डा.राज सक्सेना
भगवान राम के अस्तित्व पर बेझिझक अंगुली उठा ने वालों से एक प्रश्न किया जा सकता है कि वे क्या प्रभुपुत्र ईसा मसीह की सही जन्मतिथि बता सकते हैं । अभी दो हजार वर्ष से कुछ अधिक समय ही बीता है । विश्व का एक सबसे बड़ा समुदाय जो संसार में सबसे अधिक मतावलम्बी रखता है । अपने आपको महान खोजकर्त्ता और वैज्ञानिक मस्तिष्क कहता है । दुनिया को अंधकार से प्रकाशमार्ग पर लाने का दावा करता है । किसी भी गुत्थी के उलझने पर उसके सुलझा लेने का दावा करता है। जिसका धर्मगुरू एक स्वतंत्र शासक की हैसियत रखता है। पश्चिमी इतिहासकार जो स्वंय को महान शोधार्थी मानते हैं । वे स्वंय – अपने धर्म प्रणेता की सही जन्मतिथि का पता नहीं लगा पाए । कैसी विडम्बना है यह। ऐतिहासिक और धार्मिक महापुरूषों के सम्बन्ध में एक मूलभूत अन्तर होता है । ऐतिहासिक पुरूषों का पूर्वकालिक अल्पपरिचय होता है अत: उनके बारे में अधिकतर- बातें या तो सर्वत्र उपलब्ध होती हैं, या फिर तत्कालीन साक्ष्यों के आधार पर उनकी स-प्रमाण कल्पना संभव है । किन्तु धार्मिक महापुरूषों का पूर्वपरिचय लगभग सनातन होता है । अत: उनके विषय में धार्मिक मिथकों से ओत-प्रोत जानकारियां ही प्राप्त होती हैं ।
इस कारण उनसे सम्बन्धित सप्रमाण तथ्यों का वर्गीकरण सम्भव नहीं हो पाता है । भगवान
राम पर अंगुली उठाने वाले उनके विषय में बेझिझक अपने विचार प्रस्तुत कर देते हैं। किन्तु अन्य धर्मो पर अंगुली उठाने की कल्पना मात्र से उनकी अंगुली लकवाग्रस्त होकर
स्यंय अपनी ओर झुक जाती है । वस्तुत: भारत के साथ एक विडम्बना यह भी है कि इसका इतिहास इस देश
को लूटने के उद्देश्य से आए धर्मान्ध लोगों द्वारा अपने हिसाब से लिखा गया । इन लोगों ने भारत आकर सबसे पहले योजनाबद्ध तरीके से भारत के इतिहास और साहित्य को नष्ट किया । यह भारत की संस्कृति के प्राचीन अध्याय को अन्धेरे युग में बदल देने का एक सबल कारण बना और हर चीज को प्रमाण की (अपनी नहीं दूसरों की) तराजू में रख कर
तौलने वाले पाश्चात्य इतिहासकारों को प्रमाण उपलब्ध न होने पर मन चाहे निष्कर्ष और
निर्णय थोपने के बहाने भी । वर्ष ।12 के आक्रमण से प्रारम्भ होकर 1947 के पूर्वार्ध तक 1235 वर्षों की गुलामी में भारत के इतिहास के साथ आक्रमणकारियों ने जितने जघन्य पाप और बलात्कार किये वे अक्षम्य हैं । बात यहीं पर ही नहीं रूकी सबसे बड़ी विडम्बना यह रही कि आजादी के बाद भी इतिहास के लेखन और पुनर्लेखन का कार्य एक ऐसे दल को दे दिया गया जो कहीं से भी (नामों के अतिरिक्त)भारतीय तो था ही नही सोने पर सुहागा भारतीय संस्कृति को निकृष्टतम मानने के प्रति दुराग्रही भी था । फल यह हुआ कि जो गलतियां हम स्वतंत्रता के तुरन्त बाद सुधार सकते थे उन्हें इन पक्के अभारतीय दृष्टि-कोण के लोगों ने सत्य होने का प्रमाणपत्र प्रदान कर दिया । आज उसी असत्य इतिहास और संस्कृति के प्रदूषित अध्यायों को पढने के लिए हम और हमारी संतति विवश है ।- विवशता देखिए गलत इतिहास पढ कर हम अपने पूर्वजों से नफरत करने के लिए बाध्य ही नहीं,विरोध योग्य भी नहीं हैं ? क्योंकि अगर कोई प्रयास किया भी जाय तो अन्यों से अधिक ये तथाकथित विद्वान इतिहासकार इतना हल्ला मचाते हैं कि कोशिश करने वाला स्वंय डर कर बैठ जाता है । यह भी सत्य है कि विदेशी शासन में इतिहास इतना तोड़्- मरोड़ दिया जाता है या दिग्भ्रान्त या दिशाविहीन कर दिया जाता है कि वह झूठ का पुलन्दा लगे । या फिर उलटा ही भाव पैदा करदे । भारतीय इतिहास के संदर्भ में सुप्रसिद्ध विद्वान एच.एम.इलियट ने आठ खण्डों की
विवेचना के प्राक्कथन में स्पष्ट किया है कि-भारत में मुस्लिम युग का इतिहास – एक निर्लज्ज और जानबूझ कर किया हुआ धोखा है । अरब संलग्न क्षेत्र में निकट पूर्वकाल में तीन धर्मों का प्रादुर्भाव हुआ । यहूदी,ईसाई
और मुस्लिम । इन तीनों धर्मों में से सनातन धर्म यहूदी का मूल धर्मग्रंथ ओल्ड टेस्टामेंट माना जाता है । जबकि यहूदी अपना अलग धर्मग्रंथ व मान्यतायें मानते व रखते हैं । चूंकि विश्व में यहूदियों की अत्यल्प संख्या होने के कारण उनसे सम्बन्धित विवाद न तो – कोई अधिक महत्व पा पाते हैं और न ही उनकी कोई सार्वजनिक चर्चा ही होती है । इसके विपरीत लगभग चौदह सौ साल मात्र पुराना इस्लामधर्म भी कई मामलों में विवादग्रस्त है । स्वंय हजरत मुहम्मद के जन्म दिन की सही तिथि का निर्धारण भी हल्का सा विवादित है।
कुछ विद्वान उनके प्रचलित जन्मदिन को सही मानने से परहेज करते हैं । इस्लाम में काल-गणना मुख्यत: हिजरत (मक्का से ह0 मुहम्मद के मदीना पलायन की तिथि ) से की जाती है और ह0 मुहम्मद की जन्म तिथि का सही आकलन उनके अनपढ होने के कारण हल्का विवादित भी है। किन्तु इस्लाम में प्रत्येक विवाद कुरान शरीफ की आत्मा के अन्तर्गत-कोई फतवा प्राप्त कर आसानी से सुलझ जाता है । अत: इस्लाम में भी कोई विवाद सार्वज- निक विवाद के रूप में अधिक तूल नहीं पकड़ता है ।
अब चर्चा करली जाय पुन:, विश्व के सबसे बड़े धर्म ईसाइयत की । इस – महान
धर्म के प्रवर्तक ह0 ईसा (क्राइस्ट) की जन्म तिथि के विवाद की ।
विश्व के कुछ हिस्सों को छोड़ कर अधिकांश विश्व ईसा मसीह का जन्मदिन मुख्यत:
25 दिसम्बर को क्रिसमस के रूप में मनाता है ।उपलब्ध अभिलेखों के अनुसार सर्व प्रथम
जीसस का जन्म दिन त्योहार के रूप में रोम में सन 336 में मनाया गया था । जबकि
रोम के ही साम्राज्य के पूर्वी भाग में 6 जनवरी को यह त्योहार अब भी मनाया जाता है ।
किन्तु मात्र कुछ लोगों द्वारा ही ? यरूशलम में जीसस के जन्म दिन का प्रारम्भ में बहुत
विरोध हुआ । आरमेनियम के गिरजा घरों ने तो 25 दिसम्बर को जन्मदिन स्वीकार ही
नहीं किया था और वे 6 जनवरी को ही क्रिसमस मनाते थे । बाद में इसे प्रभु प्रकाश के
रूप में मनाया जाने लगा ।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 25 दिसम्बर को ईरान में रहस्यमय भगवान
मिथरा के जन्म दिवस के रूप में मनाए जाने की प्रथा है । ईसाई मत के जनक का –
– 3 –
जन्म दिन लगभग सर्वमान्य रूप से पूरे विश्व में अब 25 दिसम्बर को क्रिसमस के रूप
में मनाया जा रहा है किन्तु जीसस की जन्म तिथि का विवाद अभी सुलझा नहीं है । –
कोई तथ्य या लिखित अथवा सर्वपुष्ट प्रमाण ईसा के जन्म के सम्बन्ध में उपलब्ध नहीं
है । विभिन्न विद्वानों ने भी उलझाने वाले प्रमाण या साक्ष्य अथवा तर्क ही प्रस्तुत किये
हैं ।
प्रसिद्ध अमेरिकी वैज्ञानिक आ’ इजैक असीमोव की चर्चित पुस्तक “आइजैक –
असीमोव्स बुक आफ फैक्टस” में उन्होंने स्पष्ट किया है कि ईसा के स्वर्गारोहण के 534
वर्ष बाद जिस भी व्यक्ति ने ईसा की जन्म तिथि की गणना की उसने गलत गणना कर
यह तिथि निर्धारित की । ईसा की जन्म तिथि पर शोध कर रहे भारतीय अन्वेषक श्रीहरि
भी इस तिथि को विवादित मानते हुए जीसस के जन्म दिवस को वैज्ञानिक तरीके से –
खोजने पर बल देते हैं ।
जहां तक 25 दिसम्बर के निर्धारण का प्रश्न है ईसाई धर्म ग्रन्थों में कोई –
सटीक व्याख्या उपलब्ध न होने के कारण इसे त्योहार के रूप में मनाने का निर्णय मात्र
सुविधा के अनुरूप मनाने के लिये कुछ विद्वानों की गोष्ठी में सर्वसम्मति से लिया गया एक
निर्णय मात्र था ।
क्रिसमस की तिथि का सुझाव क्लीमेंट आफ अलेक्जेन्ड्रिया ने 20 मई को –
तथा डे पाश्चा कम्प्यूट्स ने इसे 28 मार्च को मनाने का सुझाव दिया था । इसके अतिरिक्त
ग्रीक विद्वानों ने भगवान डायोनिसस की जन्म तिथि 6 जनवरी को ही मनाने पर जोर दिया
था तो इजिप्सियन विद्वानों ने अपने आराध्य देवता आसिरिस के ही साथ जीसस का जन्म
दिन मनाने पर बल दिया था । इन विद्वानों के एक मत न हो पाने पर समस्त विद्वानों ने
हल निकाला और रोम में 25 दिसम्बर को मनाए जाने वाले एक त्योहार को ही ईसा(जीसस)
का जन्म दिन मानते हुए क्रिसमस के रूप में उसे मनाने का निश्चय किया ।
सम्पूर्ण विश्व के क्रिश्चियन अब 25 दिसम्बर को ही जीसस का जन्म दिन मानते हुए
क्रिसमस मनाते हैं । मात्र ग्रीक क्षेत्रों और उपरोक्त उल्लिखित क्षेत्रों के अतिरिक्त यीशू मसीह
का जन्मदिवस (एपिफनी डे) रूस, बुल्गेरिया आदि देशों के कुछ भागों में आज भी जीसस
का जन्म दिन (क्रिसमस) के रूप में 6 जनवरी को मनाया जाता है ।
हिन्दू भगवानों के अस्तित्व व उनके होने के विषय में प्रमाण मांगने वाले –
इस विषय पर क्या मांगेगे प्रमाण या कुछ और ?