उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती पर क्यों लगा जनसुरक्षा कानून
श्रीनगर ।धारा 370 के हटाए जाने पर जम्मू कश्मीर में खून की नदियां बहाने और तिरंगा को कोई उठाने वाला तक ने मिलने की धमकी देने वाली महबूबा मुफ्ती इन दिनों अपने राजनीतिक जीवन के सबसे खराब दिनों से गुजर रही है । इसी प्रकार उमर अब्दुल्ला भी अपने खराब दिनों का सामना कर रहे हैं । वास्तव में इन नेताओं ने भारत को ब्लैकमेल कर करके अकूत धन संपदा कमाई और यह सच है कि जम्मू कश्मीर से धारा 370 के हटाए जाने के बाद यह दो परिवार ही अधिक बेरोजगार हुए । इन्हें जम्मू कश्मीर के नौजवानों की बेरोजगारी से कुछ लेना-देना नहीं था । बल्कि दिन प्रतिदिन अपनी तिजौरियां भरने की चिन्ता इनको थी । आज उसी का परिणाम भुगत रहे हैं और धीरे-धीरे गुमनामी के अंधेरे में खोते जा रहे हैं ।
49 वर्षीय उमर और 60 वर्षीय महबूबा को पिछले साल पांच अगस्त से एहतियातन हिरासत में रखा गया है, जब केंद्र ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाने की घोषणा की थी।
पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के खिलाफ जन सुरक्षा कानून के तहत मामले दर्ज किए जाने के लिए नेशनल कांफ्रेंस नेता की पार्टी की आंतरिक बैठकों की कार्यवाहियों और सोशल मीडिया पर उनके प्रभाव तथा पीडीपी प्रमुख के “अलगाववादी समर्थक” रुख का अधिकारियों ने जिक्र किया है।
49 वर्षीय उमर और 60 वर्षीय महबूबा को पिछले साल पांच अगस्त से एहतियातन हिरासत में रखा गया है, जब केंद्र ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाने और इस पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्र शासित क्षेत्रों– लद्दाख एवं जम्मू कश्मीर– में बांटने की घोषणा की थी. उनके एहतियातन हिरासत की मियाद खत्म होने से महज कुछ ही घंटे पहले उनके खिलाफ छह फरवरी की रात पीएसए के तहत मामला दर्ज किया गया.
6 महीने से आगे बढ़ाई जा सकती है हिरासत
नियमों के अनुसार एहतियातन हिरासत को छह महीने से आगे तभी बढ़ाया जा सकता है जब 180 दिन की अवधि पूरा होने से दो सप्ताह पहले गठित कोई सलाहकार बोर्ड इस बारे में सिफारिश करे. हालांकि, इस संबंध में ऐसे किसी बोर्ड का गठन नहीं हुआ और कश्मीर प्रशासन के पास दो ही विकल्प थे या तो उन्हें रिहा किया जाए या पीएसए लगाया जाए.
उमर के खिलाफ तीन पृष्ठ के डॉजियर में जुलाई में नेशनल कांफ्रेंस की आंतरिक बैठक में कही गई उनकी कुछ बातों का जिक्र है जिसमें उन्होंने कथित रूप से कहा था कि सहयोग जुटाने जरूरत है ताकि केंद्र सरकार राज्य के विशेष दर्जे को हटाने की अपनी योजना को पूरा नहीं कर पाए.
सोशल मीडिया की सक्रियता पर भी उठे सवाल
पुलिस ने यह भी कहा कि उमर सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय थे और यह मंच युवाओं को संगठित करने की क्षमता रखता है. उमर केंद्र में मंत्री भी रह चुके हैं.
संचार माध्यमों पर पांच अगस्त से प्रतिबंध लागू हैं. बाद में धीरे-धीरे इनमें ढील दी गई. कुछ जगहों पर इंटरनेट काम कर रहे हैं. विशेष निर्देशों के साथ मोबाइल पर 2जी इंटरनेट की सुविधा शुरू हो गई है ताकि सोशल मीडिया साइटों का उपयोग नहीं हो.
हालांकि, पुलिस ने डॉजियर में उमर के किसी सोशल मीडिया पोस्ट का विशेष तौर पर जिक्र नहीं किया है.
महबूबा पर इसलिए लगा पीएसए
महबूबा ने अनुच्छेद 370 को हटाए जाने की स्थिति में जम्मू कश्मीर के भारत में विलय को चुनौती दी थी और उनकी इन्हीं टिप्पणियों के लिए उन पर पीएसए लगाया गया.
उनके खिलाफ पीएसए के डॉजियर में सुरक्षा बलों द्वारा आतंकवादियों को मार गिराए जाने पर की गई टिप्पणी का भी जिक्र किया गया है. महबूबा की पार्टी पीडीपी जून 2018 तक जम्मू कश्मीर में भाजपा की सहयोगी थी.
गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत जम्मू कश्मीर के जमात-ए-इस्लामिया संगठन को केंद्र द्वारा प्रतिबंधित संगठन घोषित किए जाने बाद इस संगठन को उनके समर्थन करने का भी डॉजियर में जिक्र किया गया है।
मुख्य संपादक, उगता भारत