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हमने दो दिन पूर्व एक लेख में अपने कुछ आर्यमित्रों की जानकारी दी है जिनके साहचर्य से हम जीवन में वर्तमान अवस्था तक पहुंचें हैं। आज इस लेख में हम कुछ अन्य मित्रों की चर्चा कर रहे हैं। हम भाग्यशाली हैं कि हमें एक बहुत ही अच्छी समर्पित मित्रों की मण्डली प्राप्त हुई। यदि हमारे यह सब मित्र न होते तो हम जो हैं वह न होकर कुछ और प्रकार के व्यक्ति होते। हम अपने इस जीवन से सन्तुष्ट हैं। हमें आशा है कि भविष्य में भी हमें अपने सभी मित्रों व उनके परिवारों का प्रेम एवं सहयोग प्राप्त होता रहेगा। हम इस लेख में अपने हार्दिक मित्र श्री राजन्द्र सिंह काम्बोज, श्री चन्द्रदत्त शर्मा, श्री राम अवतार गर्ग, श्री भोला नाथ आर्य तपोवन तथा श्री ललित मोहन पाण्डेय जी का परिचय दे रहे हैं। हमारे यह मित्र कौन व कैसे हैं, इसका कुछ अनुमान कराने का हमारा आगामी पंक्तियों में प्रयास रहेगा। प्रथम हम श्री राजेन्द्र कुमार काम्बोज, अधिवक्ता का उल्लेख कर रहे हैं।
श्री राजेन्द्र कुमार काम्बोज, अधिवक्ता एवं पूर्व प्रशासक आर्यसमाज धामावाला देहरादून।
श्री राजेन्द्र कुमार काम्बोज जी जन्म देहरादून के निकटवर्ती जिले सहारनपुर के औरंगाबाद गांव में 9 सितम्बर, 1953 को हुआ था। आप तीन भाई एवं तीन बहिन हुए जिनमें से दो बड़ी बहिनों का देहान्त हो चुका है। श्री राजेन्द्र जी से हमारा प्रथम परिचय सन् 1970-1975 के मध्य आर्यसमाज धामावाला में हुआ था। उन दिनों आप किशोर व युवावस्था के मध्य में थे और हाईस्कूल या इण्टर कर वहां अपनी सेवायें प्रदान करते थे। आर्यसमाज में रहते हुए ही आपने बी.ए. व कुछ वर्ष बाद एल.एल.बी. किया। वर्तमान में आप देहरादून कचहरी में एक अधिवक्ता के रूप में कार्य करते हैं। आपका अपना चैम्बर है जहां आपके साथ दो अन्य अधिवक्ताओं सहित आपकी अधिवक्ता पुत्री भी बैठती हैं। आर्यसमाज के लोग जो किसी काम से कोर्ट परिसर में आते हैं आपसे मिलते हैं। श्री राजेन्द्र जी हमारे घनिष्ठतम मित्र हैं। हमारे परस्पर पारिवारिक सम्बन्ध हैं। हमें कभी कोई भी असुविधा व कष्ट हो तो राजेन्द्र जी एक मित्र एवं पारिवारिक सदस्य की तरह सहयोग करते हैं और हमारे दुःख में दुःखी होते हैं। हम दोनों किसी विषय में यदि एकमत न भी हों तो भी इससे हमारे सम्बन्धों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वर्तमान में भी हम राजेन्द्र जी से मिलने प्रत्येक दिन व कुछ दिनों के अन्तराल पर कचहरी जाते रहते हैं। श्री राजेन्द्र कुमार जी आर्यसमाज धामावाला देहरादून के वर्ष 1994-1995 में प्रशासक रहे हैं। आर्यसमाज धामावाला का यह स्वर्णिम काल था। इसका कारण यह था कि श्री राजेन्द्र जी व हमें आर्यसमाज के विद्वान एवं अनुभवी पुराने सभी सदस्यों का सहयोग एवं मार्गदर्शन प्राप्त था। इन प्रमुख ऋषिभक्त व्यक्तियों में श्री अनूप सिंह जी, श्री धर्मेन्द्र सिंह आर्य, श्री ईश्वर दयालु आर्य, श्री शान्तिस्वरूप जी, पं. सुगनचन्द जी, श्री वेदप्रकाश जी, श्री ठाठ सिंह जी, श्री संसार सिंह जी, कर्नल राम कुमार आर्य, श्री धर्मपाल सिंह, श्री शिवनाथ आर्य, श्री प्रीतम सिंह आदि मुख्य हैं। राजेन्द्रजी की प्रशासक की अवधि में आर्यसमाज में अनेक अपूर्व कार्य हुए जिनकी योजना एवं मार्गदर्शन हमें प्रा. अनूप सिंह जी के द्वारा प्रदान किया गया था। यहां पर 15 अगस्त, 1994 को देहरादून के एक दर्जन से अधिक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों का सम्मान किया गया था जिसमें हैदराबाद सत्याग्रह में भाग लेने वाले आर्य सदस्य व सत्याग्रही श्री जगदीश भी सम्मलित थे। यह आयोजन आर्यसमाज के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी वैद्य श्री धर्मदेव रतूड़ी की अध्यक्षता में किया गया था। पत्रकारिता सम्मेलन का भी अपूर्व आयोजन किया गया था। दीपावली एवं ऋषि बोधोत्सव पर आर्य सम्मेलन किये गये थे। रामनवमी और कृष्ण जन्माष्टमी के आयोजन हमें आज भी स्मरण हैं। जन्माष्टमी पर्व पर हमने एक स्थानीय पौराणिक मन्दिर में आये हुए मथुरा की महनीय हस्ती आचार्य वासुदेवाचार्य जी को आमंत्रित किया था। हमें पता नहीं था कि कुछ पौराणिक विद्वान ऋषि दयानन्द का इतना अधिक आदर करते हैं। उन्होंने जो प्रवचन किया था वह हमने लिपिबद्ध कर स्थानीय पत्रों में दिया था जो प्रकाशित हो गया था। साप्ताहिक पत्र आर्यमित्र, लखनऊ के मुख पृष्ठ पर वह लेख छपा था। कुछ समय बाद महात्मा नारायण स्वामी आश्रम, रामगढ़ तल्ला में आर्य प्रतिनिधि सभा, उ.प्र. के प्रधान श्री कैलाशनाथ सिंह जी को स्वामी वासुदेवाचार्य जी के कुछ वचनों को दोहराते सुना तो हमें सुखद अनुभूति हुई थी। पर्यावरण और समाज शीर्षक व्याख्यान एक पर्यावरणविद् श्री वीरेन्द्र पैन्यूली जी ने दिया था। इसको भी सभी स्थानीय पत्रों ने चित्र सहित प्रकाशित किया था। श्री राजेन्द्र काम्बोज ने हमारे निजी न्यायालीय वादों में हमारी जो सहायता की है उससे हम कभी उऋण नहीं हो सकते। हमने 25 से अधिक छोटे बड़े सभी वादों में विजय प्राप्त की जिसका श्रेय श्री राजेन्द्र जी व हमारे अन्य अधिवक्ताओं को है। श्री राजेन्द्र जी के साथ हमें पंजाब के कादियां और हिण्डोन सिटी में सन् 1997 में आयोजित पंडित लेखराम बलिदान शताब्दी में जाने का अवसर भी मिला। श्री राजेन्द्र जी का परिवार हमारा ही परिवार है। हमारे सुख व दुःख की चिन्ता करने वाले मित्रों में श्री राजेन्द्र जी और श्री राम अवतार गर्ग जी से बढ़कर हमारा हितैषी अन्य नहीं है। हम श्री राजेन्द्र जी के स्वस्थ एवं सुखद जीवन सहित दीर्घायु की कामना करते हैं।
श्री राम अवतार गर्ग, सेवानिवृत सरकारी अधिकारी एवं आर्यसमाज की गतिविधियों में हमारे सहायक।
श्री राम अवतार गर्ग (जन्म 27-2-1942) हमारे आत्मीय मित्र हैं। आपसे हमारा पारिवारिक सम्बन्ध रहा है व अब भी है। आप और हम देहरादून के सरकारी प्रतिष्ठान ‘भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, देहरादून’ में कार्यरत रहे। सन् 1978 में देहरादून के दून अस्पताल में हमारे पिता और उनका बड़ा पुत्र (आयु लगभग 7 वर्ष) उपचारार्थ भर्ती थे। दोनों के वार्ड निकट होने के कारण हम एक दूसरे के सम्पर्क में आये। श्री गर्ग ने उन दिनों अनजान होते हुए भी हमारे पिता के साथ बहुत मधुर व्यवहार सहित उनकी सेवा की। इसके बाद वह आर्यसमाज आने लगे थे। बड़े पुत्र की शैशव अवस्था में ही मृत्यु हो जाने पर उनको पितृ शोक की स्थिति से गुजरना पड़ा। इस स्थिति में उन्होंने देहरादून के आर्य बाल वनिता आश्रम को अपनी नियमित सेवायें दी थी। वह प्रतिदिन आश्रम में जाकर बच्चों से मिलते और उनको शिक्षित करने के लिये उन्हें पढ़ाते थे। उनके बहनोई श्री पदमचन्द आर्य मेवात हरियाणा में आर्यसमाज के प्रमुख नेताओं में से हैं। उनके छोटे भाई श्री जयपाल गर्ग दिल्ली की जनकपुरी आर्यसमाज के प्रधान हंै। उनका एक भाई श्री आदर्श गर्ग, तावडू जिला गुड़गावं में आर्यसमाज का पदाधिकारी, आर्य पुरोहित एवं पत्रकार है। श्री राम अवतार गर्ग जी ने अपने छोटे भाई जयपाल गर्ग जी के साथ रोजड़ में योग शिविर में भाग लिया है। उनके पुत्र श्री कुलदीप गर्ग पर भी आर्यसमाज के संस्कार हैं। वह अपने परिवार के साथ हैदराबाद में रहते हैं। बचपन में आर्यजगत में एक गुरुकुल के ब्रह्मचारी को क्षयरोग होने तथा उनकी आर्थिक सहायता विषयक समाचार पढ़कर उन्होंने अपनी पूरे महीने की पाकिट मनी हमें प्रदान की थी जो हमने उस बालक के उपचार के लिये प्रेषित कर दी थी। श्री गर्ग जी ने प्रतिकूल परिस्थितियों में हमारी व हमारे परिवार की प्रशंसनीय सहायता एवं सुध ली है। लगभग 25-30 वर्ष पूर्व एक बार धर्मपत्नी एक अस्पताल में भर्ती थी। तब श्री गर्ग प्रतिदिन प्रातः 5.00 बजे गरम गरम चाय लेकर वहां पहुंच जाते थे। जीवन में आपने हमारी आर्थिक व सभी प्रकार से सहायता की थी। आज भी वह हर प्रकार का सहयोग करने में तत्पर रहते हैं। ऐसे स्नेही मित्र सौभाग्य से ही मिलते हैं। हमारे बच्चों के वह औरस ताऊ की तरह हैं। लगभग एक वर्ष पूर्व उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कमल गर्ग जी का दिल्ली में देहान्त हुआ। अब वह नौएडा में अकेले रहते हैं। श्री गर्ग जी का एक पौत्र एवं एक पौत्री है। एक महत्वपूर्ण बात यह भी लिख दें कि सन् 1994-1997 में जिन दिनों उनका पुत्र कुलदीप गर्ग आईआईटी, मुम्बई से बी.टैक. कर रहा था, उसके कमरे में ऋषि दयानन्द का चित्र लगा रहता था। मूर्तिपूजा करना उसे बचपन में ही छोड़ दिया था जिसकी जानकारी उनकी माता श्रीमती कमल गर्ग ने हमें दी थी। उन्होंने बताया था कि चि0 कुलदीप ने अपनी मां को बताया कि जब वह साईकिल से स्कूल जाता है तो रास्ते में कई मन्दिर पड़ते हैं परन्तु तब उसने हमारे व आर्यसमाज के प्रभाव से मन्दिर व उसकी मूर्तियों के सम्मुख सिर झुकाना बन्द कर दिया था। श्री कुलदीप गर्ग एक कवि हृदय वाले युवक हैं। उनकी कुछ भावपूर्ण कवितायें हमने पढ़ी हंै। सन् 1994 में वह आर्यसमाज आते थे। जब उन्होंने आईआईटी प्रवेश परीक्षा में सफलता प्राप्त की थी तब उन्होंने आर्यसमाज धामावाला देहरादून की यज्ञशाला में आकर यज्ञ किया था। श्री गर्ग के साथ हमारी बहुत स्मृतियां हैं। वर्तमान में वह रुग्ण चल रहे हैं। हम उनके स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन की कामना करते हैं।
श्री चन्द्रदत्त शर्मा, भारतीय पेट्रोलियम संस्थान में हमारे सहयोगी अधिकारी
हमने जनवरी, 1978 में भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, देहरादून में सरकार सेवा आरम्भ की थी। इससे पूर्व हम सिंचाई विभाग, उत्तर प्रदेश की लिपिकीय सेवा में थे। यहां से त्यागपत्र देकर हम अपने केन्द्रीय पेट्रोलियम संस्थान में नियुक्त हुए थे। यहीं पर हमारा परिचय श्री चन्द्रदत्त शर्मा जी से हुआ था। श्री ओम्प्रकाश गैरोला, श्री राजेन्द्र सिंह चौहान तथा श्री सुरेन्द्र कुमार उपाध्याय जी संस्थान में हमारे दो अनन्य मित्र बने जो आज भी हमारे मित्र हैं। श्री चन्द्रदत्त शर्मा जी से हमारा परिचय वर्ष 1978 में ही हो गया था। वह हमसे लगभग 12 वर्ष बड़े थे। पौराणिक परिवार से होते हुए भी श्री शर्मा की आर्यसमाज से निकटता थी। वह अनेक अवसरों पर आर्यसमाज-दीवानहाल-दिल्ली और देहरादून समाज के सत्संगों में भी गये थे। उन्होंने आर्यसमाज धामावाला में स्वामी रामेश्वरानन्द सरस्वती एवं पं. ओम्प्रकाश शास्त्री, खतौली के मध्य वृक्षों में जीव होता है या नहीं, विषयक शास्त्रार्थ देखा व सुना था। यह हमारे आर्यसमाजी बनने से पहले की घटना थी। श्री शर्मा जी बहुत स्वाध्याय करते थे। वह फलित ज्योतिष का भी उच्चस्तरीय ज्ञान रखते थे। हमारे फलित ज्योतिष विषयक विचारों से वह परिचित थे तथापि उनकी अनेक भविष्य वाणियां सत्य सिद्ध होती थीं। हमारे ही एक मित्र श्री राजेन्द्र सिंह चैहान की संस्थान में नियुक्ति के सम्बन्ध में उन्होंने जो भविष्य वाणी की थी, जिस पर हमें व श्री चौहान को किंचित विश्वास नहीं था, परन्तु वह सत्य सिद्ध हुई थी।
हमारी पुत्री के विषय में उसकी बैंक अधिकारी के रूप में नियुक्ति विषयक उनकी भविष्यवाणी भी सत्य सिद्ध हुई थी। इसका भी हमें किंचित विश्वास नहीं था। उन्होंने हमारी पुत्री की नियुक्ति से पहले ही हमें बताया था कि वह हमसे अधिकांश समय दूर रहेगी। हमारी वह पुत्री आठ वर्ष असम व मेघालय में रही है। श्री शर्मा जी व उनकी धर्मपत्नी श्रीमती ओंकारी देवी जी हमें अपने छोटे भाई की तरह आदर व स्नेह देती थी। शर्मा जीएक बहुत प्रभावशाली वक्ता थे। उन्होंने एक बार विज्ञान व आध्यात्म का गहन अध्ययन कर भारतीय पेट्रोलियम संस्थान में ‘‘अनादि तत्व – एक वैज्ञानिक विश्लेषण” विषयक व्याख्यान दिया था जिसे संस्थान के विश्वस्तरीय वैज्ञानिकों वा विज्ञान कर्मियों ने पसन्द किया था। एक वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 बी0एस0 रावत जी ने हमें बताया था कि उन्हें विज्ञान विषयक कई बातों का ज्ञान नहीं था जो श्री शर्मा जी का व्याख्यान सुनकर हुआ। इसी प्रकार शर्मा जी ने ‘‘पर्यावरण” पर भी एक बहुत प्रभावशाली व्याख्यान दिया था। समय समय पर वह व्याख्यान देते रहते थे। यद्यपि शर्मा जी हाईस्कूल आईआईटी कर संस्थान में मैकेनिक बने थे परन्तु अपने स्वाध्याय एवं वक्तृत्व कौशल के कारण संस्थान के सभी वैज्ञानिकों व संस्थान के निदेशक तक से आदर पाते थे। आज भी उनके प्रशंसक अधिकारी एवं कर्मचारी संस्थान में मौजूद हैं। कुछ व अधिकांश सेवा निवृत भी हो चुके हैं। संस्थान में हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में हिन्दी निबन्ध व अन्य प्रतियोगितायें होती रहती थी। हमें निबन्ध प्रतियोगिता में प्रत्येक वर्ष प्रथम पुरस्कार मिलता था। हमारे अध्यात्म, समाज और राजधर्म विषयों पर लेख भी आर्यजगत एवं स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे। हमें संस्थान के अधिकारियों व कर्मचारियों की ओर से सम्मानित करने के लिये श्री शर्मा जी ने योजना बनाई और एक सम्मान एवं जल-पान समारोह का आयोजन किया था। इसमें शर्मा जी सहित अनेक लोगों ने हमारे कार्यों व व्यक्तित्व पर अपने विचार प्रस्तुत किये थे। शायद यह हमारा पहला सम्मान था। इसके बाद हमें ऐसे प्रस्ताव मिलते रहे और न चाहते व मना करने पर भी हमें अनेक संस्थाओं ने सम्मानित किया।
हम अनुभव करते हैं कि काश! शर्मा जी आज भी जीवित होते। शर्मा जी ने हमारे निवेदन पर एक बार हमारे एक मित्र श्री रामेश्वर प्रसाद आर्य के निवास पर आर्यसमाज के पारिवारिक सत्संग में ईश्वर विषय पर वैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर व्याख्यान दिया था। शर्मा जी व हमने भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, देहरादून में एक वेद प्रचार समिति की स्थापना की थी। इसके माध्यम से हमने वहां समय-समय आर्य विद्वानों के सत्संग, गोष्ठियां, भजन एवं प्रवचन आदि कराये थे। अलवर के स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती के प्रवचन सहित स्वामी रामेश्वरानन्द जी का भी एक प्रभावशाली व्याख्यान हुआ था। एक गोष्ठी में पं. रुद्रदत्त शास्त्री एवं अनेक आर्य विद्वानों ने व्याख्यान दिये थे। स्वामी संबुद्धानन्द सरस्वती जी के सान्निध्य में एक योग शिविर आयोजित किया गया था जिसमें रात्रि समय में वेदोपदेश होता था। योग शिविर में संस्थान के निदेशक डा. आई.बी. गुलाटी तथा उनकी धर्मपत्नी श्रीमती निर्मला गुलाटी भी आया करती थी। शर्मा जी सामाजिक कार्यों में अग्रणीय रहते थे। उन्होंने आईआईपी कालोनी परिसर में वृक्षारोपण भी कराया था। यह भी बता दें कि शर्मा जी के परिवार में प्रत्येक परिवार को यज्ञ हुआ करता था। एक बार उन्होंने हमारी वेद प्रचार समिति के माध्यम से भी पारिवारिक सत्संग कराया था। शर्मा जी की मृत्यु लगभग 10 वर्ष पूर्व लीवर के रोग से हुई थी। उनको कैंसर हुआ था। 3-4 वर्ष पूर्व उनकी पत्नी का भी अचानक सोते समय देहावसान हो गया था। हम अनुभव करते हैं कि वर्तमान समय में शर्मा जी के समान सुहृद मित्र मिलना दुर्लभ व असम्भव है। शर्मा जी के परिवार में अब उनकी दो पुत्रियां एवं एक पुत्र हिमांशु शर्मा हैं। यह सभी प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं।
श्री भोलानाथ आर्य, पूर्व सदस्य, वैदिक साधन आश्रम तपोवन देहरादून
श्री भोलानाथ आर्य जी सहारनपुर में हकीकतनगर के रहने वाले थे। वह वैदिक साधन आश्रम तपोवन के संस्थापक सदस्य थे। तपोवन आश्रम की उन्नति सहित देहरादून व सहारनपुर में आर्यसमाज की गतिविधियों में उनका योगदान रहता था। वह वो कार्य करा सकते थे जिसमें आर्यसमाज के अधिकारियों को कोई सम्भावना व सफलता की आशा प्रतीत नहीं होती थी। सन् 1995 में वह हमारे सम्पर्क में आये थे। उनका हमसे अत्यधिक स्नेह था। आश्रम के कुछ लोगों ने उन्हें काफी कष्ट दिये। उन्होंने उनसे संघर्ष किया। वह अस्सी वर्ष की अवस्था में तपोवन आश्रम से 6 किमी. पैदल चल कर प्रातः 6.00 बजे हमारे निवास पर आ जाते थे। हमसे बहुत स्नेह करते थे। हम उन्हें दुग्ध आदि लेने का बहुत आग्रह करते थे परन्तु वह कुछ नहीं लेते थे। तपोवन आश्रम के वह प्रबन्ध थे और इसके लिये वह सभी कुछ करते थे। वह कहते थे कि तपोवन में उन्होंने जिस व्यक्ति को सदस्य एवं मंत्री बनाया था, उसने अकारण व स्वार्थवश वृद्धावस्था में उनको अनेक प्रकार से दुःखी किया। आश्रम की ओर से उनको दी गई लूना मोपेड की सुविधा भी उनसे छीन ली थी। देहरादून के पुराने आर्यों के सभी अच्छे बुरे कामों को वह जानते थे परन्तु किसी को कहते हुए संकोच करते थे। विस्तार से तो बताते नहीं थे परन्तु संकेत अवश्य कर देते थे। हमारे अनुभव उनसे मिलते थे इसलिये हमें उनकी बातों पर विश्वास हो जाता था। उनके व्यक्तित्व पर अगर कहा जाये तो वह देहरादून व देश की बड़ी बड़ी हस्तियों को जानते थे। आर्यसमाज के कुछ लोगों के उनसे काम भी करा देते थे। ऐसे लोगों ने भी उनसे अच्छा व्यवहार नहीं किया। भाई परमानन्द के सुपुत्र भाई महावीर, राज्यपाल-मध्यप्रदेश से भी उनके गहरे सम्बन्ध थे। वह उत्तम कोटि के कार्यकर्ता थे। वक्तव्य व प्रवाह पूर्ण वार्ता वह नहीं कर पाते थे। उनकी मृत्यु व अन्त्येष्टि के कुछ दिनों बाद हमें उनकी मृत्यु का समाचार मिला। उनका अन्तिम संस्कार हरिद्वार में गंगा तट पर किया गया था। बाद में इसकी विस्तृत जानकारी हमें तपोवन के एक पुराने सेवक से मिली। श्री भोलानाथ आर्य जी की ऋषि भक्ति एवं आर्यसमाज के प्रति उनका प्रेम एवं समर्पण अवर्णनीय था। इतना और निवेदन करना है कि वैदिक साधन आश्रम तपोवन में जो भवन एवं अन्य उन्नति दिखाई देती है वह श्री भोलानाथ आर्य जी जैसे कर्मठ ऋषिभक्तों की ही देन है।
श्री ललित मोहन पाण्डेय जी, सेवानिवृत उ.प्र. शासन के अधिकारी
श्री ललित मोहन पाण्डेय जी से हमारा पुराना परिचय है। इनके बड़े भाई श्री रमेशचन्द्र पाण्डेय हमारे सरकारी संस्थान भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, देहरादून में स्टोर अधिकारी थे। आपने दो बार आईएएस की लिखित परीक्षा उत्तीर्ण की थी परन्तु साक्षात्कार में निकल नहीं सके थे। श्री ललित मोहन पाण्डेय जी आर्यसमाज धामावाला देहरादून के सत्संगों में आते थे। वहीं उनसे परिचय एवं मित्रता हुई। आपकी योग व ध्यान में प्रवृत्ति है। आपने स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती जी के हरिद्वार स्थित योगधाम में योग का क्रियात्मक प्रशिक्षण लिया है। वर्तमान में भी आप योगाभ्यास अर्थात् ध्यान व आसनों का अभ्यास करते हैं। आप की जन्म तिथि 1-4-1949 है। आपका जन्म उत्तर प्रदेश के धामपुर नगर में हुआ था जहां आपके पिता सरकारी स्कूल में शिक्षक थे। आप तीन भाई थे। अब दो जीवित हैं. सबसे बड़े भाई की मृत्यु हो चुकी है। आपकी एक बहिन थी जिसकी विवाह के बाद 35-36 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई थी। आप गुरुकुल पौंधा तथा वैदिक साधन आश्रम तपोवन के उत्सवों व वृहद यज्ञों आदि के आयोजनों में सम्मिलित होते हैं। हमारे निवेदन पर भी आप आर्यसमाजों में उपस्थित होते हैं। लगभग एक वर्ष पूर्व आपकी धर्मपत्नी श्रीमती बीना पाण्डेय का देहावसान हुआ है। आपने युवावस्था में आर्य साहित्य का अध्ययन किया है। वर्तमान में भी आप दयानन्द सन्देश, आर्ष ज्योति तथा वेदप्रकाश आदि मासिक पत्रिकाओं के सदस्य हैं। हम लोग महीने में अनेक बार एक दूसरे के घर जाकर मिलते रहते हैं और फोन आदि पर भी आर्यसमाज से जुड़े विषयों सहित पारिवारिक एवं देश व समाज की स्थिति पर चर्चा करते हैं। आपका एक पुत्र एवं पुत्री हैं। दोनों विवाहित एवं ससन्तान हैं। पाण्डेय जी का एक गुण हमने यह अनुभव किया है कि इन्होंने अपनी माता जी को अपने साथ रखा व उनकी बहुत सेवा की। अधिकांश सन्तान अपने माता-पिता की रुग्णावस्था में इतनी अधिक सेवा नहीं करते। अपनी धर्मपत्नी श्रीमती बीना पाण्डेय जी की रुग्णावस्था में भी आपने एक आदर्श पति के रूप में उनकी सेवा की। स्वभाव से श्री पाण्डेय जी विनम्र स्वभाव के हैं। आपका वेदों के सिद्धान्तों का ज्ञान परिपक्व अवस्था में है। हम पाण्डेय जी के स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन की कामना करते हैं।
हमने यह लेख स्वान्तः सुखाय की दृष्टि से लिखा है। हमारे मित्र भी इसे देख कर अपने सुझाव व प्रतिक्रिया हमें दे सकते हैं। हम सभी मित्रों व पाठकों के हृदय से आभारी हैं और सबके कल्याण की कामना करते हैं। ओ३म् स्वस्ति।
-मनमोहन कुमार आर्य