आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
किसी आदमी की प्रसिद्धि और बर्बादी में 3W यानि Wealth, Wine & Woman का बड़ा योगदान रहा है। दूसरे, 60 के दशक में देव आनन्द अभिनीत फिल्म का एक चर्चित गीत “तेरी ज़ुल्फ़ों से कैद मांगी थी, रिहाई तो नहीं मांगी थी…”, वर्तमान परिवेश में ज़ाकिर मूसा, बुरहानी वानी और शरजील की गिरफ़्तारी में शत-प्रतिशत चरितार्थ हो रही है। इतिहास में जाने पर तो एक लम्बी सूची सामने आ जाएगी।
गत मई को जब कश्मीर के वांटेड आतंकी जाकिर मूसा भारतीय सेना ने मार गिराया था, तब मूसा की ही एक तत्कालीन प्रेमिका ने उसे पकड़वाने में सेना की मदद की थी। इससे पहले आतंकवादी बुरहानी वानी भी अपनी प्रेमिका की वजह से ही मारा गया था। इस बार मामला राजद्रोह के आरोप में फँसे हुए शाहीन बाग़ के मास्टर माइंड शरजील इमाम का है। शरजील इमाम की गिरफ्तारी के बाद उसके पकड़े जाने की कहानी के पीछे भी उसकी प्रेमिका का हाथ बताया जा रहा है।
दरअसल, जब CAA विरोध प्रदर्शनों और धरनों में हिन्दू विरोधी और अलगाववादी नारे लगने शुरू हो गए थे, तभी शंका व्यक्त की जा रही थी कि विरोध की आड़ में कोई खतरनाक खेल खेला जा रहा है, जिसे आम जनमानस समझ नहीं पा रहा था। लेकिन वास्तविकता बहुत जल्दी उजागर हो गयी।
आतंकी जाकिर मूसा की तरह शरजील इमाम को भी जानेमन ने ही करवाया गिरफ्तार
रिपोर्ट्स के अनुसार, क्राइम ब्रांच दिल्ली पुलिस शरजील को लेकर बुधवार (जनवरी 29, 2019) दोपहर नई दिल्ली पहुँची। राजद्रोह के केस होने के बाद दो दिन से बिहार में छापेमारी करने पहुँचे पाँच सदस्यों के पुलिस दल को यह बात पता चली की शरजील अपनी प्रेमिका के संपर्क में है। जिसके बाद पुलिस ने शरजील की प्रेमिका से संपर्क किया और उसकी मदद से शरजील इमाम गिरफ्तार हो पाया।
दिल्ली क्राइम ब्रांच और बिहार पुलिस ने सोमवार (जनवरी 27, 2019) को शरजील के जहानाबाद स्थित पैतृक घर पर छापा मारकर उसके छोटे भाई को हिरासत में ले लिया था। भाई से पूछताछ के दौरान पुलिस को शरजील के किसी दोस्त इमरान का पता चला था। जब इमरान को हिरासत में लेकर पूछताछ की गई तो शरजील की प्रेमिका के बारे में जानकारी मिली।
इसके बाद पुलिस ने शरजील की प्रेमिका पर दबाव डालकर उससे शरजील को मलिक टोला स्थित इमामबाड़े में मिलने के लिये बुलाया। जैसे ही शरजील इमामबाड़े में अपनी प्रेमिका से मिलने पहुँचा, वैसे ही पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया।
पुलिस द्वारा पूछताछ के बाद शरजील इमाम अपने भाषण को लेकर पछतावा ना होने की बात स्वीकार की है। साथ ही, उसने कहा कि वह अपना विरोध जारी रखेगा। दिल्ली पुलिस ने खुलासा किया है कि शरजील इमाम घोर कट्टरपंथी है और उसका मानना है कि भारत को एक इस्लामी राज्य होना चाहिए। पूछताछ में उसने यह भी माना है कि उसके अलग-अलग भाषणों के वीडियो के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है।
देश के विभिन्न हिस्सों में राजद्रोह का मुकदमा दर्ज होने के तुरंत बाद से ही भारत को तोड़ने की बात करने वाला चिंगारी छोड़कर शरजील इमाम फरार हो गया था। शरजील ने अपने भाषणों में देश को बाँटने, असम को भारत से काट देने जैसी बातें कही थी। उसने दिल्ली, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय समेत पटना में भी भाषण दिए। ऐसे में पुलिस अब शरजील को जामिया और अलीगढ़ ले जाने की तैयारी कर रही है जिससे वीडियो में दिखाई दे रही जगहों को चिह्नित किया जा सके।
शर्जील इमाम को हीरो बनाने के लिए ‘लिबरल गिरोह’ अब क्या-क्या करेगा कमाल?
देश से असम को काटकर अलग कर देने की बात करने वाले शर्जील इमाम की गिरफ्तारी के साथ ही सोशल मीडिया पर #ISUPPORTSHARJEEL ट्रेंड कराने की कोशिश शुरू हो चुकी है। एक समुदाय विशेष के लोगों के साथ मीडिया गिरोह के कुछ पत्रकार भी बढ़-चढ़कर शर्जील का समर्थन कर रहे हैं। अपनी एकजुटता प्रदर्शित कर रहे हैं। तर्क-कुतर्क करके ये साबित किया जा रहा है कि शर्जील ने जो कहा वो सही है और मोदी सरकार व उनके समर्थक जानबूझकर उसे देशद्रोही बता रहे हैं।
यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि ये सब पहली बार नहीं हो रहा। जिस तरह से देश के ख़िलाफ़ बयानबाजी करने वालों को अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में छिपाया जाता रहा है। उनके प्रति संवेदना दिखाई जाती रही है। एक तय क्रम के साथ उनके विवादों में आने के बाद उन्हें हीरो बनाने की कोशिश हुई। उससे पहले के घटनाक्रमों और इन गिरोहों के एजेंडे को देखते हुए ये स्पष्ट हो चुका है कि शर्जील इमाम के मामले में अब आगे क्या-क्या हो सकता है? पूरी तत्परता के साथ कार्य शुरू हो चुका है जिस पर आप सबकी नजर पड़ी होगी। अब जरा ध्यान से नीचे दी गई टाइमलाइन पर नजर डालिए।
क्या याकूब मेमन, अफ़ज़ल गुरु और बुरहान वानी का समर्थन कर चुके लोग शरजील इमाम को उसके हाल पर छोड़ देंगे? नहीं ऐसा नहीं होगा तो क्या होने की संभावना है इसके लिए पूरी क्रोनोलॉजी समझिए।
आज बड़ी चालाकी से उसे “जेएनयू का छात्र” लिखा जा रहा है, “द वायर का पत्रकार” नहीं।
एक-दो दिन में उसके लिए सहानुभूति पैदा करने का काम शुरू होगा, जिसके लिए यही छात्र शब्द बुनियाद बनेगा।
बताया जाएगा कि वो तो चिकेन नेक पर चक्का जाम की बात कर रहा था। जैसा कि न्यूज़ चैनलों पर परिचर्चा के दौरान कहा भी गया था। अब और तेजी पकड़ेगा। वैसे दो दिन से देखा जा रहा है कि कोई न कोई कट्टरपंथी परिचर्चा छोड़ भाग रहा है।
सेक्युलर मीडिया उसके पक्ष में संपादकीय लिखेगा, संपादक ट्वीट करेंगे।
बताया जाएगा कि जेएनयू के नकाबपोशों को तो पुलिस अब तक नहीं पकड़ पाई।
मानो कैंपस में मारपीट करना और असम को देश से अलग करना एक जैसा अपराध है।
धीरे-धीरे उसे ब्रांड बनाया जाएगा। यूएन का ह्यूमन राइट्स कमीशन उसकी गिरफ़्तारी पर चिंता जताएगा।
प्रियंका वाड्रा शरजील इमाम की माँ से मिलने जाएगी। उनसे लिपटकर फ़ोटो खिचवाएँगी।
दिल्ली में चुनाव का दौर है, कुछ नेताओं की उसके माता-पिता की सहानुभूति की आड़ में अपने वोटबैंक को साधने में लग जाएंगे।
“विराट हिन्दू ” नाम के फ़ेसबुक अकाउंट से शरजील को ग़द्दार कहा जाएगा, जिसका स्क्रीनशॉट दिखाकर राहुल कँवर और रवीश जी प्राइम टाइम करेंगे कि क्या भीड़ तय करेगी कि कौन ग़द्दार है।
मेरठ में कोई “हिन्दू सेना” शरजील इमाम की गर्दन काटने पर 5 लाख रुपये इनाम घोषित करेगी। 3 दिन तक चैनलों पर ख़बर चलेगी।
PFI बड़े वकीलों के अकाउंट में 50-60 लाख रुपए भेजेगा, ताकि वो उसका मुकदमा लड़ें।
मुक़दमा ट्रायल कोर्ट में नहीं, सीधे सुप्रीम कोर्ट में चलेगा।
अदालत पर “जनभावनाओं” का दबाव बनेगा और उसे ज़मानत पर रिहा कर दिया जाएगा।
इसके बाद वो देशभर के चैनलों में नागरिक अधिकारों के प्रवक्ता के तौर पर बुलाया जाएगा।
लिट्रेचर फ़ेस्टिवल में उसके सेशन में सबसे ज़्यादा भीड़ होगी। जहां बुर्के वालियां उसके साथ सेल्फ़ी खिचवाएँगी।
धीरे-धीरे आम लोगों को भी को लगने लगेगा कि स्टूडेंट ही तो है। ग़लती हो गई। क्या फ़र्क़ पड़ता है?
अगली बार कोई तमिलनाडु, केरल, बंगाल को देश से तोड़ने की बात करेगा। हम चुप रहेंगे छोड़ो जाने दो, हमको क्या फ़र्क़ पड़ता है।
इन सब बातों का अनुमान कर पहले से व्यक्त कर देना इतना भी मुश्किल नहीं है। क्योंकि लिबरल गिरोह कैसे संचालित होता रहा है, अब लोग उनके चालों और छल-कपट-धूर्तता से भली भाँति परिचित होने लगे हैं। हो सकता है कि पैटर्न में थोड़ा बदलाव भी नजर आए लेकिन मूल भावना शाहीन बाग़ के मास्टरमाइंड शरजील को पाक-साफ साबित कर एक नए युवा क्रान्तिकारी नेता के रूप में स्थापित करने की होगी। क्योंकि कन्हैया पर लगाया गया दाव वामपंथी गिरोह को फेल होता नज़र आ रहा है और उसकी मुस्लिम समुदाय में उतनी पैठ भी नहीं है।