गाजियाबाद । (ब्यूरो डेस्क ) नोएडा ग्रेटर नोएडा दिल्ली , शाहदरा, गाजियाबाद , गुड़गांव और फरीदाबाद इन सब शहरों में कभी बहुत दूरी हुआ करती थी , लेकिन महानगरीय योजनाओं की मूर्खतापूर्ण नीतियों ने इन सब शहरों के बीच की हरियाली को खा लिया और हर कदम पर अब केवल और केवल आदमी ही आदमी दिखाई देता है ।
सड़क पक्की हो गई , गलियां पक्की हो गयीं , नालियां पक्की हो गयीं , घर के आंगन पक्के हो गए। सब कुछ पक्का हो जाने से बारिश का सारा पानी पक्के नालों के माध्यम से नदियों में ले जाकर डाला जा रहा है । ऐसे में इन सब शहरों में रहने वाले करोड़ों लोगों के लिए भूगर्भीय जल संकट की स्थिति कहीं-कहीं पैदा हो चुकी है तो कहीं पैदा होने वाली है।
जब सब कुछ पक्का कर दिया गया है तो बारिश के पानी को रोकने के लिए कहीं पर भी जगह नहीं छोड़ी गई है । गंदी नालियों के पानी से नदियों को भी प्रदूषित किया जा रहा है । यानि खुद तो मरेंगे ही औरों को भी मारने का ठेका ले लिया गया है । इसके बावजूद भी अपने आप को सभ्य समाज का प्राणी कहने वाले लोग अपनी पीठ अपने आप थपथपा रहे हैं कि हमने कई सारे शहरों को एक साथ मिलाकर और महानगर बसाकर बहुत बड़ा काम कर दिखाया है । जबकि इन्होंने इस सारे क्षेत्र में अर्थात एनसीआर में भूगर्भीय जल संकट की स्थिति पैदा कर दी है , जहां भूगर्भीय जल उपलब्ध है वहां उसे भीतर ही भीतर प्रदूषित कर दिया है। हवा प्रदूषित कर दी ।खाने पीने की चीजों में मिलावट इस स्थिति में पहुंच गई है कि एनसीआर के किसी भी व्यक्ति को अब शुद्ध खाद्य पेय पदार्थ मिल नहीं पा रहे हैं । पूरे एनसीआर में दूध की भारी कमी है। आदमी को मारने का पूरा प्रबंध कर दिया गया है और इसके बावजूद इसे हम अपनी तरक्की कह रहे हैं ।
अपनी मूर्खता के कारण ही आदमी अपने मरने का सामान तैयार कर रहा है । अब स्थिति यह हो चुकी है कि चाहे कितनी ही व्यवस्था बना ली जाए लेकिन दिल्ली और एनसीआर के शहरों में ट्रैफिक जाम की व्यवस्था से छुटकारा नहीं मिल सकता । आप जिधर भी जाएं उधर ही जाम दिखाई देता है। पेट्रोल डीजल के प्रदूषण से लोगों का दम घुट रहा है । अनेकों जानलेवा बीमारियां फैल रही हैं इसके बावजूद शासन प्रशासन आराम की नींद सो रहा है। प्रशासनिक लापरवाही के चलते पूरा एनसीआर इस समय डेथ चेंबर में तब्दील हो चुका है। भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा इस संबंध में तल्ख टिप्पणी के बावजूद प्रशासन हरकत में आता दिखाई नहीं दे रहा है । लगता है पूरे एनसीआर को भाग्य भरोसे ही छोड़ दिया गया है । प्रशासनिक व्यवस्था सारी पंगु बन चुकी है।
मुख्य संपादक, उगता भारत