Categories
इतिहास के पन्नों से

धारा 370 का विरोध करने वाले मौलाना हसरत मोहानी का संघर्ष और 26 जनवरी

आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं । इस पवित्र अवसर पर आज हम एक ऐसे महान देशभक्त मौलाना हसरत मोहानी के विषय में बात करेंगे जिन्होंने कांग्रेस में रहकर गांधीजी और नेहरू जी का इस बात के लिए विरोध किया कि भारत को अधिशासी अधिराज्य अर्थात डोमिनियन स्टेटस नहीं चाहिए बल्कि पूर्ण स्वाधीनता चाहिए ।
गांधीजी का विरोध करने वालों में एक नाम हसरत मोहानी का भी है । उन्होंने 1922 में कांग्रेस के अधिवेशन में भाषण देते हुए कहा था कि कांग्रेस के स्वराज्य की व्याख्या इस प्रकार की जाए – ‘ हमें चाहिए पूर्ण स्वतंत्रता , विदेशियों के नियंत्रण से बिल्कुल आजादी ।’ इस पर पट्टाभीसीतारामय्या ने लिखा है :– ‘इस घटना को अब इतना अरसा गुजर चुका है कि अब तो यह भी आश्चर्य होता है कि कांग्रेस और गांधी जी ने इसका विरोध क्यों किया ?’ अर्थात कांग्रेस के इतिहास के लेखक को भी इस बात पर आश्चर्य हो रहा है कि गांधी जी और नेहरू जी ऐसे प्रस्ताव का विरोध क्यों करते रहे ? इसके विपरीत उन्होंने इस संबंध में लाए गए प्रस्ताव को उसी दिन स्वीकार क्यों नहीं कर लिया ?
यह हसरत मोहानी ही थे जिनके प्रस्ताव को कांग्रेस ने 8 वर्ष पश्चात जाकर अपने ध्येय में सम्मिलित किया । डॉक्टर पट्टाभीसीतारामय्या हमें बताते हैं कि :- “मोहानी के कथन पर गांधी जी ने उस समय कड़ी भाषा का प्रयोग किया था। ( अर्थात मोहनी साहब के पूर्ण स्वाधीनता के प्रस्ताव को सुनकर राजभक्त गांधीजी बिगड़ गए थे ) गांधी जी ने एक नया आंदोलन चलाया था या तजवीज किया और नए ढंग से हमला करने की मोर्चाबंदी की। यह एक ऐसा संग्राम था जिसमें उद्देश्य और उसे पाने के लिए की गई नई व्यूह रचना स्पष्ट रूप से निश्चित थी । ठीक ऐसे अवसर पर यदि कोई सिपाही आकर जनरल और सेना से कहे कि हमारे उद्देश्य का निर्णय फिर से होना चाहिए तो लड़ाई की सारी रचना न बिगड़ जाएगी। लेकिन उनकी इस दलील ने असर किया। वह थी कि सबसे पहले तो हम शक्ति संग्रह करें। सबसे पहले हम यह देख लें कि हम कितने पानी में हैं ? हमें ऐसे समुद्र में न कूद पड़ना चाहिए जिसकी गहराई का पता न हो और हसरत मोहानी साहब का यह प्रस्ताव हमें अथाह समुद्र में ले जा रहा है। यह दलील लाजवाब थी। कोई जनरल अपनी सेना को इतनी गहराई में नहीं ले जा सकता जिसका खुद उसी को पता नहीं हो। ( इसका अभिप्राय है कि गांधीजी एक ऐसे जनरल थे जिन्हें स्वयं को भी यह नहीं पता था कि स्वतंत्रता की मांग क्या होती है या पूर्ण स्वराज की मांग करना उनके बस की बात नहीं थी। ) उस समय तो यह प्रस्ताव गिर गया परंतु बाद में वह निरन्तर प्रस्तुत किया जाता रहा। अंत में 1929 में जाकर कांग्रेस ने उसे अपने ध्येय में सम्मिलित कर लिया।”
मौलाना हसरत मोहानी राष्ट्रवादी चिंतनधारा के व्यक्ति थे । उन्होंने गांधीजी की बात को चुनौती देते – देते 8 वर्ष में जाकर पूर्ण स्वाधीनता को कांग्रेस का ध्येय घोषित करवाया और जब इतिहास लिखा गया तो उनके इस राष्ट्रवादी कार्य को कहीं स्थान नहीं दिया गया । इस महत्वपूर्ण घटना का उल्लेख करने में लोगों ने सारा श्रेय गांधीजी और नेहरू को दे दिया । जबकि सच यह है कि इस कार्य के पीछे हसरत मोहानी साहब का संघर्ष कार्य कर रहा था । काश ! मोहानी साहब भी कोई मौलाना आजाद होते । यदि ऐसा होता तो भारत के वर्तमान इतिहास में उनका भी नाम होता। वास्तव में मौलाना मोहानी साहब को उनका उचित स्थान इतिहास मिलना चाहिए । कांग्रेस के मंच पर 8 बरस तक ऐसे विचार को लेकर वह संघर्ष करते रहे जिसे उस समय कांग्रेस अपने लिए सर्वथा असंभव मान रही थी । उसकी दृष्टि में यह कार्य क्रांतिकारियों का था, उसका नहीं । इसके उपरांत भी मौलाना हसरत मोहानी साहब अपने लक्ष्य में सफल हुए तो यह उनकी बड़ी सफलता थी।

उन्हीं के प्रयास से 26 जनवरी 1930 को कांग्रेस की ओर से भारत का पहला स्वाधीनता दिवस मनाया गया। उनके इस प्रयास को सुभाष चंद्र बोस जी जैसे क्रांतिकारी नेता का भरपूर समर्थन मिला। बाद में इसी विचार के साथ आकर पंडित जवाहरलाल नेहरु भी जुड़ गए । उन्होंने ही 26 जनवरी 1930 को कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में पंजाब में रावी नदी के तट पर पहला स्वाधीनता दिवस मनाया और झंडा फहराया। 26 जनवरी 1950 को यह झंडारोहण स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा किया गया।
मौलाना हसरत मोहानी साहब वही व्यक्ति थे जिन्होंने धारा 370 का उस समय भरपूर विरोध किया था और इसे राष्ट्रघाती बताया था परंतु गांधी – नेहरू की कांग्रेस ने उस समय भी उनकी उचित बात की ओर ध्यान नहीं दिया था।
( ‘अंधकार बीत गया और भारत जीत गया’ — नामक मेरी पुस्तक से)

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

Comment:Cancel reply

Exit mobile version