1857 की क्रांति में भाग लेने में जहां तक जनपद बुलंदशहर (वर्तमान जनपद गौतमबुद्घ नगर व गाजियाबाद सहित) का सवाल है तो क्रांति में इसकी भूमिका अतीव महत्वपूर्ण थी। बुलंदशहर में कोई बड़ी छावनी नही थी। यहां क्रांति का उभार तीन दिन बाद ही उस समय देखने को मिला जब दिल्ली से मेरठ सैनिकों से प्रेरित पंडित नारायण शर्मा अलीगढ़ से बुलंदशहर आए। वे रात को बैरक में ठहरे और 9वीं पलटन के सैनिकों को क्रांति के लिए प्रेरित किया। दादरी और सिकंद्राबाद के गूजरों ने पंचायत करके क्रांति करने का फैसला किया। उन्होंने यातायात एवं संचार साधन ठप्प कर दिये। बुलंदशहर कारागार के संतरियों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने कारागार के फाटक खोल दिये और सभी कैदियों का आह्वान किया कि वे बाहर जाकर क्रांति में सहयोग दें। क्रांतिकारियों ने हापुड़ और बुलंदशहर के बीच तार के खंभों पर अपना अधिकार कर लिया था। 31 मई को सिकंद्राबाद सरकारी कार्यालय ध्वस्त कर दिये गये तथा कोषागार लूट लिया गया।
परंतु क्रांतिकारियों में किसी प्रभावशाली व्यक्ति के न होने के कारण गति में तीव्रता नही आ रही थी। इसकी कमी मालागढ़ के नवाब वलीदाद खां के आ जाने से पूरी हो गयी। यह बहुत गतिशील अंग्रेज विरोधी तथा क्रांतिकारी नवाब था जिसका हिंदुओं तथा मुसलमानों पर समान रूप से गहरा प्रभाव था। बारहबस्ती के पठान उसके कारण पूरी शक्ति के साथ क्रांति के सहयोगी बने। वलीदाद खां इतना शक्तिशाली था कि उसने 11 जून 1857 को हाथ से निकले बुलंदशहर को क्रांतिकारियों की सहायता से दुबारा अपने अधिकार में कर लिया। यहां तक कि अलीगढ़ से दिल्ली तक के राजमार्ग पर वलीदाद खां का पूरा नियंत्रण स्थापित हो गया था। बुलंदशहर जनपद से अंग्रेजी राज के पूरी तरह समाप्त हो जाने के बाद दिल्ली सम्राट बहादुरशाह जफर ने वलीदाद खां को सूबेदारी के अधिकार दे दिये थे। इस प्रकार, सूबेदारी की सनद मिलने पर वलीदाद खां के शासन ने बुलंदशहर में कानूनी रूप भी ले लिया था। परंतु वलीदाद खां यह भली भांति जानता था कि सूबेदारी की सनद राजसुख भोगने का नही बल्कि कांटों भरा ताज है। 18 जून 1857 को मेजर थेचर ने अपनी सेना के साथ बुलंदशहर पर धावा बोला। 20 जून को उन्होंने मालागढ़ पर आक्रमण किया। परंतु इस्माइल खां के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी सेना की पीट पीटकर पीछे खदेड़ दिया। वलीदाद खां इतना शक्तिशाली योद्घा था कि सितंबर 1857 तक उसने मालागढ़ की स्वतंत्रता पर आंच नही आने दी। परंतु वलीदाद खां अंग्रेजों की नजरों में हर समय किरकिरी की तरह खटकता था।
4 सितंबर को ग्रीथड़ की सुसज्जित सेना ने हिंडन पार की। 26 सितंबर को यह दादरी पहुंचा। ग्रीथड़ का उद्देश्य मालागढ़ में वलीदाद खां की शक्ति नष्टï करना था। 28 सितंबर को वह बुलंदशहर की सीमाओं तक आ पहुंचा। शीघ्र ही घमासान युद्घ प्रारंभ हो गया जो चार घंटे चला। अंग्रेजों के पास शस्त्रास्त्र अधिक थे। क्रांतिकारियों के पास सीमित साधन थे। 300 क्रांतिकारी शहीद हो गये। अंग्रेज केवल 31 ही काम आए।
बुलंदशहर पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। उन्होंने मालागढ़ पर हमले की तैयारियां शुरू कर दी। वलीदाद खां ने मालागढ़ का दुर्ग पहले ही छोड़ दिया था जिस पर ग्रीथड़ ने अधिकार कर लिया। अक्टूबर में बुलंदशहर पर अंग्रेजी राज का झण्डा फिर से फहराने लगा। बुलंदशहर में क्रांति का वेग जितना ही प्रबल था, उतना ही प्रबल दमन चक्र भी चलाया गया। पूरे जिले से पकड़ पकड़ कर क्रांतिकारी बुलंदशहर लाए जाते थे। जेल में और मलकाचौक में पेड़ों पर रस्सियां बांध बांधकर उन्हें फांसियां दी जाती थीं। कचहरी के चौराहे के पास एक विशाल आम के पेड़ पर तड़फती हुई लाशें दिखा-दिखाकर नागरिक आतंकित किये जाते रहे। तभी से उस चौराहे पर यद्यपि आम का पेड़ नही है परंतु उसका नाम कत्लेआम या काला आम पड़ गया और उसे इसी नाम से पुकारा जाता है। इसके बाद उन देशद्रोहियों केा इनाम दिये गये जिन्होंने देश के साथ गद्दारी की थी। 6000 रूपये के लगान वाले गांव बागी करार करके गद्दारों को उपहार में दिये गये। इनमें वे 24 गांव भी थे जो बल्लभगढ़ के अमर शहीद राजा नाहर सिंह की जमींदारी में थे। जिन देशद्रोहियों को जायदादें मिलीं उनके नाम हैं-मुहम्मद अली खां, फैजअली, पहासू के इगदाद अली, धर्मपुर के जहूर अली, कुचेसर के राम गुलाब सिंह। देशभक्त गूजरों के आठ गांव रतन सिंह को दिये गये। सिकंद्राबाद और अगोठा के कुछ गद्दार जाटों-रतन सिंह, शादीराम और झण्डा सिंह को देशभक्तों के गांव जब्त कर दे दिये। अनूपशहर क्षेत्र में एक गद्दार जाट खुशीराम को देशभक्त जाटों के साथ गद्दारी के परिणामस्वरूप भरपूर इनाम दिया। हाथरस के गद्दार राजा गोविंद सिंह को बराल, बेगाम, अख्त्यारपुर, धमेड़ा, सुखिया और जसनोठी गांव जागीरदारी में दे दिये गये।
20 सितंबर 1857 को कर्नल ग्रीथड़ ने दादरी के आसपास के क्षेत्रों में गुलामी थोप दी। शिकारपुर के अनेक देशभक्त सैयदों ने क्रांति में भाग लिया था। उन्हें सरे आम फांसियों पर लटकाया गया। इस प्रकार धीरे धीरे पूरा बुलंदशहर जनपद जो क्रांति में सीना तानकर खड़ा था प्रतिक्रांति के रक्त में डुबोकर रख दिया गया।
दादरी, दनकौर, ककोड़ क्षेत्रों के स्वतंत्रता सैनानियों का व्यौरा:
1. अमर सिंह पुत्र उमराव सिंह ग्राम पाली 2. ईश्वरीय पुत्र छिदन लाल वैश्य, दनकौर। 3. करन सिंह पुत्र श्री भवानी, दनकौर 4. कल्याण सिंह पुत्र नारायण सिंह, दादरी 5. किशोरी लाल पुत्र श्री कल्लन मल रबूपुरा, ककोड़ । 6 किशनलाल पुत्र श्री शिवचरण सिंह निवासी बादलपुर। 7. केवल सिंह पुत्र हरदयाल ठाकुर मिर्जापुर, दनकौर। 8. खूबी सिंह पुत्र उदय सिंह, नयाबांस। 9 खेम सिंह पुत्र प्रेमस्वरूप मिर्जापुर, दनकौर 10. गणेशीलाल पुत्र श्री चतर सिंह, घोड़ी 11. गोपीचंद पुत्र फतह चंद निवासी दादरी। 12. चेतराम पुत्र सुजान सिंह निवासी धनौरी, दनकौर। 13. छिद्दा सिंह पुत्र शीशराम निवासी खटाना धीरखेड़ा। 14. छिद्दा सिंह पुत्र श्री राम सिंह, खटाना, धीरखेड़ा, दादरी। 15 जगत सिंह पुत्र अमर सिंह निवासी डासना,। 16 जगदीश प्रसाद पुत्र गंगा सहाय निवासी चिटैहरा। 17. टीकम सिंह रावल उर्फ संग्राम सिंह पुत्र श्री राजाराम सिंह निवासी ेग्राम धूम मानिकपुर। 18. ढक्कन लाल पुत्र नौबत सिंह निवासी चचूला दनकौर। 19. तेजराम पुत्र श्री मेघराज निवासी ग्राम छपरौला। 20. दिनेश कृष्ण गर्ग पुत्र श्री बेनी कृष्ण निवासी दनकौर। 21. दिलीप सिंह पुत्र श्री राम स्वरूप निवासी रामपुर दनकौर।
22. धन सिंह पुत्र गंगा सहाय निवासी छलेरा, दादरी। 23. धर्मपाल पुत्र श्री शिवलाल निवासी मिर्जापुर, दनकौर। 24. धर्म सिंह पुत्र श्री तोता सिंह निवासी दनकौर। 25. नत्थू सिंह पुत्र श्री जीत सिंह निवसी निठारी। 26. नारायण दास गर्ग पुत्र चुन्नीमल निवासी जारचा। 27. प्रसादी लाल पुत्र श्री मान सिंह निवासी बिरौंडी। 28. प्रभू सिंह पुत्र श्री नारायण दास निवासी ककोड़। 29. फतह सिंह पुत्र श्री अमीचंद निवासी अच्छेजा। 30. भजन सिंह पुत्र श्री टूंडा निवासी बिसाहड़ा, दादरी। 31. मंगत पुत्र श्री न्यादर सिंह निवासी छलेरा बांगर। 32. महीपाल सिंह पुत्र रोशन दयाल निवासी पारसौल । 33. मेहर सिंह पुत्र श्री हरलाल सिंह निवासी ककोड़। 34. मोती सिंह पुत्र श्री खुशीराम निवासी छांयसा, दादरी। 35. मोती सिंह पुत्र श्री काशीराम निवासी छांयसा, दादरी। 36. रघुबीर शरण पुत्र श्री बिसंभर सहाय जैन निवासी बिलासपुर दनकौर। 37. रघुवीर शरण पुत्र श्री गणेशीलाल दनकौर। 38. रामभूल सिंह पुत्र रूप सिंह निवासी बिरौंडी, दादरी। 39. रालू राम पुत्र श्री बैजनाथ निवासी ककोड़ 40. रिसाल पुत्र श्री चिल्का निवासी ग्राम तिलपता दादरी। 41. रेवती प्रसाद पुत्र श्री रामसहाय निवासी दादरी, 42. लखमी पुत्र श्री कुराज सिंह निवासी छपरौला। 43. लखमी चंद पुत्र श्री दुर्गाप्रसाद निवासी चिटैहड़ा। 44. लज्जाराम पुत्र श्री इनायत सिंह निवासी ग्राम छपरौला 45. लायक राम पुत्र श्री हरवंश निवासी ग्राम अच्छेजा दादरी। 46 लायक सिंह पुत्र श्री बलदेव सिंह निवासी सैनी दादरी। 47. लाल सिंह पुत्र श्री करन सिंह निवासी ग्राम बिसाहड़ा। 48. लेखाराम पुत्र श्री सुल्लन सिंह निवासी दनकौर। 49. विष्णु शर्मा पुत्र श्री गंगा सहाय निवासी ग्राम डेवटा। 50. शिवचरण सिंह पुत्र श्री किच्चू सिंह निवासी तिलपता। 51. श्री गोपाल पुत्र श्री भगवान दास निवासी रूपवास। 52. सुनील कुमार पुत्र श्री सूरजभान निवासी दादरी। 53. हरचंद पुत्र श्री गंगा सहाय निवासी ग्राम छलेरा। 54. हरवंश पुत्र श्री अनंत राम निवासी ग्राम अच्छेजा दादरी। 55. हरवंश लाल पुत्र श्री रामदास निवासी दादरी। 56. हीरालाल पुत्र श्री देशराज निवासी ककोड़। 57. हेतराम पुत्र श्री विशाल निवासी ग्राम अच्छेजा।
(आचार्य दीपांकर
स्वाधीनता आंदोलन और मेरठ )
One reply on “1857 की क्रांति में बुलंदशहर, दादरी क्षेत्र का योगदान”
1857 की क्रांति भारतीय इतिहास मे अत्यंत गहरी छाप छोड़ने वाली घटना है, इतिहास संवंधी अनेक पुस्तकें पढ़ने के उपरांत भी किसी स्थान विशेष की इतनी गूढ़ जानकरी नही मिल पाती है। इस लेख के द्वारा जनसाधारण मे अमर बलिदानियों के द्वारा दी गई प्राण आहुति का विस्तृत ज्ञान प्रवाहित किया जा सकता है। यह एक अत्यंत सराहनीय और उपयोगी कदम है।
भारतीय आजादी के समस्त वीरो को कोटि कोटि नमन🙏