कुछ वर्ष पहले मुझे आगरा के लाल किले को देखने का अवसर मिला । जिसके भीतर यह लिखा हुआ था कि यह किला पहले बादलगढ़ के नाम से विख्यात था । कालांतर में इसका नाम आगरा का लाल किला हो गया । इस किले के बारे में यह भ्रांति है कि इसे भी मुगलों के द्वारा ही बनाया गया । जबकि ऐसा नहीं है। यह बहुत ही प्रसन्नता की बात है कि सरकारी स्तर पर भी इस किले को पुराना बादलगढ़ माना जाने लगा है। यह अलग बात है कि इतिहास की पुस्तकों में अभी बादलगढ़ का नाम इसे नहीं दिया गया है। यद्यपि अबुल फजल जैसे मुस्लिम लेखक ने भी इस तथ्य की पुष्टि की है कि आगरा का लालकिला पहले बादलगढ़ के नाम से विख्यात था।
किले के भीतर स्थित एक द्वार के निकट शिलालेख के माध्यम से यह भी स्पष्ट किया गया है कि इस बादलगढ़ का जीर्णोद्धार अथवा यथावश्यक परिवर्तन कहीं न कहीं किसी न किसी प्रकार से मुगलकालीन बादशाहो ने भी किया है । ब्रिटिश इतिहासकार कीन का कथन है :– ” सन 1450 से 1488 तक दीर्घावधि तक शासन करने वाला बहलोल लोदी दिल्ली का पहला बादशाह था । जो आगरा पर सीधा मुहम्मदी शासन स्थापित कर पाया । यह बात पहले ही ध्यान में आ चुकी है कि इस नगर के अति प्राचीन इतिहास में एक किला यहां पर विद्यमान था । परंपरा के अनुसार बादलसिंह नामक एक राजपूती सरदार के नाम पर बादलगढ़ किले का नाम रखा गया था । इन किलों का पारस्परिक संबंध कहीं लिखित नहीं मिलता। इसमें संदेह नहीं है कि बादलगढ़ पुराने किले के स्थान पर ही बना था और यह भी पूर्णत: सिद्ध है कि जब बहलोल लोदी ने आगरा पर कब्जा किया तब वहां पर एक किला बना हुआ था । अतः बादलगढ़ उस समय आगरे का किला था । – – – किंतु इस किले को यह नाम कब दिया गया ? – अब तक निश्चित नहीं किया गया है । ”
कीन इस किले का इतिहास 2200 वर्ष पुराना मानता है जबकि पी ओक इस किले को अशोक कालीन् या कनिष्क कालीन मानने पर बल देते हैं।
10 मई 1526 को बृहस्पतिवार के दिन आगरा स्थित लोदी के भवन को बाबर ने अपने अधिकार में ले लिया था । वह लिखता है :- ” ईद के कुछ दिन पश्चात एक भव्य भोज समारोह ( 11 जुलाई 15 26 को ) ऐसे विशाल कक्ष में हुआ जो पाषाण खंडों की स्तंभ पंक्ति से सुसज्जित है और जो सुल्तान इब्राहिम के पाषाण प्रासाद के गुंबद के नीचे है। ”
बाबर जिस भवन की ओर संकेत करता है निश्चित रूप से वह आगरा का ताजमहल जो यमुना नदी के किनारे भव्य प्रसाद के रूप में उस समय मौजूद था।
जहां तक आगरा के लाल किले के मुगलों और तुर्कों से भी प्राचीन होने के प्रमाण की बात है तो इस विषय में हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि जब मुग़ल और अंग्रेज नाम के लोग इस संसार में नहीं थे तब उनसे भी हजारों वर्ष पहले महाभारत के युद्ध में किलों के निर्माण करने और चक्रव्यूह बनाकर लड़ने के प्रमाण मिलते हैं । उससे भी पहले अन्य ग्रंथों में भी किलों के बारे में वर्णन में उपलब्ध होता है।
ऐसे में भारतवर्ष के इतिहास में प्रचलित यह धारणा अब टूट जानी चाहिए कि भारत को किलों के बनाने का हुनर मुगलों व तुर्कों ने दिया। इतिहास की पुस्तकों में अब यह संशोधन होना चाहिए कि आगरे का लाल किला बादलसिंह नाम के राजपूत के द्वारा निर्मित किया गया और इसका वास्तविक नाम बादलगढ़ है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत