लक्ष्य ऊँचा और बड़ा रखें
छोटे स्तर से शुरूआत को हीन न मानें
– डॉ. दीपक आचार्य
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दुनिया का हर आदमी विकास के चरम शिखर को प्राप्त करना चाहता है। इसके लिए कुछ लोग भाग्यशाली होते हैं जो पूर्वजन्म के अच्छे कर्म के कारण से ऐसा सब कुछ पा जाते हैं जिसके योग्य वे नहीं हुआ करते हैं। कुछ लोगों को अपने परिवारवाद, पूंजीवाद, वंशवाद व समाज-वाद का लाभ मिल जाता है और वे समाज और क्षेत्र की छाती पर चढ़े हुए वो सब कुछ कर गुजरते हैं जो इनकी इच्छा होती है।
शेष लोग ऐसे हैं जो बहुसं यक हैं और उनके लिए लक्ष्य को प्राप्त कर लेना आसान काम नहीं हुआ करता है। इसके लिए उन्हें खूब मेहनत करनी पड़ती है। इसके बावजूद कुछ तो लक्ष्य को पा जाते हैं जबकि कई सारे लोग ऐसे होते हैं जो दिन-रात मेहनत करने के बावजूद अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
लक्ष्य को पाने के लिए सभी प्रकार की प्रतिभाओं और परिश्रम के होने के बावजूद कई लोगों को लक्ष्य की निकटता से भी वंचित रहना पड़ता है। अपने-अपने लक्ष्यों को पाने के लिए की जाने वाली इस जीवन यात्रा के सारे पड़ावों को गंभीरता से समझने की जरूरत है।
जीवन निर्माण और सुनहरा भविष्य बनाने के लिए प्रतिभाओं का पूरा इस्तेमाल करने के साथ ही कठोर परिश्रम की आवश्यकता होती है। हर आदमी को अपने लिए ऊँचे और बड़े लक्ष्य सामने रखकर काम करना चाहिए लेकिन लक्ष्य यदि दूर हो तो उस अवस्था में लक्ष्य से संबंधित या असंबंधित जो भी का हो, उसे सीढ़ी मानकर अंगीकार करने में पीछे नहीं रहना चाहिए।
समाज में खूब सारी प्रतिभाएँ ऐसी देखने को मिलती हैं जिन्होंने सर्वोच्च लक्ष्यों को सामने रखा, खूब मेहनत भी की लेकिन उन्हें सफलता प्राप्त नहीं हो पायी। और आज वे लोग उच्च लक्ष्य को तो छोड़ें, सामान्य स्तर का लक्ष्य भी प्राप्त नहीं कर सके।
आज वे सारे के सारे लोग आत्महीनता से इस कदर ग्रस्त हैं कि सदमे से उबर ही नहीं पाए हैं। इन लोगों की सामान्य जिन्दगी को भी ग्रहण लग जाने जैसी स्थितियाँ सामने हैं।
आमतौर पर प्रतिभाओं को कुण्ठा इसलिए होती है क्योंकि वे जो लक्ष्य तय कर लेते हैं उसे किसी न किसी वजह से प्राप्त नहीं कर पाते हैं। दो-चार बार लक्ष्य में विफलता की स्थिति हो या लक्ष्य की प्राप्ति में विलंब की स्थितियां हों, उस अवस्था में हमें चाहिए कि लक्ष्य पाने के लिए किए जाने वाले प्रयत्न निरन्तर करते रहें लेकिन इनके साथ ही लक्ष्य से ही जुड़े हुए या जीवन विकास से संबंधित जो भी कार्य हमारे लायक सामने आएं या जो अवसर प्राप्त हों, उनकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए बल्कि उन्हें प्रसन्नतापूर्वक यह मानकर अंगीकार कर लेना चाहिए कि यह भगवान ने हमें अपने लक्ष्य की प्राप्ति में मददगार के रूप में प्रदान किया है।
कई लोग उच्च पदों के लिए मेहनत करते हैं और इनका दुराग्रह यह होता है कि उच्च पद ही पाएंगे, दूसरा कोई काम स्वीकार नहीं करेंगे, उस अवस्था में इन्हें कई बार निराशा हाथ लगती है और ऐसे में सामान्य पदों या काम-धंधों से भी जुड़ नहीं पाते अथवा आयु अवधिपार हो जाया करती है।
कुछ नहीं मिल पाने की स्थिति में कुछ प्राप्त करते हुए आगे बढ़ने के लिए निरन्तर प्रयास करते रहने की मानसिकता के साथ जो लोग जीवनयापन करते हैं वे प्रगति के सोपानों को पार करते हुए अन्तततोगत्वा एक दिन अपने लक्ष्य को प्राप्त कर ही लिया करते हैं और वह भी बिना किन्हीं तनावों या समस्याओं के साथ।
अपने लक्ष्य को पाने के लिए समर्पित रहें, कड़ा परिश्रम करें और एकाग्र रहें लेकिन लक्ष्य प्राप्ति में विलंब या अन्य परिस्थितियों की हालत में छोटे स्तर पर शुरूआत को कभी हीन न मानें।
यह दुराग्रह भी नहीं पालें कि बड़ा पद या काम मिलेगा तो ही करेंगे अन्यथा नहीं। उच्चाकांक्षाओं और महत्त्वाकांक्षाओं का स्थान जरूर है लेकिन यथार्थ के धरातल को स्वीकार करना उससे भी अधिक आवश्यक है।
लक्ष्यों की प्राप्ति में सामने आने वाले अवसरों को सहायक एवं मददगार मानें तथा इन्हीं के सहारे चलते हुए लक्ष्य को पाने के लिए प्रयास करें।
लक्ष्य प्राप्ति में ये सम सामयिक सहारे ज्यादा प्रभावी सिद्घ हो सकते हैं, इस सत्य को भी स्वीकार करना चाहिए। फिर इससे दूसरा फायदा यह होता है कि बड़ा लक्ष्य किसी कारण से प्राप्त नहीं हो पाने की स्थिति में अवसादों और विषादों को अपने जीवन में जड़ें जमाने की भावभूमि प्राप्त नहीं हो पाती।
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