कई लोग जब किसी एक सीमा में बँध जाते हैं तब वहाँ बिना किसी बंधन के हमेशा बँधे हुए नजर आते हैं। ये लोग व्यापक और विराट सोच वाले नहीं होते हैं बल्कि सीमित दायरों और संकीर्ण सोच के साथ पूरा जीवन जैसे-तैसे निकाल देते है।
इन लोगों को अपने सीमित दायरों में ही रमे रहना अच्छा लगता है और तनिक भी बाहर की ओर झाँकना नहीं चाहते हैं। व्यवसाय और काम-धंधों में रमे रहने वाले लोगों के सिवा समाज में ऐसे खूब सारे लोग हैं जो रिटायरमेंट के बाद भी अपने द तरों और सरकारी गलियारों में आवागमन और बैठक का मोह छोड़ नहीं पाते।
इन लोगों को यह एक बुरी लत या तलब लगी होती है कि जब तक ये अपने पुराने डेरों में कुछ समय न गुजार लें, अपने पुरानों के साथ गपिया न लें तब तक इन्हें चैन नहीं पड़ता। भले ही इन्हें अपने द तरी संगी-साथी रहे लोग आदर-स मान दें या न दें, इनके पदार्पण पर मन ही मन कुढ़ने लगें। मगर इन लोगों को हमेशा यह भ्रम बना ही रहता है कि उन्हें यदि कहीं स मान मिल रहा है तो उनके पुराने डेरों में ही। जबकि शाश्वत सच यह है कि दो-चार फीसदी लोगों को छोड़ कर शेष सभी के लिए इनके पुराने डेराकर्मियों की सोच नकारात्मक ही होती है लेकिन इनके सामने व्यक्त नहीं कर पाते हैं क्योंकि कोई भी बुरा बनना नहीं चाहता है।
इस सत्य से नावाकिफ लोग रिटायरमेंट के बाद भी अपने पुराने डेरों की ओर आकर्षित होते रहते हैं। कुछ लोग चाय-काफी, नाश्ता, बीड़ी-सिगरेट आदि की तलब को पूरा करने के लिए अपने पुराने डेरों को सुरक्षित एवं स मानजनक मानते हैं जबकि बहुसं य लोग ऐसे हैं जिन्हें जमाने भर की हरकतों, हलचलों को सुने बगैर चैन नहीं पड़ता। और इसके लिए अपने डेरों से बढ़कर और कोई धर्मशाला या बैठक कहां मिलेगी। यों भी भूत का डेरा पीपल वाली कहावत ऐसे ही भूत हो चुके लोगों पर फबती भी है जो कल तक वर्तमान हुआ करते थे।
यही कारण है कि पुराने डेरों के प्रति आदमी का आकर्षण बना रहता है। इन लोगों की मन:स्थिति बहुत ही विचित्र होती है। कुछ लोग समय आने पर रिटायर हो जाते हैं जबकि कई लोग मन नहीं लगने और कई अन्य कारणों से रिटायरमेंट ले लेते हैं।
इन दोनों ही स्थितियों में रिटायरमेंट से पूर्व ये महापरिवर्तन के संकेतों भरी कल्पनाओं के महल खड़े कर लेते हैं, कई योजनाओं का निर्माण कर लेते हैं और हर रोज यह दृढ़ संकल्प दोहराते हैं कि रिटायर होने के बाद वे ये करेंगे, वो करेंगे।
इन लोगों को लगता है कि रिटायर होने के बाद वे वो सब कुछ कर लेंगे जो नौकरी की बंदिशों और समय की कमी के कारण नहीं कर पाए हैं। लेकिन जैसे ही रिटायर हो जाते हैं, दस-बारह दिन बाद वापस पुराने ढर्रों में बंध जाते हैं।
इनके लिए कर्त्तव्य कर्म गौण होकर टाईम पास करना समस्या बना रहता है। जबकि रिटायर लोग समाज का मस्तिष्क हैं जो समाज की सेवा कई माध्यमों से कर सकते हैं। यों भी यह समय इनका वानप्रस्थकाल होता है जिसमें अपने आपको समाजसेवा के लिए समर्पित कर देने का वक्त होता है। लेकिन ऐसा नहीं करते हुए पुराने डेरों का आकर्षण इतना प्रगाढ़ होता है कि कई लोग तो वहीं नौकरियों पर लग जाते हैं और स्वाभिमान व स मान खोकर भी पैसों को तवज्जो देते हुए जमे रहते हैं।
ऐसे लोगों को चिह्नित कर इनकी मंशाओं को भाँपकर इन्हें आजीवन सरकारी सेवाओं में बनाए रखा जा सकता है ताकि इनकी पूरी जिन्दगी गृहस्थाश्रम के उपभोग में बीतती रहे। जिनको वापस पुराने डेरों या समानधर्मा डेरों में दुबारा नौकरी का मौका नहीं मिल पाता है वे भी पुराने डेरों का आकर्षण छोड़ नहीं पाते।
हमारे अपने ही क्षेत्र को देखें तो कई सारे माननीय रिटायर महानुभाव अपने परित्यक्त द तरों में घण्टों बैंठे हुए गपियाते या चाय की चुस्कियां लेते हुए अथवा पुराने सहकर्मियों को किसी न किसी लालच में सहयोग करते हुए देखे जा सकते हैं।
जबकि ये ही लोग रिटायरमेंट से पहले किसी और तरह की मानसिकता में जी रहे होते हैं जहां उनके पुराने डेरे किसी प्राथमिकता में नहीं हुआ करते हैं। कुछ नुमाइंदे नौकरी में रहते हुए कामचोरी के सारे रिकार्ड तोड़ देते हैं और इनका पूरा समय दूसरों की चुगली, निंदा या जमाने भर का कचरा अपने दिमाग में भरने में बीतता रहता है।
इन लोगों के कारण द तरी माहौल भी खराब होने के कई किस्से चर्चाओं में होते हैं। रिटायरमेंट के बाद भी इन लोगों में जमाने भर की हलचलों को जानने, चुगली या निंदा-आलोचना करने तथा बात-बात में टांग फंसाने, बिना मांगे राय देने आदि की आदतें बनी रहती हैं और जब तक इनकी ये भूख-प्यास शांत न हो जाए, तब तक इन्हें न घर में चैन आता है, न बाहर किसी काम में।
ऐसे लोगों के लिए पुराने डेरे इनकी तृप्ति के लिए काफी होते हैं। यह वह समय होता है जब इनसे घर वाले भी परेशान रहते हैं, पुराने डेरे वाले भी, लेकिन कहने की हि मत किसी में नहीं होती। ऐसे लोग जब संसार से रिटायर होते हैं तब भी कोई इन्हें याद करने की स्थिति में नहीं होता क्योंकि समाज के लिए ये किसी काम के लिए नहीं होते।
इसलिए जिन लोगों को स्वस्थ और मस्त रहकर ल बी जिन्दगी जीनी हो, उन्हें चाहिए कि पुराने डेरों का मोह त्याग कर समाज के लिए कुछ नया करें, समाज की सेवा करें और नये-नये काम करें ताकि ताजगी बनी रहे। जो लोग परिवर्तन को स्वीकार नहीं करते हैं उनका अनचाहा परिवर्तन हमेशा नकारात्मक फल ही देता है।
रिटायर हुए हैं तो सच में रिटायर हों, वरना समय से पहले ही संसार से रिटायर होना पड़ेगा। इसके बाद भुलकर भी पुराने डेरों का रुख नहीं होगा क्योंकि तब प्रेतयोनि में ही विचरण करने की विवशता होगी। और भूतों से लोग कितना भय खाते हैं, यह सभी को पता है।
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– डॉ. दीपक आचार्य
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