शाहीन बाग पर सवार होकर केजरीवाल दिल्ली में सांप्रदायिकता का जहर घोलने व सत्ता पाने में सफल हो गये । इस घटना के क्या परिणाम होंगे ? यह तो भविष्य बताएगा , परंतु जो लोग शाहीन बाग के सच को समझ नहीं पाए वह भविष्य में पछताएंगे अवश्य।
इस घटना के संदर्भ में अतीत की एक घटना पर विचार करते हैं जो आज ही के दिन 13 फरवरी 1739 में मोहम्मद साहब रंगीला और नादिरशाह के युद्ध के नाम से इतिहास में दर्ज हुई थी। तब युद्ध के बाद नादिरशाह ने जो कुछ भी दिल्ली में किया था उसका वर्णन इस प्रकार है :–
“सूरज की किरण अभी अभी पूर्वी आसमान फूटी ही थीं कि नादिर शाह दुर्रानी अपने घोड़े पर सवार लाल क़िले से निकल आया. उसका बदन ज़र्रा-बक़्तर से ढका हुआ, सर पर लोहे का कवच और कमर पर तलवार बंधी हुई थी और कमांडर और जरनैल उनके साथ थे. उसका रुख आधा मील दूर चांदनी चौक में मौजूद रोशनउद्दौला मस्जिद की ओर था. मस्जिद के बुलंद सहन में खड़े हो कर उसने तलवार म्यान से निकाल ली.”
ये उसके सिपाहियों के लिए इशारा था. सुबह के नौ बजे क़त्ल-ए-आम शुरू हुआ. कज़लबाश सिपाहियों ने घर-घर जाकर जो मिला उसे मारना शुरू कर दिया.
इतना ख़ून बहा कि नालियों के ऊपर से बहने लगा. लाहौरी दरवाज़ा, फ़ैज़ बाज़ार, काबुली दरवाज़ा, अजमेरी दरवाज़ा, हौज़ क़ाज़ी और जौहरी बाज़ार के घने इलाक़े लाशों से पट गए.
हज़ारों औरतों का बलात्कार किया गया, सैकड़ों ने कुओं में कूद कूद कर के अपनी जान दे दी. कई लोगों ने ख़ुद अपनी बेटियों और बीवीयों को क़त्ल कर दिया कि वो ईरानी सिपाहियों के हत्थे न चढ़ जाएं.
अकसर इतिहास के हवालों के मुताबिक उस दिन तीस हज़ार दिल्ली वालों को तलवार के घाट उतार दिया गया. आख़िर मोहम्मद शाह ने अपने प्रधानमंत्री को नादिर शाह के पास भेजा. कहा जाता है कि प्रधानमंत्री नंगे पांव और नंगे सिर नादिर शाह के सामने पेश हुए और ये शेर पढ़ा-
‘दीगर नमाज़दा कसी ता बा तेग़ नाज़ कशी… मगर कह ज़िंदा कनी मुर्दा रा व बाज़ क़शी’
(और कोई नहीं बचा जिसे तू अपनी तलवार से क़त्ल करे…सिवाए इसके कि मुर्दा को ज़िंदा करे और दोबारा क़त्ल करे.)
इस पर कहीं जाकर नादिर शाह ने तलवार दोबारा म्यान में डाली तब कहीं जाकर उसके सिपाहियों ने हाथ रोका.
क़त्ल-ए-आम बंद हुआ तो लूटमार का बाज़ार खुल गया. शहर के अलग-अलग हिस्सों में बांट दिया गया और फौज की ड्यूटी लगा दी गई कि वो वहां से जिस क़दर हो सके माल लूट ले. जिस किसी ने अपनी दौलत छुपाने की कोशिश की उसे बहुत बुरी तरह प्रताड़ित किया गया.
जब शहर की सफ़ायी हो गई तो नादिर शाह ने शाही महल की ओर रुख किया. उस का ब्यौरा नादिर शाह के दरबार में इतिहासकार मिर्ज़ा महदी अस्त्राबादी ने कुछ यूं बयां किया है-
‘चंद दिनों के अंदर अंदर मज़दूरों को शाही खजाना खाली करने का हुक़्म दिया गया. यहां मोतियों और मूंगों के समंदर थे, हीरे, जवाहरात, सोने चांदी के खदाने थीं, जो उन्होंने कभी ख़्वाब में भी नहीं देखीं थीं. हमारे दिल्ली में क़याम के दौरान शाही खजाने से करोड़ों रुपए नादिर शाह के खजाने में भेजे गए. दरबार के उमरा, नवाबों, राजाओं ने कई करोड़ सोने और जवाहरात की शक्ल में बतौर फिरौती दिए.’
एक महीने तक सैकड़ों मज़दूर सोने चांदी के जवाहरात, बर्तनों और दूसरे सामान को पिघलाकर ईंटे ढालते रहे ताक़ि उन्हें ईरान ढोने में आसानी हो.
शफ़ीक़ुर्रहमान ‘तुज़क-ए-नादरी’ में इसका वर्णन विस्तार से करते हैं. ‘हम ने कृपा की प्रतीक्षा कर रहे मोहम्मद शाह को इजाज़त दे दी कि अगर उसकी नज़र में कोई ऐसी चीज़ है जिसको हम बतौर तोहफ़ा ले जा सकते हों और ग़लती से याद न रही हो तो बेशक़ साथ बांध दे. लोग दहाड़े मार-मार कर रो रहे थे और बार बार कहते थे कि हमारे बग़ैर लाल क़िला खाली खाली सा लगेगा. ये हक़ीक़त थी कि लाल क़िला हमें भी खाली खाली लग रहा था.’
नादिर शाह ने कुल कितनी दौलत लूटी ? इतिहासकारों के एक अनुमान के मुताबिक उस की मालियत उस वक़्त के 70 करोड़ रुपए थी जो आज के हिसाब से 156 अरब डॉलर बनते हैं. यानी दस लाख पचास हज़ार करोड़ रुपए. ये मानवीय इतिहास की सबसे बड़ी सशस्त्र डकैती थी.
मित्रो ! इसी घटना के बाद भारतवर्ष का कोहिनूर नादिरशाह पगड़ी पलट यार का नाटक करके मोहम्मद शाह रंगीला से लेने में सफल हो गया था।
जो लोग दिल्ली के चुनावों से पहले भारत के बारे में धमकी दे रहे थे कि हिंदुस्तान मोदी या उसके बाप का नहीं है। यह हमारे बाप दादों का है क्योंकि हमारे बाप दादों ने इस पर सैकड़ों साल शासन किया है और इसे हम लेकर रहेंगे। शाहीन बाग में बैठे जो लोग खुलेआम यह कह रहे थे कि हिंदुओं को काट डालेंगे , मिटा देंगे और हिंदुस्तान की गद्दी पर फिर हम ही आसीन होंगे – उनके सपने , उनकी सोच , उनका चिंतन क्या था ? केवल एक ही कि इस देश में फिर नादिरशाही का जमाना आएगा । यह संयोग है कि 11 फरवरी को आपने ‘ पगड़ी पलट यार ‘ का यह नाटक इस रूप में फिर देखा है कि लोगों ने पगड़ी पलटकर कोहिनूर अर्थात दिल्ली के शासन को लुटा दिया है। आगे क्या होगा ? समय बताएगा , परंतु जो लोग इस समय बिक गए या सोए रहे मैं फिर कहूंगा उन्हें पछताना पड़ेगा।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक ; उगता भारत