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आज का चिंतन

प्रतिभाओं से खौफ खाते हैं नालायक और स्टंटबाज

– डॉ. दीपक आचार्य
9413306077

आजकल हर क्षेत्र में हुनरमंद और प्रतिभाशाली लोग अपने प्रतिस्पर्धियों से उतने दु:खी नहीं हैं जितने नालायकों और निक मों से। हर विषय और क्षेत्र में लोग अपनी प्रतिभाओं का प्रयोग करते हुए आगे बढ़ना चाहते हैं। ऐसे में सभी मामलों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा से प्रतिभाएं निखरती हैं और आगे बढ़ने के अवसरों का आनंद भी मिलता हैं।
इस दृष्टि से समानधर्मा लोगों में प्रतिस्पर्धा, निरन्तर सामीप्य और पारस्परिक समन्वय होना स्वाभाविक है और कई बार तीव्र स्पर्धाओं का लाभ सभी पक्षों और समाज तथा दुनिया को भी प्राप्त होता है लेकिन आज के युग में प्रतिभाओं के बीच प्रतिस्पर्धाओं का होना समस्या नहीं है बल्कि समस्या वे लोग हैं जो प्रतिभाशून्य हैं, आधे-अधूरे हैं और हर विषय पर अधिकार तथा हर क्षेत्र में दखल रखने की हरचंद कोशिशों में लगे रहते हैं और अपने अस्तित्व तथा श्रेष्ठता को प्रमाणित करने के लिए लोगों की चापलुसी, चरणवंदना, अभिनंदन-अभिवादन, साष्टांग दण्डवत, परिक्रमाओं झूठी प्रशस्ति का गान करने के साथ ही ऐसे-ऐसे गोरखधंधों, कुटिलताओं और षड़यंत्रों में रमे रहते हैं जो इंसान के लिए अशोभनीय, घृणित और शर्मनाक होने के दायरों में आते हैं।
ऐसे लोग हर इलाके में काफी सं या में पाए जाते हैं। अपने इलाके में भी ऐसे लोगों की भारी भीड़ है जो इंसानियत के सारे दायरों का परित्याग कर अपने उल्लू सीधे करने में लगी हुई है। ऐसे लोग अपने आपको बड़ा प्रतिभाशाली, सर्वश्रेष्ठ और अनन्य साबित करने के लिए तमाम प्रकार के जतन करते रहते हैं।
जहाँ और प्रतिभाशाली लोग हुआ करते हैं वहाँ अपनी दाल नहीं गले तो ऐसे लोग उन प्रतिभास पन्न लोगों केे पीछे पड़ जाते हैं और उन्हें अपने इलाकों से बेदखल करके ही दम लेते हैं। ये प्रतिभाहीन और चापलुसी करने वाले लोग कभी नहीं चाहते कि उनके इलाकों में कोई होशियार व हुनरमंद प्रतिभा बनी रहे जिसकी वजह से उन्हें न बर एक पर आने का मौका कभी न मिले।
इसलिए ये लोग कभी अपने नासमझ और इन्हीं की तरह विघ्नसंतोषी स्वभाव वाले आकाओं के कान भरते हैं, कभी झूठी शिकायतें करते हैं, कभी अपने मंसूबों को सफल बनाने के लिए अपने आपको तमाम हदों के पार जाकर भी समर्पित कर देते हैं और उन सभी रास्तों का सहारा लेने में नहीं चूकते जिनके लिए मानव समुदाय में वर्जनाएँ कही गई हैं।
अपना समाज हो, कोई सा क्षेत्र हो या देश-दुनिया का कोई सा इलाका, सभी स्थानों पर प्रतिभाहीन नालायकों, निक मों और कमीनों का वजूद बना रहता है। अपना इलाका भी इनसे अछूता नहीं है। हमारे यहाँ भी ढेरों लोग ऐसे हैं जो हर अखाड़े में फन आजमाने के लिए जी तोड़ कोशिशें करते रहकर अपने आपको लोकप्रिय और सर्वश्रेष्ठ साबित करने के धंधों में रमे हुए हैं।
ऐसे लोगों के पास भगवान के दिये हुए अपने मौलिक हुनर भी हुआ करते हैं जिन्हें और अधिक बेहतर बनाकर वे अपने विषय विशेष में महारत हासिल कर सकते हैं। लेकिन ऐसे लोग अपने मौलिक हुनर को उपेक्षित रखते हुए उन कामों में भाग्य आजमाते रहते हैं जो औरों के लिए हुआ करते हैं।
यही इनके लिए षड़यंत्रों तथा औरों के लिए दु:खों का महान कारण होता है। हर इलाके में विभिन्न क्षेत्रों में एक साथ अपनी जादुई छवि कायम करने का प्रयास करने वाले लोगों को अंगुलियों पर गिना जा सकता है जो हर मैदान में धमक जाते हैं और हर किसी के प्रति चरम श्रद्घा, आदर और समर्पण को व्यक्त करते रहते हैं।
ऐसे लोग अपने क्षेत्र में रहने वाले उन सभी लोगों से खौफ खाते हैं जो किसी न किसी क्षेत्र में दक्ष होते हैं और जिन्हें ये नालायक और मूर्ख लोग अपना प्रतिस्पर्धी मान बैठते हैं। बस यहीं से शुरू हो जाती है इन कमीनों की षड़यंत्रों भरी यात्रा।
ये लोग अंधों में काना राजा बनने के लिए अपने इलाके के उन सभी चुनिंदा लोगों से शत्रुता पाल लेते हैं जो किसी न किसी क्षेत्र में निष्णात होते हैं। नालायकों का एक ही काम होता है कि उनके क्षेत्र से प्रतिभाशाली लोग कहीं बाहर चले जाएं ताकि इन मूरखों और निक मों की सत्ता और लोकप्रियता कायम रहे। इन मूरखों को यह अच्छी तरह भान होता हैै कि वास्तविक एवं मौलिक हुनरमंद लोगों के रहते हुए वे कुछ नहीं कर पाएंगे।
यही कारण है कि प्रतिभाशाली लोगों से वे सभी लोग खौफ खाते हैं जो अपने आपको सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए खुराफातों के बादशाह बने रहते हैं। ये लोग उन तमाम प्रकार के स्टंट और षड़यंत्रों का सहारा लेते हैं जो वे कर सकते हैं।
इन्हें अपनी ही तरह के लोग सब जगह मिल भी जाते हैं। सूअरों, लोमड़ों, सर्पो, अजगरों, कौओं, गधों और गिद्घों को दोस्त ढूँढ़ने के लिए कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती है। ये अजीब से आकर्षण के मारे अपने आप मिल जाते हैं और साथ निभाते हुए जमाने भर में नापाक हरकतों के भरोसे आगे बढ़ते रहते हैं।

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