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ऋषि दयानन्द जन्मभूमि न्यास, टंकारा में आयोजित इस वर्ष के ऋषि बोधोत्सव पर्व दिनांक 20 एवं 21-2-2020 के अवसर पर गुजरात राज्य के राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री जी को आमंत्रित किया गया था। दोनों ही शीर्ष अधिकारी आयोजन में पधारे। मुख्यमंत्री जी ने अपने सम्बोधन में जो कहा, उसे हम इससे पूर्व प्रस्तुत कर चुके हैं। अब राज्यपाल महोदय आचार्य देवव्रत जी के सम्बोधन को प्रस्तुत कर रहे हैं। ऋषि के अनन्य भक्त आचार्य देवव्रत जी ने कहा कि आज हम यहां टंकारा में ऋषि दयानन्द जन्मभूमि में उपस्थित हैं। मुझे इससे पहले भी यहां सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मैंने गुजरात का राज्यपाल बनने व कार्यभार ग्रहण करने के बाद अपनी पहली यात्रा टंकारा स्थित इस ऋषि की जन्मभूमि की ही की थी। मैं गुजरात का राज्यपाल बनने के बाद राष्ट्रपति जी और प्रधानमंत्री जी से भी मिला था। मैं जब प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी से मिला तो उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं ऋषि दयानन्द जी जन्मभूमि टंकारा हो आया हूं? मैंने कहा कि हां, हो आया हूं। उन्होंने अपनी दूसरी चिन्ता कही। उन्होंने कहा कि आप ऋषि दयानन्द के प्रति अनन्य श्रद्धा रखते हैं। आप आर्यसमाज के दीवाने हैं। आपने ऋषि दयानन्द की महत्ता व गरिमा के अनुरूप उनकी जन्मभूमि नहीं बनाई? मैंने कहा कि इसका मुझे खेद है। आचार्य देवव्रत जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द एक ऐसे महापुरुष हैं जो इस छोटे से गांव टंकारा में जन्मे थे। ऋषि दयानन्द ने गुरु विरजानन्द सरस्वती से शिक्षा लेकर अपना सम्पूर्ण जीवन देश, धर्म और जाति के उत्थान के लिये समर्पित कर दिया। उन्होंने अनेक क्रान्तिकारियों को पैदा किया। ऋषि ने सामाजिक कुरीतियों के निराकरण के लिये आर्यवीरों को तैयार किया। पाठशालाओं तथा अन्य संस्थाओं की स्थापना की। नारी उद्धार, अछूतोद्धार आदि का महनीय काम किया। उन्होंने वेदों का उद्धार किया। ऋषि ने भारत के लोगों को वेदों से परिचित कराया। उनके समय व उनसे पूर्व देश में उनके स्तर का कोई महापुरुष नहीं था।
आचार्य देवव्रत जी ने कहा कि यह स्थल हमारे लिये तीर्थ स्थल से कम नहीं है। उन्होंने कहा कि यहां भी आवश्यक सुविधायें होनी चाहिये जिससे ऋषिभक्त यहां आकर एक या दो दिन रुक कर गुरु दयानन्द का स्मरण कर सकें। उन्हें यहां कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिये। यहां पर सभी आगन्तुकों को सब प्रकार की सुविधायें उपलब्ध होनी चाहियें। आचार्य जी ने कहा कि आजकल युग बदल रहा है। ऋषि दयानन्द की जन्मभूमि में ऋषि के जीवन से सम्बन्धित जो चित्र हैं, वह स्पष्ट दिखाई नहीं देते हैं। आचार्य जी ने कहा कि मैं मुख्यमंत्री जी को अपने साथ लेकर यहां आया हूं। आज मैं यहां आपके मध्य उपस्थित हूं। आचार्य जी ने ऋषि जन्मभूमि न्यास के अधिकारियों से निवेदन के शब्दों में कहा कि यह हम सबके गुरु की जन्म भूमि है। हमारे गुरु की जन्मभूमि विश्व के सभी महापुरुषों की जन्मभूमियों से अच्छी होनी चाहिये। हमें इस काम को करना है। इसके लिये धन का अभाव नहीं होगा। राजभवन में मेरे द्वार ऋषि के अनुयायियों के लिये हमेशा खुले हैं। आप मुझे जितना सहयोग करने के लिये कहेंगे, मैं उससे अधिक सहयोग करुगां। आचार्य जी ने कहा कि यदि ऋषि दयानन्द न होते तो मैं आज जो हूं, जिस रूप में हूं, वह कदापि न होता। हम सबको मिलकर उनका भव्य स्मारक बनाना चाहिये। ऋषि का स्मारक ऐसा बनना चाहिये जिससे भावी पीढ़ियां प्रेरणा ले सकें। आचार्य देवव्रत जी ने यह भी कहा कि ऋषि जन्मभूमि में ऋषिभक्तों और पर्यटकों के लिये आधुनिक व्यवस्थायें एवं सुविधायें होनी चाहियें।
गुजरात के राज्यपाल महोदय आचार्य देवव्रत जी ने डी.ए.वी. स्कूल एवं कालेज प्रबन्ध समिति के प्रधान यशस्वी श्री पूनम सूरी जी की ऋषि-भक्ति एवं भावनाओं की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि श्री पूनम सूरी जी के हृदय में ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज के प्रति गहरी श्रद्धा एवं निष्ठा है। उन्होंने बताया कि श्री पूनम सूरी जी ने मुझे कहा है कि टंकारा व राजकोट के मध्य एक डी.ए.वी. स्कूल व कालेज खोलेंगे। उस स्कूल की समस्त आय ऋषि जन्मभूमि न्यास, टंकारा को प्राप्त होगी। आचार्य देवव्रत जी ने कहा कि प्रस्तावित डी.ए.वी. स्कूल व कालेज के लिए स्थान व अन्य सुविधायें गुजरात सरकार प्रदान करेगी।
आचार्य देवव्रत जी ने कहा कि टंकारा में ऋषि दयानन्द का स्मारक भव्य व विश्वस्तरीय होना चाहिये। गुजरात सरकार इस कार्य में न्यास को अपना पूर्ण सहयोग प्रदान करेगी। उन्होंने कहा कि महाशय धर्मपाल जी, एम.डी.एच. ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज के निष्ठावान भक्त हैं और आर्यसमाज के भामाशाह हैं। वह 97 वर्ष की आयु में भी ऋषि के मिशन को पूरा करने के लिये तन, मन व धन से लगे हुए हैं। वह इस अवस्था में भी दिल्ली से टंकारा आये हैं। आचार्य देवव्रत जी, राज्यपाल-गुजरात राज्य ने दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा के मंत्री श्री विनय आर्य जी की भी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि श्री विनय आर्य महात्मा धर्मपाल जी का ध्यान रखते हैं। राज्यपाल महोदय ने कहा कि आज महाशय धर्मपाल जी ने ऋषि दयानन्द जन्मभूमि न्यास, टंकारा को दो करोड़ रुपये की सहायता राशि दी है जिससे न्यास वा स्मारक को नवीन व भव्य रूप दिया जायेगा। आचार्य देवव्रत जी ने आगे कहा कि ऋषि दयानन्द जी के घर के पुराने स्वरूप को सुरक्षित रखना चाहिये। यहां जो स्मारक बने उसमें ऋषि के उस समय के घर को जैसा वह था, वैसा ही प्रस्तुत किया जाये। उसमें किसी प्रकार का आधुनिकीकरण व परिवर्तन नही होना चाहिये। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द के वर्तमान जन्म-गृह को देखकर उनके पुराने घर का अहसास नहीं होता। आचार्य जी ने कहा कि सरदार पटेल जी के जन्म गृह पर जो स्मारक बना है उसका रूप व स्वरूप उनके पुराने घर के जैसा ही है। उसमें किसी प्रकार का किंचित परिवर्तन नहीं किया गया है। आचार्य जी ने माण्डवी में ऋषि दयानन्द के शिष्य पंडित श्यामजी कृष्ण वर्मा जी के भव्य स्मारक का उदाहरण दिया और कहा कि उनके स्मारक स्थल पर उनके घर के स्वरूप से किसी प्रकार की छेड़छाड़ व आधुनिकीकरण नहीं किया गया है। पच्चीस लाख लोग पं. श्यामजी कृष्ण वर्मा के उस भव्य स्मारक को देख चुके हैं। ऋषि दयानन्द के टंकारा में प्रस्तावित स्मारक में उनका घर वैसा ही बनाया जाये जैसा वह मूल रूप में था। इस स्मारक को देखकर दर्शक, ऋषिभक्त व पर्यटक यह अनुभव कर सकें कि ऋषि दयानंद के जीवनकाल में उनका रहन सहन कैसा था। कैसे उन दिनों लोग रहा करते थे। आचार्य देवव्रत जी ने महाशय धर्मपाल जी के कार्यों व भावनाओं की प्रशंसा की।
आचार्य देवव्रत जी ने महात्मा सत्यानन्द मुंजाल जी की भी प्रशंसा की। उन्होंने उनकी पुण्य स्मृति को प्रणाम किया। आचार्य देवव्रत जी के व्याख्यान से कुछ समय पूर्व महात्मा सत्यानन्द मुंजाल जी के जीवन एवं कार्यों पर एक ग्रन्थ का विमोचन आचार्य जी के ही कर-कमलों द्वारा किया गया था। आचार्य देवव्रत ने कहा कि मेरा सौभाग्य है कि मुझे उनके जीवन पर प्रकाशित ग्रन्थ को लोकार्पण करने का सौभाग्य मिला। आचार्य जी ने दोहराया कि ऋषि दयानन्द जी का भव्य स्मारक ऋषि की जन्म-भूमि पर उनके गौरव के अनुरूप अवश्य बनना चाहिये।
आचार्य देवव्रत जी ने कहा कि वह गुजरात राज्य से पूर्व हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल रहे हैं। अंग्रेजों ने वहां राजभवन का निर्माण कराया था। उन दिनों अंग्रेजों का अपने प्रकार का खानपान होता था। उन्होंने वहां पर एक मयखाना (मदिरालय या बार) बना रखा था। वह मयखाना पूर्व राज्यपालों का सहयोग करता रहा। मैंने उसे जड़-मूल से उखड़वाया और वहां पर एक यज्ञशाला का निर्माण कराया था। मेरे कार्यकाल में वहां प्रतिदिन यज्ञ होता रहा। आचार्य जी ने कहा कि उनके पिता आर्यसमाजी थे। वह दैनिक यज्ञ करते थे। घर के लोगों को नाश्ता व भोजन तब मिलता था जब सब यज्ञ कर लेते थे। आचार्य जी ने कहा कि हिमाचल व गुजरात के राज-भवनों में उन्होंने दुग्धपान के लिये गऊवें भी पाली हैं।
आचार्य देवव्रत जी ने श्रद्धा में भरकर विनम्र शब्दों में कहा कि मुझे अपने गुरु की जन्म भूमि में आने का अवसर मिला, यह मेरा सौभाग्य है। मैंने गुजरात राजभवन में यज्ञशाला बनवाई है। यज्ञशाला में दैनिक यज्ञ किया जाता है। राजभवन में गिर नस्ल की गाय को रखने की व्यवस्था भी कर दी है। आचार्य जी ने कहा कि हम अपने गुरु महर्षि दयानन्द का ऋण कभी नही ंचुका सकते। आचार्य जी ने आर्यसमाज के स्वर्णिम नियमों की भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि आर्यसमाज के कुछ नियम तो संयुक्त राष्ट्र संघ के नियम होने चाहियें। आचार्य देवव्रत जी ने आर्य जनता का आह्वान करते हुए कहा कि अपने-अपने क्षेत्रों में वेदों की मशाल को बुझने मत देना। उन्होंने लोगों को युवा पीढ़ी को आर्यसमाज में लाने का प्रयास करने का भी आह्वान किया। उन्होंने आगे कहा कि पूरा विश्व एक परिवार है और इसे इस रूप में ही विकसित किया जाना चाहिये। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये आर्यसमाज को प्रयास करने चाहियें।
आचार्य जी ने कहा कि आर्यसमाज के नेतृत्व में अन्धविश्वासों एवं सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध आन्दोलन चलना चाहिये। आचार्य जी ने कहा कि मैं टंकारा आया और यहां मुझे सब आर्यों के दर्शन करने का सौभाग्य मिला। आचार्य जी ने न्यास की भव्यता में वृद्धि करने की अपील की। उन्होंने कहा कि यहां आकर ऋषि भक्तों को लगना चाहिये कि उन्हें टंकारा की यात्रा करके मजा आ गया। ऐसा अनुभव होने पर यहां हर वर्ष आर्यों की संख्या दोगुनी हो सकती है। आचार्य जी ने टंकारा न्यास को अपनी ओर से 11 लाख रुपयों की धनराशि दान दी। इससे पूर्व भी आचार्य जी ने एक प्रचार वाहन के लिये 11 लाख रुपये दान किये थे। आचार्य ही के व्याख्चयान को विराम देने के बाद राष्ट्रगान हुआ। इसी के साथ यह आयोजन व सभा समाप्त हुई। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य