क्या वक्त से लुका-छिपी का खेल मुमकिन है?
रोशनी की चकाचौंध में भी इस लबादे का इस्तेमाल कर वक़्त को चकमा दिया जा सकता है.यह लबादा ऑप्टिकल फ़ाइबर में प्रकाश की रफ़्तार बदल सकता है.इसका मतलब है कि ‘वक़्त के गड्ढे’ में घटने वाली कोई भी घटना इस दौरान नहीं पकड़ी जा सकती.यानी प्रकाश की किरण को उसके रास्ते में ही अपने हिसाब से बदल पाना मुमकिन हो गया है.’नेचर’ पत्रिका में छपा यह शोध पिछले साल बने अदृश्य होने वाले लबादे के आगे का काम है.वो लबादा समय के महज़ कुछ हिस्सों को ही छिपाने की ताक़त रखता था.
छिपा हुआ डेटा
मौजूदा शोध दूसरे ‘अदृश्य लबादों’ से इस मायने में अलग है कि इसके तहत किसी ख़ास चीज़ के मुक़ाबले एक ख़ास वक़्त में घटने वाली घटनाएं छिपाई जा सकती है.’परड्यू यूनिवर्सिटी ऑफ इंडियाना’ की टीम ने इसे अंजाम दिया और दिखाया कि किसी जगह लगातार आ रही प्रकाश की किरणों के एक हिस्से में कई ‘समय के गड्ढों’ को पैदा कर इसमें घट रही चीज़ें छिपाई जा सकती हैं.शोधकर्ता प्रकाश किरण के रास्ते में आने वाला क़रीब आधा डेटा अदृश्य बनाने में कामयाब रहे, जिसे पहले आराम से देखा जा सकता था.इस क्लोक या लबादे का मतलब है कि जब कोई चीज़ या घटना आंखों की पकड़ में न आ सके.यह लबादा प्रकाश और आवाज़ दोनों की फ्रीक्वेंसी पर काम करता है. मिसाल के लिए, लड़ाकू विमान दुश्मन के राडार की पकड़ में नहीं आ पाते.शोधकर्ता प्रोफेसर एंड्र्यू वाइनर ने बताया, “हम इलेक्ट्रिक सिग्नल से नियंत्रित होने वाले व्यावसायिक दूरसंचार के अंश के ज़रिए प्रकाश को आगे-पीछे फेंकने में कामयाब रहे. जब कोई ऑप्टिकल फ़ाइबर के ज़रिए हाई स्पीड डेटा भेजता है तो ज़्यादातर मामलों में यह एक या ज़ीरो सेकेंड (बायनरी कोड) के बराबर होता है.”
रोशनी की मुड़ी हुई किरण
बड़ी छलांग
नॉर्थ कैरॉलिना यूनिवर्सिटी में ऑप्टिकल फ़िज़िक्स के विशेषज्ञ ग्रेग बर ने समझाया कि हालांकि इसे टाइम क्लोक कहा जा रहा है पर असल में ये “समय का नहीं प्रकाश का अपने ढंग से इस्तेमाल है.”ग्रेग इस शोध में शामिल नहीं हैं पर उनका मानना है कि ये टाइम क्लोक की दिशा में एक बड़ी छलांग है.डॉ. ग्रेग के मुताबिक, “पहली बार उन्होंने एक सेकेंड के अरबवें हिस्से के बराबर घटनाएं अदृश्य करने की बात की गई है.”यहां वो समय का 46 फ़ीसदी हिस्सा छिपाने में कामयाब रहने की बात कर रहे हैं.इससे पता चलता है कि अब यह महज़ उत्सुकता नहीं बल्कि इसे प्रकाश संबंधी संचार और डेटा प्रोसेसिंग में इस्तेमाल किया जा सकता है.इम्पीरियल कॉलेज, लंदन के फ़िज़िसिस्ट ऑर्टविन हेस का कहना है कि ये शोध “अब तक ईजाद किए गए टाइम लेंस सिद्धांत का विस्तार” है.
ग़ैरज़रूरी संवाद पर नज़र
-साभार(बीबीसी)