जामिया गोलीकांड को लेकर जिस प्रकार की बयानबाज़ी कांग्रेस नेता कर रहे हैं उससे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मानो इस देश में जो कुछ भी हो रहा है, उसके लिए केवल भाजपा, संघ और बहुसंख्यक समाज के लोग ही उत्तरदायी हैं। ठीक ऐसी ही परिस्थितियां आज से 72 वर्ष पहले 30 जनवरी 1948 को बनी थीं जब नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या की थी और कांग्रेस व वामपंथ ने इसका ठीकरा हिन्दू संगठनों और संघ पर फोड़ा था, जिसे वह आज भी दोहराते रहते हैं। उस समय भी कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टिकरण की सारी हदें पार करते हुए हिन्दू समाज को भयभीत और मजबूर किया हुआ था।
आज पूरे देश में CAA-NRC की आड़ में विपक्ष देश के विभाजन, मोदी-शाह और संघ के विरुद्ध नफ़रत, तथा हिन्दू-हिंदुत्व औऱ हिंदुस्तान के ख़िलाफ़ लगातार जहर फैलाया जा रहा है। शाहीन बाग़ में पिछले लगभग 50 दिनों से अराजकतावादी तत्वों ने महिलाओं औऱ मासूम बच्चों के कंधों पर बंदूक रखकर गुंडागर्दी और बदमाशी के बल पर रास्ता जाम किया हुआ है जिसके कारण करीब 2 करोड़ नागरिकों को न केवल परेशानी हो रही है बल्कि उनके रोजमर्रा के कामों में भी काफी रुकावट हो रही है।
उधर AMU में रोज़ाना ज़हरीले भाषण दिए जा रहे हैं, पूरे देश को तोड़ने की बात की जा रही है, JNU में पढ़ाई पूरी तरह से ठप्प की जा चुकी है औऱ शरजील इमाम जैसे देशद्रोही तत्वों की खुलेआम पैरवी की जा रही है, जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र रोज़ाना सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। मणिशंकर अय्यर, अमानुतुल्ला खान, अकबरुद्द्दीन ओवैसी सहित तमाम विपक्षी नेता जहर उगल रहे हैं।
यद्यपि इस देश में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है। लेकिन आज जो हालात कांग्रेस-वामपंथ ने फैलाये हुए हैं, तो क्या उससे राष्ट्रभक्त, देशभक्त औऱ तमाम आम जनता के बीच आक्रोश लगातार पनप रहा है? क्या जामिया गोलीकांड उसी आक्रोश का नतीजा है? क्या इस देश को इस्लामिक राष्ट्र बनते हुए देखते रहें?
आखिर कब तक इस देश का आम नागरिक गांधी के तीन बन्दर बनकर बैठा बनकर रहेगा?
इन सवालों के जवाब कांग्रेस-वामपंथ सहित तमाम विपक्षी दल और ख़ुद केंद्र सरकार को भी देना होगा।
मुख्य संपादक, उगता भारत