इस्लामिक आतंकवाद का सच : देशवासियों को जागना ही होगा

विश्व प्रसिद्ध हार्वर्ड विश्वविद्यालय के इस्लाम अध्ययन केंद्र के निकोलेटा एनजे अपनी लंबी शोध के बाद, एवं समस्त यूरोप व अमेरिका के डेमोग्राफी का अध्ययन करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि जिस भी राष्ट्र में इस्लाम के मानने वालों की संख्या 16 प्रतिशत तक पहुंच जाती है वहां से उस देश का पूर्ण इस्लामीकरण रोकना लगभग असंभव हो जाता है।

इसी विषय पर पीटर हैमंड की एक किताब “स्लेवरी टेररिज्म एंड इस्लाम” में वे लिखते हैं कि जिस प्रकार धीमें धीमें मुस्लिमों की जनसंख्या बढ़ने लगती है वह एक खास पैटर्न में अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना शुरू कर देते हैं एवं लगभग 16% तक पहुंचने के पश्चात वे प्वाइंट आफ नो रिटर्न पर आ जाते हैं। वे उस देश को बहुत जल्द ही पूर्ण इस्लामिक देश में बदलने की ताकत तैयार कर लेते हैं।

तारीख गवाह रहे कि भारत में देश विद्रोहियों की जनसंख्या 15% हो चुकी है। यदि सभी इब्राहिमिक धर्मों को जोड़ें तो ये 20% हो चुके हैं। भारत के 90% हिंदू इन बातों को हास्यास्पद एवं अतिरंजित बताते हैं। वह आज भी इस गफलत की नींद में आराम से सो रहे हैं कि हमारे साथ ऐसा नहीं होगा। पिछले कुछ वर्षों में कश्मीर बंगाल केरल उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में इतना तांडव देखने के बाद भी भारत के गैर मुस्लिमों को यह मुगालता है कि यह एक सामान्य फसाद ओर झगड़ा था जो होता रहता है। वे यह मानने को कतई तैयार नहीं है यह सब कुछ एक दूरगामी लंबी योजना के तहत हो रहा है एवं ऐसा विश्व के अनेकों देशों में हो चुका है और हो रहा है। लेकिन वह सच्चाई से आंखें मूंद कर रखना चाहते हैं।

आज यदि मैं यह कहूं कि भारत गृह युद्ध के कगार पर खड़ा है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। भले ही आप इस बात पर यकीन ना करें। पिछले दिनों हुए देशव्यापी हिंसक तांडव पर गौर करें तो आप यह पाएंगे कि यदि इस हिंसा में तथाकथित सेक्यूलर राजनीतिक दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं का, जोकि बहुत से गैर मुस्लिम थे, समर्थन नहीं होता, उनकी आड़ नहीं होती तो यह स्पष्ट रूप से हिंदू विरोधी और देश विरोधी दंगा ही था, गृह युद्ध की बानगी थी। याद कीजिए, इसमें 99% लोग कौन थे? इसको राजनीतिक लालचियों ने राजनीतिक विषय बनाने की कोशिश की जो विशुद्ध रूप से दारुल इस्लाम की दिशा में उठाया गया सांप्रदायिक कदम था। उनको इन सेकुलर लोगों के द्वारा एक लेजिटिमेसी दे दी गई, एक वैधानिकता प्रदान कर दी गई। इससे उनके मनोबल में अतिशय वृद्धि हो गई। अब इन सैक्युलरों की आड़ में और भी बड़ी योजना बहुत आसानी से क्रियान्वित कर सकेंगे।

क्या आप यह स्वीकार करते हैं आपके हमारे जिन बौद्धिक विकलांग सैक्युलर भाइयों को हम बहुत ही सामान्य रूप से ले रहे हैं, बहुत ही संयम के साथ उनसे व्यवहार और आचरण कर रहे हैं, दरअसल वे ना सिर्फ देश के साथ बल्कि हमारे धर्म और संस्कृति के साथ इतना बड़ा गुनाह कर चुके हैं जिसकी सजा सिर्फ उनका बहिष्कार करना नहीं हो सकती। वे मनोरोगी तो हैं ही लेकिन बेहद हिंसक पाशविक भी हैं जिन्हें खुला छोड़ना खुद की शामत बुलाने जैसा है।

यह सही है कि वक्त से पहले की गई बात पर यकीन नहीं होता है। मेरी बात आज अप्रासंगिक लग रही होगी। आप चैन की बंसी बजा रहे हैं इसका यह मतलब तो नहीं कि कुटिल योजनाकार भी शांत बैठे हुए हैं।

आपको सोचना ही पड़ेगा वरना बहुत विलंब हो जाएगा कि आप ही के भाई बंधु मित्र परिवार जन जो इस दूषित देशद्रोही और धर्म द्रोही मानसिकता का पोषण कर रहे हैं, वे स्वं किसी भी हिंसक पाशविक आतंकी से कमतर नहीं है।इस सब के लिए, दरसअल वे ही जिम्मेदार हैं। सोचना आपको है कि अपने राजनीतिक स्वार्थी भाइयों का क्या इलाज करना है जो कुछ टुकड़ों की भूख में अपनी ही मातृभूमि से दोगलापन कर रहे हैं।

आपको तत्काल ही यह भी तय कर लेना है कि अवश्यंभावी गृह युद्ध की आप की क्या तैयारियां हैं। और आपको यह भी तय कर लेना है कि आपको इस जहन्नुम में झोंकने के लिए जिम्मेदार, आप ही के अपने भाई बंधुओं की कितनी जिम्मेदारी तय करनी है। बहिष्कार की बातें करना पाखंड के सिवाय कुछ भी नहीं है। विषय गंभीर चिंतन का है। हल्के में लेने की भूल करेंगे तो बहुत पछताएंगे।

प्रस्तुति : विमल आर्य

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