विपक्ष कैसे तोड़ पाएगा प्रधानमंत्री मोदी का तिलिस्म
लिमटी खरे
देश पर आधी सदी से ज्यादा शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी को बीच बीच में कुछ विराम मिले हैं। 1977 में पहली बार मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री बनते ही कांग्रेस का शाही रथ रूक गया था। इसके उपरांत एक बार फिर कांग्रेस सत्ता में आई। 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह, 1990 में चंद्रशेखर, 1996 में एचडी देवगौड़ा, फिर अटल बिहारी वाजपेयी, 1997 में इंद्र कुमार गुजराल के बाद एक बार फिर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार पांच साल तक चली। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार का यह दूसरा कार्यकाल है। नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में जिस तरह के निर्णय केंद्र सरकार के द्वारा लिए जा रहे हैं उसे देखकर यही लग रहा है कि विपक्ष के पास अब नरेंद्र मोदी के तिलिस्म को तोड़ने का कोई रास्ता नहीं है। विपक्ष अगर इसी तरह बोथरी तलवार से वार करने का प्रहसन करता रहा तो आने वाले दिनों में नरेंद्र मोदी और भाजपा और अधिक ताकतवर बनकर उभर सकते हैं।
बतौर प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी के द्वारा पहली पारी में बहुत ज्यादा साहसिक निर्णय नहीं लिए गए। पहली पारी में नोटबंदी और जीएसटी पर ही केंद्र का ध्यान मुख्य रूप से केंद्रित दिखा। जीएसटी और नोटबंदी को लेकर जमकर शोर शराबा हुआ। लोग हलाकान हुए। वायापारियों की जान पर बन आई, पर केंद्र सरकार ने इसकी परवाह किए बिना ही अपना काम बदस्तूर जारी रखा। इससे यह बात साफ हो रही थी कि प्रधानमंत्री को विपक्ष के तेवरों और ताकत का अंदाजा था, और वे इससे कतई भी विचलित नहीं दिखे।
2014 से 2019 तक नरेद्र मोदी के द्वारा जिस तरह की कार्यप्रणाली को अपनाया गया, वह युवाओं के लिए लुभाने वाली कही जा सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसी भी विरोध, खिलाफ में होने वाली प्रतिक्रियाओं आदि पर जरा भी ध्यान न देते हुए अपना काम जारी रखा। इधर, विपक्ष के पास सशक्त नेतृत्व का अभाव साफ दिखता रहा। केंद्र सरकार के द्वारा जैसे ही जीएसटी लागू किया था उसी समय अगर विपक्ष के द्वारा व्यापारियों की पीड़ा को समझकर व्यापारियों को साध लिया जाता तो देश में जीएसटी के खिलाफ माहौल तैयार होने में समय नहीं लगता। विडम्बना ही कही जाएगी कि विपक्ष ने नोटबंदी और जीएसटी को लेकर केंद्र सरकार को घरने का प्रयास तो किया पर वह आक्रमता नही दिखी जिसकी उम्मीद की जा रही थी। समय बीतता गया और व्यापारियों ने जीएसटी को अंगीकार करने में ही भलाई समझी।
नरेंद्र मोदी के पास अमित शाह जैसे गृहमंत्री हैं। पहले कार्यकाल में बहुत ही कम मंत्री थे जो मीडिया से रूबरू हो पाते थे। इस तरह केंद्र के खिलाफ हो रहे हमलों में भी नरेद्र मोदी सरकार ने ज्यादा ध्यान देना मुनासिब नहीं समझा। विपक्ष के द्वारा सदन में तो लगभग मौन ही रखा जाता, साथ ही जनता के बीच जाकर भी सरकार की नीतियों के बारे में ज्यादा खोट निकालने के बजाए सीधे सीधे नरेंद्र मोदी पर ही प्रहार किए जाते रहे। जनता भी इस तरह की कार्यप्रणाली से मानो आज़िज आ चुकी थी और जनता के द्वारा भी विपक्ष के रूदन को विधवा प्रलाप ही समझकर नजर अंदाज ही किया जाता रहा।
नरेंद्र मोदी का आत्म विश्वास देखते ही बन रहा है। विधान सभा चुनावों में लगातार पराजयों के बाद भी वे निश्चिंत देख रहे हैं। देश को कांग्रेस मुक्त बनाने की बात नरेद्र मोदी कई दफा कह भी चुके हैं। कांग्रेस के मंत्रियों के द्वारा किए गए घपले, घोटालों के बारे मंें सरकार में रहने के बाद उन्हें सब कुछ पता चल ही चुका होगा। इन सारे कागजों को भजपा अगर अस्त्र के रूप में प्रयोग कर भी रही हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यप्रणाली का अगर आंकलन किया जाए तो यह बात भी साफ होती है कि नरेंद्र मोदी अपने खिलाफ होने वाली आलोचनात्मक, नकारात्मक प्रतिक्रियाओं से विचलित और घबराते भी नहीं दिखे। केंद्र सरकार के द्वारा दुनिया के चौधरी अमरीका से तेल का अयात बढ़ाकर दोगुना कर दिया है। इस तरह तेल के मामले में खाड़ी देशों पर आत्मनिर्भरता को नरेंद्र मोदी के द्वारा कम करने का प्रयास किया गया है।
इस सबके साथ ही साथ नरेंद्र मोदी के द्वारा भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के वर्चस्व को चुनौति देते हुए सेन्य मामलों में एक नए विभाग का सृजन कर सेवानिवृत हुए सेना प्रमुख विपिन रावत को चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ बनाया है। यह सब करना बहुत आसान नहीं था, क्योंकि आईएएस लॉबी के आगे सभी घुटने टेकते नजर आते हैं। उन्होंने नौकरशाहों की मंशा के विपरीत जाकर यह कदम उठाया है। हलांकि इस कदम से जनता को सीधे सीधे लेना देना नहीं है, इसलिए यह विषय सोशल मीडिया पर ज्यादा चर्चाओं में नहीं है।
केंद्र सरकार के कदमों को देखते हुए यह माना जा सकता है कि नरेंद्र मोदी की निर्भरता नौकरशाहों पर कम है। उनके द्वारा जिस तरह से रेल्वे बोर्ड को कमजोर करते हुए भारत की रेल सेवाओं में निजि भागीदारी को स्थान दिया है, उसको लेकर चर्चाएं जरूर हैं, पर तमाम विरोधों, आलोचनाओं के बाद भी नरेंद्र मोदी ने इसे न केवल लागू किया है, वरन इसके लिए निजि सेवा प्रदाता की जवाबदेही भी तय की है। अगर रेलगाड़ी विलंब से चलेगी तो इसका हर्जाना सेवा प्रदाता के द्वारा यात्रियों को देना पड़ेगा।
केंद्र सरकार के 85 विभाग हैं, जिसमें से प्रमुख विभागों की तादाद 75 के लगभग है। इसमें से नरेंद्र मोदी का सबसे प्रिय मंत्रालय पर्यटन माना जा सकता है। वे कई बार इस बात को कह चुके हैं कि लोग साल में कम से कम 15 पर्यटन स्थलों का भ्रमण करें इस तरह की परिस्थितियां निर्मित की जानी चाहिए। गुजरात में सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा और दिल्ली में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक इसका एक नायाब उदहारण माना जा सकता है। केंद्र में भले ही सबसे ताकतवर मंत्री के रूप में अमित शाह उभर रहे हों पर पर्यटन विभाग का जिम्मा संभाल रहे प्रहलाद सिंह पटेल को नरेंद्र मोदी का सबसे प्रिय मंत्री माना जा सकता है। प्रहलाद सिंह पटेल के द्वारा पर्यटन मंत्रालय को जिस तरीके से संभाला और संवारा जा रहा है उससे तो यही प्रतीत होता है कि वे नरेंद्र मोदी की मंशाओं और इशारों को बखूबी समझ चुके हैं।
नरेद्र मोदी बहुत ही सधे हुए कदमों से आगे बढ़ते दिख रहे हैं। 2014 से 2019 तक के उनके कार्यकाल मे विपक्ष हमलावर तो रहा, पर धार बहुत ही बोथरी रही। यही कारण था कि 2019 के चुनावों में विपक्ष के द्वारा कोई करिश्मा नहीं दिखाया जा सका। नरेंद्र मोदी ने 2019 के चुनावों में 303 सीटों पर परचम लहराकर यह साबित कर दिया कि विपक्ष के हमलावर होने के बाद भी जनादेश उनके साथ थांनरेंद्र मोदी के द्वारा आम जनता के मानस को समझते हुए जिस तरह से एक के बाद एक फैसले लिए जा रहे हैं, उससे तो यही प्रतीत हो रहा है कि कांग्रेस और विपक्ष के द्वारा अगर समय रहते अपनी रणनीति और कार्यशैली नहीं बदली तो आने वाले दिनों में मोदी अजेय हो जाएंगे और उसके बाद विपक्षी दलों को नए सिरे से नई इबारत लिखने पर मजबूर होना पड़ सकता है। इसके लिए कांग्रेस को अपने सलाहकारों को बदलने की आवश्कयता है। अगर अभी भी कांग्रेस नहीं चेती तो आने वाला समय उसके लिए भी कटीली राह भरा हो सकता है।