शांता कुमार
गतांक से आगे…
असेम्बली में बम के इस धमाके ने लंदन समेत विश्व की जनता के भी कान खोल दिये। अभी ब्रिटिश सरकार की छाती पर सांडर्स वध के घाव भरे भी न थे कि इस नये आघात से उसका वक्षस्थल चीत्कार कर उठा। चारों ओर नाकाबंदी करके सभी टेलीफोन और तारें सरकार ने अपने लिए सुरक्षित कर लीं। इस बम कांड के पीछे की योजना का पता लगाने के लिए सरकार बहुत छटपटाई। सारे नगर के धोबियों को इकट्ठा करके इन दोनों के कपड़ों की पहचान करके किसी सूत्र का पता लगाने का यत्न किया गया। नगर की सारी टाइप मशीनों का निरीक्षण करके लाल पर्चों को टाइप करने वाली मशीन की खोज की गयी। पर लाख सिर पटकने पर भ्ी सरकार के हाथ कुछ न लगा। अंग्रेजी सरकार के कुछ दुमछल्ले जिन्हें अपने देश से बढ़कर अंग्रेजी राज्य प्यारा था और जो उनके तलवे चाटने में अपना अहोभाग्य समझते थे। इस काण्ड की निंदा करने लगे। उन्हें उनकी नामसमझी पर क्षमा किया जा सकता है। परंतु दुर्भाग्य यह कि तब के प्रसिद्घ और माननीय नेता महात्मा गांधी भी इन देशभक्तों की निंदा करने में पीछे न रहे।
उन्हीं दिनों एक सिरफिरे मुसलमान ने एक हिंदू नेता महाशय राजपाल की हत्या कर दी थी। महात्मा गांधी ने असेम्बली काण्ड पर विचार प्रकट करते हुए कहा, जिस मनोवृत्ति ने राजपाल के हत्यारे को हत्या करने के लिए प्रेरित किया, वही मनोवृत्ति बम फेंकने के पीछे भी काम कर रही है। यह कितने दुर्भाग्य का विषय है कि गांधी जी जैसे नेता भी इन शहीदों की भावनाओं को न समझ सके। महाशय राजपाल की हत्या साम्प्रदायिक द्वेष के कारण की गयी थी जबकि बम फेंकने वालों का उद्देश्य विदेशी सरकार की तानाशाही के विरूद्घ आवाज उठाना था। इन दोनों घटनाओं को एक धरातल पर रखकर परखना इन शहीदों के प्रति एक महान अन्याय था।
जब अंग्रेजी राज्य का वही पुराना तमाशा आरंभ हुआ। भारतीय दण्ड विधान की धारा 307 तथा विस्फोट पदार्थ रखने के अपराध में अभियोग चला। जेल के ही एक कमरे को अदालत बनाकर मिस्टर फूल के न्यायालय में 7 मई 1929 को अभियोग आरंभ हुआ। श्री आसफअली अभियुक्तों की ओर से वकील थे।
भगत सिंह व दत्त को अपना वास्तविक उद्देश्य पूर्ण करने का अवसर मिला। उन दोनों ने जो ऐतिहासिक वक्तव्य दिया, उसके कुछ अंश इस प्रकार हैं-
हम यह स्वीकार करते हैं कि हमने असेम्बली में बम फेंका है। परंतु बम फेंकने का हमारा उद्देश्य महान था और इतिहास में उसे सदा एक महत्वपूर्ण कार्य के रूप में याद किया जाएगा। हमें मनुष्यता के प्रति प्रेम किसी से कम नही है और किसी व्यक्ति के विरूद्घ घृणा भाव तो दूर रहा, हम मनुष्य जीवन को वास्तविक रूप में पवित्र समझते हैं। हम उस प्रकार के घिनौने कुकृत्य करने वाले कलंक नही हैं, जैसे कि दीवान चमनलाल या लाहौर का ट्रिब्यून और कुछ अन्य लोग हमें बताते हैं। असेम्बली द्वारा पास किये गये पुनीत प्रस्ताव नगण्य समझकर घृणा से पैरों तले कुचले गये हैं और वह भी कहां? यहां इस नामधारी भारतीय पार्लियामेंट के भवन में इस निर्दय प्रहार ने हमारे हृदय के भीतर से वेदना का वह आक्रोश जबरदस्ती बाहर खींच लिया। इसलिए एक समय गवर्नन जनरल की कार्यकारिणी के सदस्य श्री दास के अपने पुत्र को लिखे शब्दों कि इंग्लैंड को अपने सुख स्वप्न से जगाने के लिए बम जरूरी है, को याद करके असेम्बली के फर्श पर बम फेंक दिये हमारा उद्देश्य यह था कि हम बहरों के कान खोल दें। बेपरवाहों और अन्य मनस्कों को चेतावनी दे दें। ये नई हलचलें जो देश में पैदा हुई हैं, उन आदर्शों द्वारा प्रेरित हुई है, जिनके द्वारा गुरू गोविंद सिंह शिवाजी तथा वाशिंगटन जैसे लोग प्रेरित हुए थे बम ने सिर्फ उतना ही काम किया, जितने के लिए वे बनाए गये थे स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्घ अधिकार है। यदि हमारी बातों की ओर ध्यान न दिया गया तो एक भयंकर युद्घ होगा। सब बाधाएं उखाड़कर फेंक दी जाएगी और सर्वजन सत्ता की स्थापना होगी, इंकलाब जिंदाबाद।
इस वक्तव्य में क्रांति के उद्देश्यों की विद्वतापूर्ण और विस्तृत व्याख्या दी गयी थी। इस वक्तव्य को भारत के सभी समाचार पत्रों ने प्रकाशित करके क्रांति के उद्देश्यों के प्रचार में सहायता दी।
न्यायालय ने दोनों को आजीवन कारावास का दण्ड प्रदान किया। हाईकोर्ट ने भी 13 जनवरी सन 1930 को उस निर्णय पर अपनी स्वीकृति की छाप लगा दी। इन दोनों के अतिरिक्त सरकार और किसी पर हाथ न रख सकी। सांडर्स का मामला अभी तक रहस्य बना हुआ था।
सुखदेव दिल्ली से लाहौर चला गया और कश्मीरी बिल्डिंग में बम बनाने की फेेक्टरी आरंभ की। यह स्वभाव से बड़ा लापरवाह और सनकी था, पर साथ ही संगठन कुशलता का माहिर था। यशपाल तथा शिवधर्मा को बुलाकर तथा सब सामान जुटाकर बम फैक्टरी चालू हो गयी। किसी और के नाम से बमों के खोल ढालने का ऑर्डर एक मिस्त्री गुलाम रसूल को दिया गया। उसे इस आकार के लोहे के इतने खोल बनाए जाने की बात समझ में न आई। एक पुलिस का सिपाही उसका परिचित था। उसने सिपाही से बात की। दोनों को कुछ संदेह हुआ। उन खोलों को ले जाते हुए किशोरीलाल का पीछा किया गया और उसे कश्मीरी बिल्डिंग में प्रवेश करते सिपाही ने देख लिया। यशपाल ने मामले को कुछ भांपा और सुखदेव से बात भी की, परंतु उसने अपने स्वभाव के कारण कोई ध्यान न दिया।
पुलिस को यह भी पता लग गया था कि जो बम असेम्बली में गिराए गये हैं उनके खोल इन खोलों से मिलते जुलते हैं। 15 अप्रैल 1929 को पुलिस की भारी गारद ने उसे मकान को घेर लिया। सुखदेव किशोरीलाल व जयगोपाल पकड़े गये। तलाशी में बड़ी संख्या में बम तथा बम बनाने का सामान मिला। यशपाल उस समय मकान के बाहर था और मकान की ओर आ ही रहा था। मामला भांपकर अपने कपड़े बदलकर वह लाहौर से भाग गया और कांगड़ा की पहाड़ियों में जा छिपा। उसी दिन लाहौर के रोशनी गेट के पास दशहरे के दिन एक बम विस्फोट हो गया। उसमें कई लोग घायल हुए तथा कुछ मर गये। इस बम कांड के कारण भी कुछ लोग पकड़ में आ गये। क्रमश: