आकर्षण से चल रहा,
ये सारा ब्रह्माण्ड ।
आकर्षण जब टूटता,
होता है कोई काण्ड॥ 1254॥
व्याख्या :- परमपिता परमात्मा ने इस दृश्यमान सृष्टि को बड़े ही वैज्ञानिक तरीके से बनाया है ।सारी सृष्टि मर्यादित है , अनुशासित हैं अर्थात् नियमों में बंधी हुई है । ग्रह , उपग्रह , नक्षत्र , वनस्पति और सारा प्राणी – जगत आकर्षण के नियम से बंधा हुआ है । इन सब का मुख्य केंद्र परमपिता परमात्मा है , जैसे :- चंद्रमा पृथ्वी की आकर्षण शक्ति से गतिशील है जबकि पृथ्वी समेत सौरमण्डल के सभी ग्रह सूर्य की आकर्षण शक्ति के कारण अपनी – अपनी कक्षा में गतिशील हैं । अनेकों सूर्यो का आकर्षण का केंद्र वह परमपिता परमात्मा है , जिसने यह सारा ब्रह्माण बनाया है । उसके सामने सभी नतमस्तक है । उसी के संकेत पर अणु – परमाणु तक भी गतिशील है । सौरमण्डल में कुछ ग्रह ऐसे भी हैं जो आकर्षण के नियमों को तोड़कर चलते हैं । इनका कोई निश्चित मार्ग नहीं होता है । इन्हें क्षुद्रग्रह अथवा आवारा ग्रह भी कहते हैं । यह कालांतर में या तो स्वयं नष्ट हो जाते हैं अथवा किसी ग्रह से टकरा जाते हैं , जिसके कारण अन्तरिक्ष में भीषण दुर्घटना होती है और उसके दूरगामी दुष्परिणाम होते हैं । ठीक इसी प्रकार समस्त प्राणी जगत को प्रेम तत्व के आकर्षण ने एकता के सूत्र में पिरोया हुआ है । जैसे ही प्रेम की डोरी टूटती है , तो कोई ना कोई अप्रिय दुर्घटना मानवीय सम्बन्धों में होती है । यह प्रेम नामक आकर्षण की डोरी दिखाई नहीं देती है किंतु इसकी शक्ति अपार और अतुल्नीय है। मानवीय परिवार में प्रेम नामक डोरी से बढ़ा हुआ है , जो अदृश्य होकर भी एक दूसरे को आकर्षित करती है , जैसे :-प्रेमशून्य परिवार बेशक एक छत के नीचे रहता हो , तो फिर भी मुंह चढ़े रहते हैं और यदि प्रेम है तो बेशक व्यक्ति हजार किलोमीटर की दूरी पर बैठा हो , वह परिवार से जुड़ा रहता है , उर्जान्वित होता रहता है । ठीक इसी प्रकार यदि मनुष्य प्रभु-प्रेम की आकर्षण डोरी से जुड़ा हुआ है , तो वह उर्जान्वित होता रहता है । उसके तन , मन और बुद्धि पवित्र रहते हैं , ये सही दिशा में काम करते हैं अन्यथा आवारा ग्रह की तरह दुर्घटनाग्रस्त होते हैं । इसलिए ‘ भक्ति सूत्र ‘ में देव ऋषि नारद ने भक्ति की परिभाषा करते हुए कहां है :- ” परमपिता परमात्मा से अतिशय प्रेम भक्ति कहलाता है। ” भाव यह है कि हम सर्वदा परमात्मा से ऊर्जान्वित होते रहे , उससे जुड़े रहें , मर्यादित रहें , अनुशासित रहें ताकि मानवीय जीवन में सुख समृद्धि का वास हो । पृथ्वी पर नवजीवन का संचार सूर्य की राशिमयां करती है।जब नवप्रभात होता है , तो सूर्य की लाल-पीली किरणें अलसायी सृष्टि में नव- स्पूर्ति का संचार करती हैं। हमारा तन-मन ताजगी महसूस करता है । हमारी सोई हुई जठराग्नि पुनः प्रदीप्त होती है किंतु दोपहर के समय सूर्य की किरणें अपने शिखर पर होती हैं इसलिए उस समय भूख तेज होती है। शनैःशनैःशाम होती है, उस समय हमारी जठराग्नि शिथिल होने लगती है । इसलिए हमारे ऋषियों ने भोजन के बारे में यह व्यवस्था दी कि मनुष्य को प्रातराश (नाश्ता) हल्का करना चाहिए किन्तु दोपहर का भोजन भरपेट करना चाहिए जबकि शाम के समय हल्का भोजन करना ही स्वास्थ्य कर होता हैI
प्रोफेसर विजेंद्र सिंह आर्य
शेष अगले अंक में
मुख्य संपादक, उगता भारत