तनावों से मुक्ति पाने
हर फिक्र का जिक्र जरूर करें

– डॉ. दीपक आचार्य
9413306077

हमें यह समझने की जरूरत है कि आखिर तनाव है क्या। मनुष्य चाहता है कि जो कुछ हो वह उसका सोचा हुआ हो, मनचाहा हो और ऐसा कुछ भी न हो, जो वो कभी नहीं चाहता। लेकिन भाग्य और परिस्थितियां हमेशा कुछ न कुछ परिवर्तन के साथ मनुष्य के जीवन को खट्टा-मीठा बनाते रहते हैं।
जब कभी प्रतिकूल स्थिति आती है तब वह कुढ़ने लगता है और अनुकूल परिस्थितियां सामने आ जाने पर बौराने लगता है। दुनिया भर में ये बदलाव हर व्यक्ति के जीवन का वह सच है जिसे कोई झुठला नहीं सकता
इन परिस्थितियों को जो लोग चुनौतियां मानकर मुकाबला करते हैं वे कुछ कम दु:खी होते हैं जबकि दूसरे लोग समय के साथ समाप्त हो जाने वाली इन परिस्थितियों को समस्याओं के बहुत बड़े पहाड़ के रूप में देखने के आदी हो जाते हैं और दु:खों तथा भावी स्थितियों पर मंथन करते-करते इतने कुण्ठित और हताश हो जाते हैं कि उन्हें लगता है कि पूरा जीवन यों ही बेकार निकलता जा रहा है और कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा है।
ऐसे लोग अपने चारों तरफ ऐसा मिथ्या मकड़जाल बुन लेते हैं और दिन-रात इन्हीं में परिक्रमा और परिभ्रमण करते हुए विषादग्रस्त होते रहते हैं। इन दोनों ही स्थितियों वाले लोग अपनी समस्याओं, अपने साथ घटित घटनाओं और विषमताओं को अपने भीतर ही दफन करते रहते हैं और इस कारण उनका मन-मस्तिष्क ऐसा कब्रगाह बन जाता है जहाँ कई प्रकार की सडांध और तनावों का विष धीरे-धीरे जमा होता रहता है।
इन सभी प्रकार के लोगों के जीवन की निन्यानवे फीसदी समस्याओं का मूल कारण यही है कि वे किसी को अपनी परेशानी नहीं बताते हैं और अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं और इस कारण उन्हें न ताजे विचार मिल पाते हैं और न ही इन समस्याओं के मकड़जाल से बाहर निकल पाने का कोई रास्ता।
वैचारिक आदान-प्रदान के तमाम रास्तों पर लगा यह जाम मस्तिष्क और शरीर दोनों के लिए खतरनाक होता है और ऐसे में अपनी एकतरफा सोच से तैयार हुआ आभामण्डल समय के साथ काला पड़ने लगता है जिससे शरीर का क्षरण आरंभ हो जाता है और शारीरिक ऊर्जा पलायन करने लगती है, थकान और उबाऊ जीवन महसूस होने लगता है और जीवन का हर क्षण अंधकार का आवाहन करता महसूस होता है।
इस स्थिति में हमारे आस-पास और साथ रहने वाले लोगों के लिए भी हम समस्या बन जाते हैं। इन सारी स्थितियों को समाप्त करने और तनावों से मुक्ति पाने का एकमात्र रास्ता यही है कि हमें जिस किसी तरह की समस्या या परेशानी है, जो फिक्र हमें सता रही है उसे अपने अंदर नहीं रखकर किसी न किसी के समक्ष व्यक्त कर दें।
सामने वाला उसका निदान कर पाने में समर्थ है या नहीं, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। मूल बात यह है कि अपने दिमाग में जो विचार और बातें घर कर गई हैं उन्हें वहाँ से साफ करें और जो कुछ हमें ठीक नहीं लग रहा है, जो कुछ समस्या है वह पूरी तरह खुलकर सामने वालों को बता दें।
एक बार जब अपने दिमाग और दिल से विचारों, कुण्ठाओं और फिजूल की बातों का बाहर निकलना आरंभ हो जाएगा तब हमारी समस्याओं का अपने आप खात्मा होता चला जाएगा। वास्तव में समस्याएं कुछ भी होती ही नहीं। हमारा मन कई समस्याओं को इतना बहुगुणित कर लेता है कि इससे हम भारी हो जाते हैं।
जो लोग तनाव ग्रस्त रहते हैं, समस्याओं और पीड़ाओं से घिरे रहते हैं, दु:खी और विषाद मना हैं उन सभी को चाहिए कि वे अपने भीतर जो कुछ दफन किया है या जिन परेशानियों के दौर से गुजर रहे हैं उसके बारे में किसी न किसी को बता दें और खाली हो जाएं।
इसके साथ ही यह प्रयास करते रहें कि इस प्रकार की फालतू चर्चाएं और बातें अपने दिमाग में रह ही नहीं पाएं। इन्हें प्रवेश ही नहीं होने दें। जब भी इस प्रकार की स्थितियां सामने आएं, ईश्वर का स्मरण करें और अपने आपको ईश्वर का अंश या भक्त मानकर समर्पण भाव में आ जाएं।
व्यक्तिगत हो या सार्वजनिक, समुदाय की हो या घर-परिवार और संबंधों की, हर मामले में हर प्रकार की फिक्र का जिक्र करें तभी हलके-फुलके रह सकेंगे और इसी से तनावों और समस्याओं का खात्मा संभव है। एक बार भी किसी से जिक्र हो जाने पर हमारी आधी से ऊपर समस्याएं स्वत: ही दम तोड़ने लगती हैं।

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