– डॉ. दीपक आचार्य
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अच्छे कामों को प्रोत्साहन मिलना चाहिए और अच्छे लोगों को संबलन भी। इससे समाज में अच्छाइयों को अंकुरित, पल्लवित और पुष्पित होने के अवसरों में बढ़ोतरी होती है और अन्तततोगत्वा इसका फायदा समाज को ही होता है, समाज की प्रत्येक इकाई इससे लाभान्वित होती है और यह अच्छी बातें तथा अच्छे कार्य पीढ़ियों तक याद रखे जाते हैं।
लेकिन समाज में एक बहुत बड़ी प्रजाति ऐसे आदमियों की है जिसे मानवता के लहलहाते खेत में खरपतवार से ज्यादा नहीं माना जाता है। कभी ये बेशर्मी की तरह नंगी होकर औरों पर कीचड़ उछालती रहती है और कभी गाजर घास की तरह पसर कर दमा का शिकार बना देती है। कभी कैक्टसी स्वरूप में इधर-उधर पसर कर लोगों को खरोंचती हुई लहूलुहान कर देती है।
इनमें और असुरों में बस एक ही फर्क है। असुरों के शरीर और शक्ल से स्पष्ट झलक जाता है कि ये असुर हैं जबकि आजकल के इन असुरों में न सिंग होते हैं, न नुकीले और पैने दाँत या और कुछ। लेकिन इनकी मारक क्षमता असुरों से भी कई गुना ज्यादा घातक है । फिर ये लोग कभी भी सामने होकर वार नहीं करते। पीठ पीछे ही वार करते रहते हैं। और कई बार तो औरों के कंधों पर बंदूक रखकर या अदृश्य रहकर वार करते हैं जिससे पता भी नहीं चलता कि किसकी करामात है।
खैर, हम अपने चारों तरफ ऐसे असुरों से घिरे हुए हैं। यह दिव्य दृष्टि हमारी होनी चाहिए कि इन्हें पहचानें। इन लोगों की सबसे बड़ी विशेषता यही होती है कि ये खुद कुछ नहीं करते, या यों कहें कि कुछ करने की कुव्वत इनमें होती ही नहीं। लेकिन दूसरे क्या कर रहे हैं, क्यों कर रहे हैं और कैसा कर रहे हैं, उस दिशा में इनकी सभी ज्ञानेन्द्रियां और कर्मेन्द्रियां लगी हुई रहती हैं।
ये समाज की उस हर अच्छाई और अच्छे लोगों का विरोध करने के लिए ही पैदा हुए हैं जो समाज के लिए और समाज की सेवा के लिए है। इन लोगों का वजूद ही औरों की बुराई और विरोध करने पर टिका हुआ है। ये काम इनके हाथ से छूट जाए या छीन लिया जाए तो ये ज्यादा जिन्दा भी नहीं रह सकते।
अपने आस-पास की बात हो या अपने पावन कहे जाने क्षेत्र की, किसी समाज, संस्था या व्यवसाय की बात हो या द तर की, हर तरफ ऐसे विघ्नसंतोषियों की भरमार है जो न खुद कुछ करते हैं, और न दूसरों को कुछ करने ही देते हैं। फिर ऐसे दो-चार कमीन और खुदगर्ज तथा नासमझ लोग मिल जाते हैं तो उनका ऐसा संगठन बन जाता है जैसे कि असुरों की कोई टुकड़ी पाताल लोक से यहां अंधेरा कायम करने के लिए भेज दी गई हो।
हर तरफ ऐसे विघ्नसंतोषी वज्र मूर्खों के कबीलों से अच्छे लोग तथा समाज त्रस्त है लेकिन कुछ कर पाने की स्थिति में इसलिए नहीं है क्योंकि इन लोगों को नाम और पैसों के भूखे लोगों का प्रश्रय प्राप्त है। इन हालातों में अच्छे लोगों को संरक्षण, स मान और प्रोत्साहन की सारी कल्पनाएँ निरर्थक हैं क्योंकि आजकल उस किस्म के लोगों का बोलबाला है जो चिल्लाने, हावी होने तथा अंधेरों के आवाहन के लिए सदैव समुत्सुक रहते हैं।
इन लोगों को अंधेरा ही पसंद है और अंधेरे के प्रतिनिधि होकर ये समाज की रोशनी छिन लेने के लिए आमादा हैं। ऐसे लोगों को किसी की प्रशंसा, अच्छे कामों की तारीफ सुनना अपनी आत्महत्या जैसा ही लगता है और इसलिए ये कभी किसी की तारीफ सुन भी नहीं सकते, तारीफ करना तो इनके लिए पूरी जिन्दगी असंभव ही होता है।
हालात ये हो गए हैं कि किसी भी अच्छे कर्म या अच्छे व्यक्ति की यदि तारीफ की जाए, तो नकारात्मक और आत्महीन तथा आपराधिक मनोवृत्ति वाले लोग ऐसे लोगों के पीछे पड़ जाते हैं और कोई न कोई नुक्स निकालने लगते हैं ताकि किसी तरह प्रशंसा के माहौल पर परदा डाला जा सके।
इसलिए आजकल अच्छे लोगों व श्रेष्ठ कर्मों की प्रशंसा का अर्थ परेशान होना रह गया है। एक समय था जब श्रेष्ठ व्यक्तित्व और श्रेष्ठ कर्म समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत व अनुकरणीय हुआ करते थे। आज समाज की मनोदशा यह हो गई है कि नकारात्मक व कर्महीन लोगों के पास एकमात्र यही काम रह गया है कि आलोचनाओं और निन्दाओं से अपने अस्तित्व को साबित करते रहें और जैसे-तैसे लूट-खसोट कर कमा खाएं, अपना पेट भरें, बैंक भरें और घर की तिजोरियां भरते रहें ताकि जिन्दा रहने के लिए ज्यादा मेहनत-मजूरी नहीं करनी पड़े।
अच्छे लोगों के सामने संघर्ष और चुनौतियां पहले से ही खूब रही हैं, ऐसे में इस किस्म के नालायक और कमीन लोगों की बढ़ती जा रही सं या समाज के विकास और प्रगति के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर खड़ी हुई है। ईश्वर नालायकों को सदबुद्घि दे या मोक्ष प्रदान करे।