महर्षि दयानंद के अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश का प्रभाव
‘सत्यार्थ प्रकाश’ एक ऐसा पवित्र ग्रंथ है जिसने यह स्पष्ट किया कि श्राद्ध, तर्पण आदि कर्म जीवित श्रद्धापात्रों (माता पिता, पितर, गुरु आदि) के लिए होता है, मृतकों के लिए नहीं।
तीर्थ दुख ताड़ने का नाम है – किसी सागर या नदी-सरोवर में नहाने का नहीं। इसी प्रकार आत्मा के (मोक्ष पश्चात) सुगम विचरण को स्वर्ग और पुनर्जन्म के बंधन में पड़ने को नरक कहते है – ऐसी कोई दूसरी या तीसरी दुनिया नहीं है।
इस्लाम और ईसाई धर्मों का खण्डन – कोई पैग़म्बर या मसीहा नहीं भेजा जाता है। ईश्वर को अपना सामर्थ्य जताने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि वो सच्चिदानंद है। स्वर्ग, नरक, जिन्न आदि का भी खण्डन।
जैसा कि स्पष्ट होगा, स्वामी दयानंद का मत कई (अंध) विश्वासों और मतों का खण्डन और वेदों के मत को पुनःप्रकाश में लाने का था। इसलिए कई बार उन्हें प्रचलित हिन्दू , जैन, बौद्ध, इस्लामी और ईसाई मतों की मान्यताओं का खण्डन करना पड़ा। अवतारवाद, शंकराचार्य को शिव का अवतार, राम और कृष्ण को विष्णु नामक सार्वभौम का अवतार मानने वाले कई थे। इसी प्रकार तीर्थ, बालविवाह और जन्म संबंधी जाति (वर्ण व्यवस्था का नया रूप) जैसी व्यवस्थाओं का उन्होंने सप्रमाण खण्डन किया। इससे कई सुधार हिन्दू समाज में आए। कई विश्वास इस्लामी समाज का भी बदला। कुछ इस प्रकार हैं –
स्वाधीनता संग्राम के क्रांतिकारियों की प्रिय पुस्तक सत्यार्थप्रकाश और ऋषि दयानन्द की जीवनी बनी , एक अंग्रेज विद्वान शेरोल ने यहाँ तक कहा कि सत्यार्थप्रकाश ब्रिटिश सरकार कि जड़े उखाड़ने वाला ग्रंथ है , वस्तुतः सत्यार्थप्रकाश उस समय कि कालजयी कृति थी और इस कालजयी कृति में अंग्रेजों का विरोध भी था जिससे अंग्रेज सरकार को काफी नुकसान हुआ |
हिन्दुओ के धर्मान्तरण पर रोक लगी और मुसलमानों, ईसाई आदि विधर्मियों की शुद्धि (घर वापसी ) हुयी।
श्रीकृष्ण के ऊपर लगाए हुए गंदे आरोप और लांछन दूर हुए एवं श्रीकृष्ण का यथार्थ सत्यस्वरूप प्रकाशित हुआ।
सत्यार्थप्रकाश ने स्त्री-जाति को पैरों से उठाकर जगदम्बा के सिंहासन पर बैठा दिया।
मूर्तिपूजा का स्वरूप बदल गया , पहले मूर्ति को ही ईश्वर मान चुके थे , अब मूर्तिपूजक भाई बंधू मूर्तिपूजा की विभिन्न मनोहारी व्याख्याएं करने का असफल प्रयास करते हैं।
वीर सावरकर के शब्दों में सत्यार्थप्रकाश ने हिन्दू जाति कि ठंडी रगों में उष्ण रक्त का संचार किया।
सत्यार्थप्रकाश से हिन्दी भाषा का महत्व बढ़ा।
अकेले सत्यार्थप्रकाश ने अनेकों क्रन्तिकारी और समाज सुधारक पैदा कर दिए।
सत्यार्थप्रकाश ने वेदों का महत्त्व बढ़ा दिया, वेद कि प्रतिष्ठा को हिमालय कि चोटी पर स्थापित कर दिया।
सत्यार्थप्रकाश का प्रभाव विश्वव्यापी हुआ , बाइबिल , कुरान , पुराण , जैन आदि सभी ग्रंथो की बातें बदल गयी , व्याख्याएं बदल गयी , सत्यार्थप्रकाश ने धर्म के क्षेत्र में मानो सम्पूर्ण पृथ्वी पर हलचल मचा दी हो।
फरवरी १९३९ में कलकत्ता से छपने वाले एपिफेनी वीकली में स्वर्ग और नरक की अवधारणी बदली। साप्ताहिक पत्र लिखता है – “What are hell and heaven? ..Hell and heaven are spiritual states; heaven is enjoyment of the presence of God, and Hell Banishment from it”. इस पर आर्य विचारधारा (सत्यार्थ प्रकाश जिसकी सबसे प्रमुख पुस्तक है) का प्रभाव दिखता है।
कुरान के भाष्य फ़तह उल हमीद (प्रशंसा से जीत) ने मुसलमानों के कब्र, पीर या दरगाह निाज़ी को ग़लत बताया। इसी पर मौलाना हाली ने मुसलमानों की ग़ैरमुसलमानों की मूर्ति पूजा पर ऐतराज जताते हुए कहा कि मुसलमानों को नबी को खुदा मानना और मज़ारों पर जाना भी उचित नहीं है।
पुराणों, साखियों, भागवत और हदीसों की मान्यता घट गई है। उदाहरणार्थ, जबलपुर में सन् १९१५ में आर्य समाजियों के साथ शास्त्रार्थ में मौलाना सनाउल्ला ने हदीसों से पल्ला झाड़ लिया।
प्रस्तुति — राकेश कुमार आर्य (बागपत)