विजय कुमार सिंघल
भारतीय संस्कृति में ऐसी हजारों पुरानी परम्परायें हैं, जो ऊपर से देखने में व्यर्थ और मामूली लगती हैं, लेकिन गहराई से विचार करने पर हमें उनका मर्म और उनकी वैज्ञानिकता समझ में आती है। यह सम्भव है कि हमारे अज्ञान के कारण और काल के प्रभाव से उन परम्पराओं में कुछ विकृतियाँ आ गयी हों, फिर भी हमें उन विकृतियों से दूर रहकर उनका पालन करना चाहिए और उन परम्पराओं की वैज्ञानिकता का लाभ उठाना चाहिए।
ऐसी ही एक परम्परा है- दान की राशि में एक रुपया जोड़कर देने की। जब कोई व्यक्ति किसी धार्मिक या सामाजिक कार्य में कोई धनराशि दान करता है या किसी मांगलिक अवसर पर कुछ भेंट करता है, तो परम्परा के रूप में यह राशि 21 रु, 51 रु, 101 रु, 501 रु, 1001 रु. के रूप में होती है। अर्थात् एक निश्चित बड़ी राशि में ‘एक’ जुड़ा होता है। कई लोग इस ‘एक’ को जोड़ना व्यर्थ मानते हैं और सीधे 20 रु., 50 रु., 100 रु., 500 रु, 1000 रु या इससे भी अधिक की राशि दे देते हैं। लेकिन सूक्ष्मता से विचार करने पर हम पाते हैं कि दान की बड़ी राशि में ‘एक’ अलग से जोड़ना तो हमारी बहुत ही श्रेष्ठ परम्परा है।
इस परम्परा के दो अर्थ हैं। पहला अर्थ यह है कि किसी राशि में ‘एक रुपया’ जोड़कर देने वाला व्यक्ति इस प्रकार से यह घोषणा करता है कि उसके लिए एक रुपया भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जितनी कि शेष राशि।
इसलिए इस राशि के प्रत्येक अंश का सदुपयोग ही किया जाना चाहिए। इस परम्परा का दूसरा अर्थ यह है कि इसमें एक रुपया भेंटकर्ता की श्रद्धा का प्रतीक है और शेष राशि उसकी सामर्थ्य का द्योतक है। विभिन्न व्यक्तियों की सामर्थ्य उनकी आर्थिक स्थिति के अनुसार अलग-अलग हो सकती है, परन्तु सबकी श्रद्धा बराबर होती है। इसी समानता की घोषणा के लिए प्रत्येक राशि के साथ ‘एक रुपया’ अलग से जोड़ा जाता है। इसलिए दान या भेंट की राशि में श्रद्धा का प्रतीक ‘एक’ जुड़ा होना आवश्यक है। यदि कोई व्यक्ति ऐसा नहीं करता, तो उसका अर्थ यह निकलता है कि उसके द्वारा दिया जाने वाला दान या भेंट की जाने वाली राशि श्रद्धा से रहित है और उसकी आर्थिक सामर्थ्य का प्रदर्शन मात्र है, जो अहंकार को बढ़ाने वाला है।
इन दोनों अर्थों को ध्यान में रखते हुए हमें दान या भेंट की राशि में ‘एक’ जोड़ने की परम्परा का पालन अवश्य करना चाहिए। वैसे यह परम्परा घाते की प्रथा से आयी है। जैसे दूध नापने वाला अन्त में थोड़ा सा दूध और डाल देता है या अनाज तौलने वाला थोड़ा सा अनाज और डाल देता है, इसी तरह दान या भेंट देने वाला सभी कमी-वेशी को पूरा करने के लिए राशि में ‘एक’ जोड़ देता है। यह भारतीय संस्कृति की महानता है कि इस मामूली बात के द्वारा इतना बड़ा सन्देश दिया गया है।