ब्राह्मण ग्रन्थों में फाल्गुनी पौर्णमासी का पार्विक उल्लेख है। इस से इस त्यौहार की प्राचीनता स्पष्ट है।
वेदों में सभी पूर्णमासियों, अमावस्याओं और विविध सङ्क्रान्तियों को यज्ञ आयोजन पूर्वक लेने का उपदेश है। धीरे धीरे इन के साथ जनरूचि और कालानुरूप अलग अलग कर्म काण्ड जुड़ते चले गए। *मूलतः होली एक नवान्नेष्टि पर्व है जो फाल्गुन पूर्णमासी को मनाया जाता है।*
संवत्सर का ऋतुओं और ऋतुओं और सौर मासों का यथार्थ सङ्क्रान्तियों के अनुसार लेना ही वेद को मान्य है ( अथर्व वेद १/३५/४) ।
*प्रचलित भारतीय पञ्चाङ्ग वर्तमान शुक्ल पक्ष को माघ शुक्ल पक्ष गलत दिखा रहे हैं, यह सिद्धान्त ज्योतिष से हट कर लिया गया तथ्य है।*
तथाकथित निरयण व्यवस्था से लिये गये इस कथित माघ शुक्ल पक्ष का, सम्पात और अयनों से जोड़कर ली जाने वाली ऋतु नियमन व्यवस्था से हट कर लेने के कारण, आधार ही *गलत सङ्क्रान्तियों का लिया जाना* है। ये बात सभी को गम्भीरता पूर्वक समझना आवश्यक है।
गलत सङ्क्रांतियों पर आधारित सौरमास सही नहीं कहे जा सकते और गलत सौरमासों के अनुवर्ती चान्द्रमासों का नामकरण सही हो ही नहीं सकता। आज अपरान्ह 16:04 बजे से पूर्णिमा तिथि लग चुकी है। अस्तु आज १६:०४ बजे से व्याप्त पूर्णिमा तिथि ही फाल्गुन पूर्णिमा है। कल होली एवं पूर्णमासी से सन्दर्भित मन्त्रों के साथ यज्ञ सम्पन्न करें और होली का त्यौहार मनायें। एक वैदिक पञ्चाङ्गकार के रूप में यह मेरा निवेदन है, मार्गदर्शन है। मानना या न मानना आपकी बात है।
*हमारे मास (महीने) ऋतुओं से बहुत विचलित हो चुके हैं और होते ही जा रहे हैं।* इसी कारण से मानव कृत व्यवहार और फसल उत्पादन का समय भी विचलित होगया है किन्तु प्रकृतितः हमारे पञ्चाङ्ग के अनुसार सब कुछ ऋतुबद्ध है।
मैं पहले से ही प्रचारित करता आ रहा हूं कि *कृषि प्रधान आर्यावर्त में वेदों का एक बहुत बड़ा विज्ञान है ऋतु दर्शन।* इसी अर्थ से संवत्सर को प्रजापति कहा गया है। ऋतुवें हमें घड़ी में लगे सचेतक समय (अलार्म) की तरह कृषि साधने की चेतना देती हैं। कृषि हमें अन्न देती हैं। अन्नाद् भवन्ति भूतानि, अन्न हमें जीवन और आयु देता है। मुझे अति प्रसन्नता है कि कुछ बुद्धिजीवियों की चेतना अब इधर जाने लगी है कि यदि होली और दीपावली नवशस्येष्टि के त्यौहार हैं तो आज दीपावली एवं होली पर नई फसल का उत्पादन क्यों नहीं दिख रहा है?
वस्तुतः उनको यह बात मालूम नहीं है कि *आज ऋतुवें फसलों का नियमन नहीं कर रही हैं। और इसके पीछे प्रचलित बभ्रान्त पञ्चाङ्गों की बहुत बड़ी भूमिका है।* आज तो मनुष्य और उनके ये भ्रान्त निरयण पञ्चाङ्ग, लोगों के लिए ऋतुओं का नियमन कर रहे हैं। इसी से दीपावली, दीप अवली की तरह तो है पर नवशस्येष्टि का त्यौहार नहीं रह गया है। स्मरण रहे कि ‘अवली’ का एक अर्थ ‘पहले पहल खेत में काटा जाने वाला अन्न’ भी होता है। अब आप समझ सकते हैं कि मनमर्जी की ऋतुवें भला फसलों का नियमन कैसे करेंगी? अस्तु पञ्चाङ्गों का सुधार कितना आवश्यक है यह बात सभी को समझ आ जानी चाहिए
फाल्गुन पूर्णिमा ही वर्ष का अन्तिम प्रमुख त्यौहार है और इस के बाद का शुक्ल पक्ष ही संवत्सर का पहला शुक्ल पक्ष होता है।
सोमवार, ५ गते मधुमास २०७७ तदनुसार २४ फरवरी २०२० को चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के साथ वासन्ती नवरात्र शुरू।
जो मनाऐं उनको और जो नमनाऐं उनको भी, सभी को मेरी बहुत- बहुत शुभकामनाएं!👏
स्वस्ति ओं शम्।
आचार्य दार्शनेय लोकेश
सम्पादक एवं गणितक- श्री मोहन कृति आर्ष पत्रकम् ( एक मात्र वैदिक पञ्चाङ्ग)
मुख्य संपादक, उगता भारत