निर्मल रानी
एक और त्रासदी जिससे हमारा देश दशकों से जूझ रहा है वह है मिलावटख़ोरी। मिलावटख़ोरी करने वाले लालची लोग जो कि कम समय में ज़्यादा पैसे कमाने के इच्छुक हैं, वैसे तो जहाँ तक संभव हो प्रत्येक वस्तु में मिलावट करने की कोशिश करते हैं। परन्तु इन लालची लोगों द्वारा मिलावटख़ोरी का जो सबसे खरनाक खेल खेला जा रहा है वह है खाद्य व पेय सामग्री में होने वाली मिलावट का। आज भारतीय बाज़ार में बिकने वाली शायद कोई भी खाद्य या पेय सामग्री ऐसी नहीं है जो मिलावट के लिहाज़ से संदिग्ध न हो। भारत में सबसे पवित्र समझा जाने वाला पेय, दूध ही सबसे अधिक संदिग्ध पेय पदार्थ हो गया है। डेयरी से मिलने वाले दूध से लेकर बड़े बड़े दुग्ध उत्पादक कोऑपरेटिव संस्थान व दुग्ध उद्योग सभी संदिग्ध हो चुके हैं। कई बार यह ख़बरें आ चुकी हैं की थैलियों में मिलने वाला दूध भी सुरक्षित नहीं है। फल सब्ज़ियों से लेकर दही पनीर मिठाई खोया सभी कुछ या तो मिलावटी है या नक़ली।
हमारे देश में ऐसे सैकड़ों मामले कभी पुलिस विभाग द्वारा उजागर किये गए तो कभी खाद्य विभाग द्वारा जिसमें की छापेमारी कर क़्वींटलों के हिसाब से ज़हरीला व केमिकलयुक्त खोया या मिठाइयां बरामद की गयीं। परन्तु ऐसी ख़बरें शायद कभी नहीं सुनाई दीं कि किसी मिलावटख़ोर को फांसी या आजीवन कारावास की सज़ा मिली हो। आख़िर क्यों ? क्या धन कमाने की लालच में आम लोगों को ज़हरीला खाद्य पदार्थ खिलाने जैसा जानलेवा षड्यंत्र जानबूझकर लोगों की सामूहिक हत्या किये जाने का प्रयास नहीं है ? यदि कोई ग्राहक पीने के लिए दूध या खाने के लिये पनीर ख़रीदता है और उसी सामग्री की क़ीमत अदा करता है फिर बेचने वालों को उस ग्राहक को दूध व पनीर के बजाए कोई ज़हरीला केमिकल या मिलावटी सामान या यूरिया अथवा डिटर्जेंट द्वारा निर्मित दूध या पनीर देने का क्या मतलब है? अभी पिछले दिनों एक मंदिर में हवन सामग्री मंगाई गई। काले तिल के 10 किलो के सील थैले को खोलकर उस काले तिल को धोया गया। अब जब सूखने के बाद उस तिल को पुनः तौला गया तो यक़ीन कीजिये उस सामग्री का वज़न केवल 3 किलो ही निकला। यानी 3 किलोग्राम तिल में सात किलोग्राम पत्थर व मिट्टी मिलाकर 10 किलो काले तिल की पैकिंग तैयार की गयी थी। ज़रा सोचिये कि भगवान व देवताओं को ख़ुश करने तथा शांति व समृद्धि के लिए कराए जाने वाले यज्ञ व हवन के लिए जब ऐसी सामग्री बेची जा रही है तो आख़िर इन मिलावटख़ोरों को भगवान का भी क्या डर ? राजस्थान सरकार ने गत वर्ष ‘शुद्ध के लिए युद्ध ‘ नमक एक अभियान छेड़ा है। यह अभियान कितना सफल होगा यह तो नहीं कहा जा सकता परन्तु इस अभियान को शुरू करने के साथ ही मुख्य मंत्री अशोक गहलोत ने मिलावटख़ोरों को फांसी दिए जाने की भी वकालत की है। राजस्थान की ही तरह पूरे देश से एक स्वर में यह सन्देश मिलावटख़ोरों को दे दिया जाना चाहिए कि अब शुद्ध के लिए युद्ध की शुरुआत हो चुकी है। खाद्य सामग्री में मिलावटख़ोरी का ही नतीजा है कि हम तरह तरह कि नई नवेली बीमारियों का सामना कर रहे हैं। इन्हीं कारणों से हमारे बच्चे समय से पूर्व ऐसी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं जिसकी बचपन में कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।आज बाज़ार में बिकने वाले फल,सब्ज़ियां व मिठाइयां निश्चित रूप से पहले से ज़्यादा सूंदर,आकर्षक,रंग बिरंगी हैं परन्तु यह पौष्टिक होने के बजाए ज़हरीली हैं। स्टेशन पर बिकने वाली चाय से लेकर अन्य खाद्य सामग्रियां कोई भी विश्वसनीय नहीं हैं। सब्ज़ियों का तो यह हाल है कि महानगरों में व औद्योगिक क्षेत्रों के आस पास लगने वाले खेतों में औद्योगिक कचरे वाला ज़हरीला पानी ही खेतों में सिंचाई के लिए इस्तेमाल होता है। इसके अलावा सब्ज़ी की बेल में या पौधों में ही इंजेक्शन लगाकर रातोंरात सब्ज़ी का वज़न बढ़ाया जाता है।
अफ़सोस तो इस बात का है कि मिलावटख़ोरी व खाद्य व पेय पदार्थों में ज़हर परोसने का धंधा किसी एक क्षेत्र व राज्य का विषय नहीं है बल्कि यह एक राष्ट्रीय त्रासदी का रूप धारण कर चुका है। ग़रीब से लेकर अमीर तक सभी इन हालात से जूझ रहे हैं। रिश्वतख़ोरी व भ्रष्टाचार से संरक्षित मिलावटख़ोर माफ़िया जीवन रक्षक दवाइयों से लेकर खाद्य पदार्थों तक में मिलावट का बाज़ार गर्म किये हुए है। ऐसे में आम भारतवासी का यह सोचना बिल्कुल वाजिब है कि मिलावटख़ोरी के इस दौर में खाएं क्या तो पियें क्या ?