महात्मा हंसराज ने महर्षि दयानंद के स्वपनों को साकार करने के लिए डीएवी के नाम से पहला स्कूल/कालेज लाहौर में खोला था। देश में इस समय लगभग 1000 स्कूल/कालेज हैं। हमारे नगर में भी दो कालिज हैं। इससे संबन्धित जानकारी इस प्रकार है–
-इंटर कालेज में 33 वर्ष तक प्रवक्ता रहने के बाद जब वे सेवानिवृत हो गये तब उनसे अनुरोध किया गया कि वे अब नियमित रूप से आर्य समाज के यज्ञ व सत्संग में आया करें तो उन्होंने उत्तर दिया कि वे पहले भी मूर्ति पूजक थे और अब भी मूर्ति पूजक हैं। उन पर आर्य समाज की विचारधारा का कोई प्रभाव नही पड़ा है।
चइंटर कालेज में 38 वर्ष तक प्रवक्ता तथा प्रधानाचार्य रहे सज्जन जब जाते हैं तो मार्ग में जो मूर्ति पूजा का मंदिर होता है वहां रूकते हैं हाथ जोड़कर शीश झुकाकर प्रणाम करते हैं किंतु आर्य समाज के हवन सत्संग में आने के लिए समय नही है।
-डिग्री कालेज के प्रधानाचार्य के कार्यालय में महर्षि दयानंद के चित्र पर दानों की माला पहनाई हुई थी। जब उन्हें बताया गया कि माला पहनाना आर्य समाज के सिद्घांतों के अनुकूल नही है तब उन्होंने उत्तर दिया कि उनका परिवार आर्य समाजी तो है किंतु उन्हें इस बात की जानकारी नही थी कि माला नही पहनानी चाहिए। अब वे इसे उतार देंगे। अगले वर्ष जब वहां गये तब स्वामी दयानंद का चित्र नही था। पूछने पर उत्तर मिला कि उसमें दीमक लग गयी थी इसलिए उतार पर स्टोर में रखवा दिया है। नया मंगवाया जाएगा।
-एक वर्ष बाद फिर जाने पर देखा कि शो केस में स्वामी विवेकानंद डा. अंबेडकर, सुभाष चंद्र बोस आदि के 5-7 फोटो थे किंतु दयानंद का फोटो नही था। पूछने पर उत्तर मिला कि वे तो कार्यवाहक पद पर हैं। स्थायी प्रधानाचार्य जब आ जाएंगे तब उनसे कहा जाए कि दयानंद का फोटो लगा दें।
-डिग्री कालिज के एमए के छात्र से पूछा गया कि डीएवी का क्या अर्थ है? उत्तर मिला कि उसे मालुम नही है। आर्यो सोचो कि दयानंद का अधूरा काम कैसे पूरा होगा।
इंद्रदेव गुलाटी
बुलंदशहर
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