प्रस्तुति श्रीनिवास आर्य
सन् 1937 में जब हिंदू महासभा काफी
शिथिल पड़ गई थी और हिंदू जनता गांधी
जी की ओर झुकती चली जा रही थी, तब
भारतीय स्वाधीनता के लिए अपने परिवार
को होम देनेवाले तरुण तपस्वी स्वातंत्र्य वीर
सावरकर कालेपानी की भयंकर यातना एवं
रत्नागिरि की नजरबंदी से मुक्त होकर भारत
आए। स्थिति समझकर उन्होंने निश्चय किया
कि राष्ट्र की स्वाधीनता के निमित्त
दूसरों का सहयोग पाने के लिए सौदेबाजी
करने की अपेक्षा हिंदुओं को ही संगठित
किया जाए।
वीर सावरकर ने सन् 1937 में अपने प्रथम
अध्यक्षीय भाषण में कहा कि हिंदू ही इस देश
के राष्ट्रीय हैं और आज भी अंग्रेजों को
भगाकर अपने देश की स्वतंत्रता उसी प्रकार
प्राप्त कर सकते हैं, जिस प्रकार भूतकाल में उनके
पूर्वजों ने शकों, ग्रीकों, हूणों, मुगलों, तुर्कों
और पठानों को परास्त करके की थी। उन्होंने
घोषणा की कि हिमालय से कन्याकुमारी
और अटक से क़टक तक रहनेवाले वह सभी धर्म,
संप्रदाय, प्रांत एवं क्षेत्र के लोग जो भारत
भूमि को पुण्यभूमि तथा पितृभूमि मानते हैं,
खानपान, मतमतांतर, रीतिरिवाज और
भाषाओं की भिन्नता के बाद भी एक ही
राष्ट्र के अंग हैं क्योंकि उनकी संस्कृति,
परंपरा, इतिहास और मित्र और शत्रु भी एक हैं
– उनमें कोई विदेशीयता की भावना नहीं है।
वीर सावरकर ने अहिंदुओं का आवाहन करते हुए
कहा कि हम तुम्हारे साथ समता का व्यवहार
करने को तैयार हैं परंतु कर्तव्य और अधिकार
साथ साथ चलते हैं। तुम राष्ट्र को पितृभूमि
और पुण्यभूमि मानकर अपना कर्तव्यपालन
करो, तुम्हें वे सभी अधिकार प्राप्त होंगे जो
हिंदू अपने देश में अपने लिए चाहते हैं। उन्होंने
कहा कि यदि तुम साथ चलोगे तो तुम्हें लेकर,
यदि तुम अलग रहोगे तो तुम्हारे बिना और
अगर तुम अंग्रेजों से मिलकर स्वतंत्रता संग्राम में
बाधा उत्पन्न करोगे तो तुम्हारी बाधाओं के
बावजूद हम हिंदू अपनी स्वाधीनता का युद्ध
लड़ेंगे।
हैदराबाद का सत्याग्रह
मुख्य लेख : हैदराबाद सत्याग्रह
इसी समय मुस्लिम देशी रियासतों में अंग्रेजों
के वरदहस्त के कारण वहाँ के शासक अपनी हिंदू
जनता पर भयंकर अत्याचार करके उनका जीवन
दूभर किए हुए थे, अतएव हिंदू महासभा ने
आर्यसमाज के सहयोग से निजाम हैदराबाद के
पीड़ित हिंदुओं के रक्षार्थ सन् 1939 में ही
संघर्ष आरंभ कर दिया और संपूर्ण देश से हजारों
सत्याग्रही निजाम की जेलों में भर गए।
हैदराबाद के निजाम ने समझौता करके हिंदुओं
पर होनेवाले प्रत्यक्ष अत्याचार बंद कराने
की प्रतिज्ञा की।
सन् 1936 के निर्वाचनों में जब मुस्लिम लीग के
कट्टर अनुयायी चुनकर गए और हिंदू सीटों पर
कांग्रेसी चुने गए, जो लीग की किसी भी
राष्ट्रद्रोही माँग का समुचित् उत्तर देने में
असमर्थ थे, तब पाकिस्तान बनाने की माँग
जोर पकड़ती गई। हिंदु महासभा ने अपनी
शक्ति भर इसका विरोध किया।
भागलपुर का मोर्चा
सन् 1941 में भागलपुर अधिवेशन पर अंग्रेज गवर्नमेंट
की आज्ञा से प्रतिबंध लगा दिया गया कि
बकरीद के पहले हिंदू महासभा अपना अधिवेशन
न करे, अन्यथा हिंदू मुस्लिम दंगे की संभावना
हो सकती है। वीर सावरकर ने कहा कि
हिंदुमहासभा दंगा करना नहीं चाहती, अत:
दंगाइयों के बदले शांतिप्रिय नागरिकों के
अधिकारों का हनन करना घोर अन्याय है।
वीर सावरकर लगभग 5,000 प्रतिनिधियों के
साथ भागलपुर जा रहे थे कि अंग्रेजी सरकार ने
उन्हें गया में ही रोककर गिरफ्तार कर लिया।
भाई परमानंद, डॉ॰ मुंजे, डॉ॰ श्यामाप्रसाद
मुखर्जी आदि नेता भी बंदी बनाए गए, फिर
भी न केवल भागलपुर में वरन् संपूर्ण बिहार प्रांत
में तीन दिनों तक हिंदू महासभा के अधिवेशन
आयोजित हुए जिसें वीर सावरकर का भाषण
पढ़ा गया तथा प्रस्ताव पारित हुए।
घोर विरोध के बावजूद
पाकिस्तान की स्थापना
हिंदू महासभा के घोर विरोध के पश्चात् भी
अंग्रेजों ने कांग्रेस को राजी करके मुसलमानों
को पाकिस्तान दे दिया और हमरी परम
पुनीत भारत भूमि, जो इतने अधिक आक्रमणों
का सामना करने के बाद भी कभी खंडित
नहीं हुई थी, खंडित हो गई। हिंदू महासभा के
नेता महात्मा रामचन्द्र वीर (हिन्दु सन्त,
कवि, लेखक) और वीर सावरकर ने विभाजन का
घोर विरोध किया। यद्यपि पाकिस्तान
की स्थापना हो जाने से मुसलमानों की
मुंहमाँगी मुराद पूरी हो गई और भारत में भी
उन्हें बराबरी का हिस्सा प्राप्त हो गया है,
फिर भी कितने ही मुसलिम नेता तथा
कर्मचारी छिपे रूप से पाकिस्तान का समर्थन
करते तथा भारतविरोधी गतिविधियों में
सहायक होते रहते हैं। फलस्वरूप कश्मीर, असम,
राजस्थान आदि में अशांति तथा विदेशी
आक्रमण की आशंका बनी रहती है।
वर्तमान समय में देश की परिस्थितियों को
देखते हुए हिंदू महासभा इसपर बल देती है कि
देश की जनता को, प्रत्येक देशवासी को
अनुभव करना चाहिए कि जब तक संसार के
सभी छोटे मोटे राष्ट्र अपने स्वार्थ और
हितों को लेकर दूसरों पर आक्रमण करने की
घात में लगे हैं, उस समय तक भारत की उन्नति
और विकास के लिए प्रखर हिंदू राष्ट्रवादी
भावना का प्रसार तथा राष्ट्र को
आधुनिकतम अस्त्रशस्त्रों से सुसज्जित होना
नितांत आवश्यक है।
मुख्य संपादक, उगता भारत