों परिवार यज्ञशाला में उपस्थित हैं। यजमानों में श्री सुधीर मुंजाल तथा श्री सुनील मानकटाला जी थे। यज्ञशाला में आर्यनेता एवं विद्वान श्री वाचोनिधि आर्य सहित उनके पुत्र श्री मनस्वी एवं पुत्रवधु सौ. आयुषी जी भी थी। महात्मा सत्यानन्द मुंजाल जी की पौत्री निधी कपूर भी यज्ञशाला में विद्यमान थी। यज्ञ के आरम्भ में गायत्री मन्त्र का पाठ किया गया। इसके बाद संकल्प सूत्र का पाठ किया गया। मुख्य यजमान ने यज्ञ के ब्रह्मा आचार्य रामदेव जी के पास जाकर उनका तिलक कर उन्हें यज्ञ का पुरोहित वा ब्रह्मा वरण किया। सामवेद के अवशिष्ट मन्त्रों की आहुतियों सहित यज्ञ की प्रक्रिया पूर्ण कर पूर्णाहुति सम्पन्न की गई। प्रातः 10.30 बजे यज्ञ की पूर्णाहुति एवं यजमानों को आशीर्वाद की प्रक्रिया भी सम्पन्न की गई।
यज्ञ की समाप्ति के बाद कुछ समय अवकाश रखा गया जिसके बाद ध्वजारोहण किया गया। आश्रम के सहमंत्री श्री अजय सहगल जी ने ध्वजारोहण एवं शोभायात्रा को आरम्भ कराया। पं. सत्यपाल पथिक जी ने ध्वज गीत गाया। श्री विजय आर्य जी ने इस अवसर पर वैदिक धर्म की जय आदि घोष लगाये। शोभायात्रा में गुजरात व देश के अनेक भागों से आये हुए ऋषिभक्त अपने बैनरों सहित सम्मिलित हुए। शोभा यात्रा न्यास परिसर से आर्यसमाज टंकारा तक गई और वहां से लौट कर ऋषि जन्म गृह के सामने से गुजरते हुए पुनः न्यास परिसर में लौट आई।
अपरान्ह 3.00 बजे से ‘‘ऋषि स्मृति समारोह” का अयोजन सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान श्री सुरेश चन्द्र आर्य की अध्यक्षता में हुआ। इस समारोह में मुख्य अतिथि गुजरात के राज्यपाल महामहिम देवव्रत जी तथा मुख्यमंत्री श्री विजय रूपाणी जी थे। विशिष्ट अतिथि पद्मभूषण महाशय धर्मपाल, एम.डी.एच. थे। समारोह में आर्य विद्वान डा. विनय विद्यालंकार जी का उद्बोधन हुआ। समारोह में सबसे पहले मुख्यमंत्री जी का सम्बोधन हुआ। इस सम्बोधन को हम एक विस्तृत लेख द्वारा पूरा प्रस्तुत कर चुके हैं। डा. विनय विद्यालंकार जी का उद्बोधन भी हुआ जिसके आरम्भ में उन्होंने मंच पर उपस्थित गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी को महर्षि दयानन्द का अप्रतिम शिष्य बताया। उन्होंने बताया कि आचार्य जी ने हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त होने पर वहां राजभवन की मदिराशाला को तुड़वा कर उसके स्थान पर यज्ञशाला का निर्माण कराया था। उस यज्ञ में दैनिक यज्ञ किया जाता था। डा. विनय जी ने कहा कि आचार्य जी गुजरात के राज्यपाल की शपथ ग्रहण करने के बाद सबसे पहले टंकारा की यात्रा पर आये थे। डा. विनय जी ने यह भी बताया कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ऋषि की जन्मभूमि में कई बार आयें हैं। राज्यपाल जी की जब प्रधानमंत्री मोदी जी से भेंट हुई तब उन्होंने आचार्य जी से पूछा कि क्या आप टंकारा गये? इस भेंट वार्ता में मोदी जी ने आचार्य जी को कहा कि टंकारा में ऋषि दयानन्द की जन्म भूमि को विश्व के एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिये। डा. विनय विद्यालंकार जी ने कहा कि मोदी जी के इस सुझाव का श्रेय आचार्य देवव्रत जी को जाता है।
डा. विनय विद्यालंकार जी ने महाशय धर्मपाल जी के उत्साह एवं ऋषि भक्ति की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द की वैदिक विचारधारा को जन-जन में प्रचारित करना महाशय जी का उद्देश्य है। विनय जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द के जीवन में हमें इस धरा के प्रत्येक प्राणी के प्रति संवेदना एवं उनके सुख की चिन्ता देखने को मिलती है। आचार्य विनय जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द जी के जीवन व उनके समग्र साहित्य में विश्व के प्रत्येक मनुष्य के कल्याण की चिन्ता व उसके लिये पुरुषार्थ का हमें प्रत्यक्ष होता है। डा. विनय जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द जी ने सत्यार्थप्रकाश की भूमिका में स्पष्ट उल्लेख किया है कि उनका कोई नया मत-मतान्तर चलाने का लेशमात्र भी अभिप्राय व प्रयोजन नहीं था। ऋषि का उद्देश्य प्रत्येक मनुष्य को सत्य व असत्य के स्वरूप को विदित व परिचित कराना था। डा. विनय जी ने मारीशस के पूर्व राष्ट्रपति श्री शिवसागर रामगुलाम जी का उल्लेख कर बताया कि वह अन्यतम ऋषिभक्त थे। वह अजमेर आये थे और ऋषि उद्यान जाकर उस स्थान पर लेट गये थे जहां ऋषि की अन्त्येष्टि की भस्म को भूमि में डाला गया था। उनका कहना था कि उनके पूर्वज भारत से मजदूरी करने मारीशस ले जाये गये थे परन्तु ऋषि दयानन्द की विचारधारा के कारण उनको राष्ट्रपति जैसे गौरवशाली पद की प्राप्ति हुई। श्री शिवसागर रामगुलाम जी का भाव था कि ऋषि दयानन्द की भस्म व उस स्थान की धूल के कुछ कण उनके शरीर पर लग जायें तो वह भाग्यशाली होंगे। उन्होंने कहा था कि वह ऋषि दयानन्द के ऋणी हैं और उससे उऋण नहीं हो सकते।
डा. विनय विद्यालंकार जी ने कहा कि हम ऋषि दयानन्द के विचारों पर गहराई से विचार करें। ऋषि के विचारों को हमें अपने जीवन में धारण भी करना है। आचार्य विनय जी ने आर्यसमाज में संन्यासी वेश वाले एक व्यक्ति की सांकेतिक आलोचना भी की जो सार्वजनिक सभाओं में मुसलमानों के कलमे पढ़ता है। आर्यसमाज के विद्वान एवं प्रभावशाली वक्ता डा. विनय विद्यालंकार जी ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की राष्ट्रभक्ति की प्रशंसा की। डा. विनय जी ने ऋषि दयानन्द जी के सभी मत-मतान्तरों को मिलाकर एक सर्वमान्य मत की स्थापना करने के प्रयासों की चर्चा भी की। उन्होंने कहा कि आर्यसमाज को जागने की आवश्यकता है। आचार्य जी ने यह भी कहा कि आर्यसमाज जगा हुआ व राष्ट्र को जगाने वाला संगठन है। डा. विनय विद्यालंकार ने राज्यपाल जी के कार्यों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि हमें विश्वास है कि राज्यपाल महोदय हमेशा ऋषि दयानन्द के कार्यों को आगे बढ़ायेंगे। डा. विनय जी ने आगे कहा कि सामवेद में राष्ट्रधर्म की चर्चा है और उसका पालन करने की प्रेरणा है। हमारा दायित्व विश्व को आर्य बनाना है। अपने वक्तव्य को विराम देते हुए डा. विनय विद्यालंकार जी ने कहा कि हम ऋषि के विचारों के अनुरूप कार्य करेंगे और उन्हें राष्ट्र को अर्पित करेंगे।
डा. विनय विद्यालंकार जी के सम्बोधन के बाद स्वामी संकल्पानन्द स्मृति सम्मान आर्यजगत के विख्यात विद्वान एवं संन्यासी स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड को प्रदान किया गया। यह सम्मान गुजरात के राज्यपाल ऋषिभक्त आचार्य देवव्रत जी ने स्वामी जी को प्रदान किया। इस अवसर स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक जी ने ऋषिभक्तों को सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि एक आर्य परिवार में उनका जन्म हुआ। बचपन में माता-पिता व परिवार जनों ने उन्हें वैदिक संस्कार दिये। उनके परिवार में 80-90 वर्षों से दैनिक यज्ञ की परम्परा चल रही है। पिछली 3-4 पीढ़ियों से उनके कुल में परम्परा है कि जो दैनिक यज्ञ नहीं करेगा उसे नाश्ता नहीं मिलेगा। जो सायं काल सन्ध्या नहीं करेगा उसे भोजन नहीं मिलेगा। स्वामी जी के परिवार 4 संन्यासी एवं 3 वानप्रस्थी हुए हैं। 15 व्यक्तियों ने वेद प्रचार किया है। स्वामी जी ने कहा कि वह भी इनमें से एक हैं। स्वामी जी ने कहा कि मेरे माता-पिता ने परिश्रम किया। मैंने भी पुरुषार्थ किया है। मुझे पूर्व में 11 सम्मान प्राप्त हुए हैं। आज 12वां सम्मान मिला है। स्वामी जी ने राज्यपाल महोदय सहित टंकारा न्यास आदि का आभार व्यक्त किया। चण्डीगढ़ से पधारे श्री रघुनाथ राय आर्य जी का भी सम्मान किया गया। श्री आर्य उत्तम कोटि के कार्यकर्ता हैं। टंकारा न्यास के लिये वह प्रत्येक वर्ष 2-3 लाख रुपये की धनराशि एकत्रित करते हैं। डा. महेश वेलाणी, भुज का भी सम्मान किया गया। उनके विषय में बताया गया कि वह एक कार्यकर्ता की तरह से काम करते हैं। भानु बहिन जी के विषय में बताया गया कि वह बच्चों को प्रेरणा करती हैं। वह भी सम्मानित की गईं। डा. अशोक आर्य, अमरोहा तथा श्री दर्शन दास, आर्यवीर दल का भी सम्मान हुआ। इसके बात वीरांगना विद्या, भुज का अजन्ता घड़ियों के मालिक श्री जय सुख भाई पटेल के द्वारा सम्मान हुआ।
कार्यक्रम में राज्यपाल महोदय द्वारा महात्मा सत्यानन्द मुंजाल जी पर श्री नानकचन्द द्वारा सम्पादित काफीटेबल पुस्तक का लोकार्पण किया गया। इस पुस्तक में महात्मा सत्यानन्द मुंजाल के जीवन के सभी पक्षों व कार्यों को प्रस्तुत किया गया है। इस अवसर पर महात्मा सत्यानन्द मुंजाल जी के सुपुत्र श्री योगेश मुंजाल जी का सम्बोधन हुआ। उन्होंने कहा कि महात्मा सत्यान्द मुंजाल अपने जीवन में ऋषि जन्म भूमि न्यास से जुड़े रहे। न्यास के विकास में उनका योगदान है। ऋषि दयानन्द का जन्म स्थान न्यास को प्रदान करने में भी उनकी प्रमुख भूमिका थी। वह गुरुकुल में पढ़े थे। पाकिस्तान बनने पर वह भारत आये थे। वह गरीबों को आने जाने का सस्ता साधन देना चाहते थे। उन्होंने उस कार्य को सफल किया। महात्मा सत्यानन्द मुंजाल जी ने आर्यसमाज में बढ़चढ कर काम किया। उन्होंने अनेक छोटे बड़े स्कूल, गुरुकुल तथा आर्यसमाज खोले। अनेक लोगों से कई बार उनका जीवन परिचय प्रकाशित करने के सुझाव प्राप्त हुए। अपने जीवन काल में उन्होंने यह कार्य नहीं करने दिया। उनकी मृत्यु होने पर भी लोगों ने जीवन चरित व उनके कामों का विवरण प्रस्तुत करने का अनुरोध किया। उन पर जिस पुस्तक का लोकार्पण किया गया है उसमें उनके जीवन विषयक सामग्री सहित उनके स्वभाव, संस्कारों तथा कामों का उल्लेख है। पुस्तक में अनेक लोगों के लेख प्रकाशित किये गये हैं। यह एक अच्छी पुस्तक बनी है। महात्मा सत्यानन्द मुंजाल दयानन्द जी के सच्चे सैनिक थे। उन पर तैयार पुस्तक को ऋषि बोधोत्सव पर प्रकाशित करने से अच्छा दिन नहीं हो सकता था। पुस्तक के विमोचन के लिये राज्यपाल जी से उपयुक्त व्यक्ति अन्य कोई नहीं हो सकता था। श्री नानकचन्द जी ने इस कार्य में सहयोग किया। मैं उनका धन्यवाद करता हूं। इसके बाद राज्यपाल महोदय जी को एक स्मृति चिन्ह दिया गया।
महात्मा सत्यानन्द मुंजाल जी पर प्रकाशित पुस्तक के सम्पादक श्री नानकचन्द ने अपने सम्बोधन में कहा कि यह ग्रन्थ एक आम आदमी के खास आदमी बनने की कहानी है। उन्होंने कहा ऋषि दयानन्द जन्मभूमि न्यास को ऋषि की जन्मभूमि वा जन्म गृह नही मिल रहा था। इस सन्दर्भ में उन्होंने श्री सत्यानन्द मुंजाल जी के दौहित्र की गुजरात की एक कन्या से प्रेम प्रसंग एवं विवाह का उल्लेख कर बताया श्री सत्यानन्द मुंजाल उस कन्या के परिवार से मुम्बई में मिले। उनसे बातचीत की। ऋषि जन्मभूमि का प्रसंग भी आया। उन्होंने कन्या परिवार के लोगों को कहा कि वह उनसे मिलकर टंकारा जा रहे हैं। उन्होंने अपने सम्बन्धियों को बताया कि टंकारा का एक व्यक्ति ऋषि जन्म भूमि का कब्जा नहीं दे रहा है। इस अवसर पर ज्ञात हुआ कि ऋषि जन्मभूमि की चाबी कन्या के नाना के पास थी। फिल्मी स्टाइल में काम हुआ और वह जन्म भूमि अनायास ही न्यास को प्राप्त हो गई। नानक चन्द जी ने बताया कि इस प्रकार से ऋषि जन्मभूमि पर न्यास का अधिकार हुआ। श्री नानकचन्द ने लुधियाना में महात्मा सत्यानन्द जी मुंजाल द्वारा स्थापित कन्या गुरुकुल की चर्चा कर उसका महत्व बताया। उन्होंने कहा कि टंकारा न्यास में जो भव्य भवन बने हैं वह श्री सत्यानन्द मुंजाल जी के योगदान की कहानी बताते हैं। उन्होंने बताया कि मुंजाल परिवार न्यास को और अधिक विकसित करेगा। श्री नानकचन्द जी ने राज्यपाल महोदय का धन्यवाद किया।
कार्यक्रम में उपस्थित माता उत्तमायति जी ने राज्यपाल श्री देवव्रत जी को न्यास की ओर से स्मृति चिन्ह भेंट किया। श्री योगेश मुंजाल जी ने भी राज्यपाल महोदय को एक स्मृति चिन्ह भेंट किया। कार्यक्रम में उपस्थित महाशय धर्मपाल, एमडीएच को भी श्री योगेश मुंजाल जी ने एक स्मृति चिन्ह भेंट किया।
सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान श्री सुरेश अग्रवाल ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि राज्यपाल महोदय श्री देवव्रत जी ने हरयाणा राज्य में गुरुकुलीय शिक्षा प्रणाली को मूर्तरूप दिया है। आचार्य देवव्रत जी ऋषि दयानन्द के अनन्य भक्त हैं और वह सरल व सौम्य स्वभाव के धनी हैं। हम उन्हें अपने मध्य पाकर गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। श्री सुरेश अग्रवाल जी ने कहा कि मुख्यमंत्री श्री विजय रूपाणी जी की घोषणाओं से उनका उत्साहवर्धन हुआ है। अब टंकारा में ऋषि दयानन्द के भव्य स्मारक के निर्माण का मार्ग खुल गया है जो कि शीघ्र सम्पन्न होने की आशा है। श्री सुरेश अग्रवाल जी ने मुख्यमंत्री जी की घोषणाओं के लिये उन्हें बधाई दी। श्री सुरेश अग्रवाल जी ने कहा कि घोर अन्धकार के युग में ऋषि दयानन्द के रूप में एक महान चेतना का जन्म हुआ। श्री अग्रवाल जी ने महर्षि दयानन्द के धर्म एवं समाज संबंधी कार्यों की किंचित विस्तार से चर्चा की। श्री सुरेश अग्रवाल जी ने देश के महापुरुषों में स्वामी दयानन्द को उचित स्थान न देने व उनकी उपेक्षा करने के लिये अपनी पीड़ा को व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि सरदार पटेल की विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति स्टैचू आफ यूनिटी के संग्रहालय में महर्षि दयानन्द का चित्र नहीं लगाया गया है जबकि अन्यों के लगे हैं। यह उनकी पीड़ा का कारण था। इस ऋषि स्मृति समारोह में राज्यपाल महोदय को आर्यसमाज की ओर से कुछ मांगें प्रस्तुत की गईं। इस अवसर पर दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा क मंत्री श्री विनय आर्य ने भी ऋषि जन्मभूमि को भव्य बनाने संबंधी अपने बहुमूल्य सारगर्भित विचार प्रस्तुत किये। अन्त में गुजरात के राज्यपाल महोदय का सम्बोधन हुआ जिसे हम कुछ समय पूर्व प्रस्तुत कर चुके हैं। इस प्रकार से शिवरात्रि वा बोधोत्सव सहित ऋषि स्मृति सम्मेलन सोल्लास सम्पन्न हुआ। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत