ओ३म्
==========
आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती जी की जन्म भूमि गुजरात प्राप्त में मोरवी व राजकोट को मिलाने वाली सड़क पर टंकारा नाम ग्राम व कस्बा है। राजकोट से टंकारा की सड़क मार्ग से दूरी लगभग 40 किमी. है। राजकोट तक रेलयात्रा से पहुंचा जा सकता है। अहमदाबाद से प्रतिदिन राजकोट के लिये अनेक रेलगाड़ियां उपलब्ध है। टंकारा एक छोटा सा ग्राम है। टंकारा में जिस स्थान पर बस छोड़ती है उसी के सामने एक फर्लागं से भी कम दूरी पर ऋषि दयानन्द जन्म भूमि न्यास है जहां ऋषिभक्तों के स्वागत की व्यवस्था होती हैं। यहीं पर न्यास की ओर से एक भव्य यज्ञशाला एवं यात्रियों के निवास के लिये भवन आदि की व्यवस्थायें हैं। हमें विगत पांच ऋषि बोधोत्सवों के अवसरों पर टंकारा जाने का अवसर मिला है। विगत दो बोधोत्सवों में भी हमने टंकारा जाने का कार्यक्रम बनाया था परन्तु पारिवारिक कारणों से जा नहीं सके थे। इस बार हम टंकारा में ऋषि बोधोत्सव के आयोजन में सम्मिलित होने जा रहे हैं। देहरादून निवासी श्री आदित्य प्रताप सिंह सन् 1988 से प्रायः प्रत्येक वर्ष टंकारा जा रहे हैं। उन्हें नहीं पता कि वह कितनी बार गये हैं। वह प्रत्येक वर्ष कार्यक्रम बनाते हैं और टंकारा पहुंचते हैं।
81 वर्षीय श्री आदित्य प्रताप सिंह जी कल दिनांक 11-2-2020 को देहरादून से टंकारा के लिये अपनी यात्रा आरम्भ कर चुके हैं। कल उन्हें हमने देहरादून के रेलवे स्टेशन से विदा किया। उनका पहला पड़ाव हैदराबाद है जहां वह दो दिन रुकेंगे। हैदराबाद से वह औरंगाबाद जायेंगे और वहां एक दिन रुक कर राजकोट व द्वारका पहुंचेंगे। द्वारका से वह 18 फरवरी को चलकर टंकारा आ जायेंगे जहां वह 19 से 22 फरवरी तक रहेंगे। श्री सिंह के साथ तीन सहयात्री भी गये हैं। हमारा कार्यक्रम 16 फरवरी, 2020 को प्रस्थान कर 19 फरवरी, 2020 को टंकारा में ऋषि-जन्मभूमि-न्यास परिसर में पहुंचने का है। हमारे साथ दो अन्य सदस्य भी टंकारा जा रहे हैं। मार्ग में हम द्वारका, सोमनाथ मन्दिर तथा सरदार पटेल की एकता की मूर्ति के स्थानों का भ्रमण भी करेंगे। टंकारा जाने से एक सुखद अनुभूति होती है और ऋषि दयानन्द के जीवन व सिद्धान्तों सहित आर्यसमाज के वैदिक साहित्य के मर्मज्ञ विद्वानों के सत्संग का लाभ भी होता है। टंकारा में ऋषि बोधोत्सव के दिन की यात्रा तथा वहां प्रवास एक प्रकार से लाभकारी तीर्थ यात्रा होती है जब वहां पर अनेक विद्वानों व भजनोपदेशकों का सत्संग एवं वृहद यज्ञ में भाग लेने का महत्वपूर्ण अवसर मिलता है। देश भर से ऋषिभक्त यहां पधारते हैं जिनके दर्शनों व वार्तालाप का अवसर भी मिलता है। एक लाभ शिवरात्रि के दिन आर्यसमाज, टंकारा के उत्सव में उपस्थित होने का मिलता है। यह दो या तीन घंटे का आयोजन बहुत ही आकर्षक एवं प्रेरणादायक होता है। द्वारका एवं सोमनाथ मन्दिर समुद्र तट पर स्थित हैं। अनेक लोगों ने अपनी आंखों से समुद्र के प्रत्यक्ष दर्शन नहीं किये होते। ऋषि बोधोत्सव पर टंकारा यात्रा में समुद्र दर्शन सहित ऐतिहासिक स्थान द्वारका तथा सोमनाथ मन्दिर के दर्शनों का लाभ भी प्राप्त किया जा सकता है। हमें द्वारका से सोमनाथ मन्दिर की बस यात्रा भी सुखद अनुभवों से युक्त लगती है। द्वारका में समुद्र के मध्य में एक टापू पर बेट-द्वारका स्थल है। यहां जाकर पर्यटन का लाभ मिलता है। समुद्र के मध्य इस बेट-द्वारका टापू पर ‘जंगल में मंगल’ जैसी कहावत चरितार्थ होती है।
मनुष्य का जीवन तीव्रता से आगे बढ़ता जाता है। हम पहली बार जब गये थे उस यात्रा को लगभग 15 वर्ष हो चुके हैं। तब हम प्रायः युवा थे। उस यात्रा में हमारे साथ गये श्री जयचन्द शर्मा दम्पति, श्री रामेश्वर प्रसाद आर्य तथा श्री विनयमोहन सोती जी की धर्मपत्नी का निधन हो चुका हैं। हम सब 7 लोग देहरादून से साथ गये थे। अब इनमें से 3 लोग ही बचे हैं। श्री विनय मोहन सोती जी काफी वृद्ध हो गये हैं। अब वह यात्रा नहीं कर सकते। हमारे एक मित्र कर्नल साहब हैं। वह टंकारा जाना चाहते हैं। उनको चलने फिरने में असुविधा होती है। उनको वहां रुकेने के लिये भूतल पर कमरा और इंग्लिश शौचालय चाहिये। हमें लगता है कि यह सुलभ होना कठिन है। अतः हम उनकी बात को टाल जाते हैं। हम भी अब पहले की तुलना अधिक वृद्ध हो गये हैं। कुछ रोग भी शरीर में आ गये हैं। भविष्य में टंकारीा यात्रा पर जाना हो या न हो, इसलिये भी हम इस वर्ष ऋषि जन्म भूमि जा रहे हैं। हमें आशा है कि हमारी यह यात्रा सुखद एवं सफल होगी। टंकारा व यात्रा में जिन स्थानों पर जायेंगे वहां के विवरण हम देहरादून लौटकर फेसबुक व व्हटशप पर शेयर करेंगे।
हम अपने जीवन में ऋषि दयानन्द व उनके द्वारा स्थापित आर्यसमाज सहित ऋषि के ग्रन्थों एवं आर्य विद्वानों के साहित्य से लाभान्वित हुए हैं। यदि ऋषि दयानन्द न हुए होते या हम ऋषि दयानन्द व आर्यसमाज के सम्पर्क में न आये होते तो हमें लगता है कि हमारा जीवन जो कुछ सार्थक हुआ है वह कदापि न होता। इस स्थिति में हमारी अकथनीय आध्यात्मिक ज्ञान की क्षति होती। हम ईश्वर के अद्वितीय भक्त व उपासक ऋषि दयानन्द एवं आर्यसमाज के ऋणी व कृतज्ञ हैं एवं उसका धन्यवाद करते हैं। शिवरात्रि के दिन हम उस शिव मन्दिर ‘कुबेरनाथ शिव मन्दिर’ में भी जायेंगे जहां ऋषि दयानन्द को बोध हुआ था। इस मन्दिर की एक वीडियो एवं कुछ चित्र भी हम फेसबुक पर अपने पाठकों से शेयर करेंगे। आगामी ऋषि जन्मोत्सव एवं बोधोत्सव की सभी आर्य बन्धुओं व परिवारों को हमारी हार्दिक शुभकामनायें। सब ऋषि दयानन्द के ग्रन्थों को पढ़ने एवं अपनी अपनी क्षमता के अनुरूप वेदों के प्रचार-प्रसार का व्रत लें जिससे हम ईश्वर के आदेश ‘‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्” को आगे बढ़ाने सहित आर्यसमाज आन्दोलन का एक हिस्सा बन सके। इति ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत