कुछ ही समय पहले अग्नि सीरीज की दो अलग-अलग मिसाइलों और ब्रह्मोस मिसाइल के सफल परीक्षण के बाद रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा गत माह पूर्ण स्वदेशी तकनीक से निर्मित ‘पिनाक’ मिसाइल का सफल परीक्षण किया गया। दोनों परीक्षणों में पिनाक की कम दूरी पर मारक क्षमता तथा आयुध कार्यप्रणाली जैसे उद्देश्यों की पड़ताल की गई। हर्ष का विषय यह है कि दोनों ही परीक्षण सफल रहे और उसी के साथ भारतीय सेना की युद्धक क्षमता और बढ़ गई। उल्लेखनीय है कि डीआरडीओ द्वारा ‘पिनाक एमके-2 रॉकेट’ को ही पिनाक मिसाइल के रूप में परिष्कृत गया है, जिसकी सटीकता और रेंज में बढ़ोतरी करने के लिए उसमें नौसंचालन, नियंत्रण तथा दिशा-प्रणाली जोड़ी गई हैं। इस मिसाइल की नौसंचालन प्रणाली को भारतीय क्षेत्रीय नौसंचालन उपग्रह प्रणाली से भी मदद मिलती है और इसकी ट्रैकिंग रडार, टेलीमेट्री तथा इलैक्ट्रो-ऑप्टिकल टारगेटिंग प्रणाली से की जाती है। यह मिसाइल दुश्मन की उन मिसाइलों को निशाना बनाने में भी कारगर साबित होगी, जो नजदीक आकर अचानक गायब हो जाती हैं। यह लंबी दूरी पर अपने छोटे से छोटे टारगेट को भी हिट कर सकती है।
पिनाक मिसाइल के पहले परीक्षण में 75 किलोमीटर दूर स्थित लक्ष्य पर एक पिनाक मिसाइल दागी गई जबकि दूसरे परीक्षण में 20 किलोमीटर की दूरी पर लक्ष्य को ध्वस्त करने के लिए दो मिसाइलों का प्रक्षेपण करते हुए इस मिसाइल की कम दूरी पर मारक क्षमता, आयुध कार्यप्रणाली, प्रक्षेपण वेग को परखा गया और लक्ष्य ध्वस्त करने में उच्च अचूकता प्राप्त कर ली गई। दूसरे परीक्षण का उद्देश्य कम दूरी तक हथियार प्रक्षेपण की पिनाक मिसाइल की क्षमता की जांच करना था और इसके लिए दो पिनाक मिसाइलों को 60 सैकेंड के अंतर पर छोड़ा गया। दोनों ही मिसाइलें 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लक्ष्य पर अचूक निशाना साधने में पूरी तरह सफल रही। पिनाक मिसाइल के उन्नत संस्करण को विकसित करने में आयुध अनुसंधान एवं विकास स्थापना (एआरडीईई), अनुसंधान केन्द्र इमारत (आरसीआई), रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला (डीआरडीएल), प्रूफ एवं प्रयोगात्मक संगठन (पीएक्सई) तथा उच्च उर्जा पदार्थ अनुसंधान प्रयोगशाला (एचईएमआरएल) ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पिनाक ऐसी आर्टिलरी मिसाइल प्रणाली है, जो पूरी सटीकता के साथ दुश्मन के इलाके में 75 किलोमीटर तक मार कर सकती है।
पूर्ण रूप से स्वदेशी तकनीक से निर्मित पिनाक मिसाइल ‘पिनाक गाइडेड रॉकेट लांच सिस्टम’ का अपग्रेड संस्करण है, जिसका उड़ीसा के समुद्री तट पर चांदीपुर की फायरिंग टेस्ट रेंज पर सफल परीक्षण किए जाने के बाद आने वाले दिनों में भारतीय सेना की मारक क्षमता और बढ़ जाएगी। सतह से हवा में मार करने वाली यह मिसाइल मैदानी तथा अर्द्ध-रेगिस्तानी इलाकों में सैन्य टुकडि़यों की रक्षा में महत्वपूर्ण सहायता प्रदान देगी। इस मल्टी बैरल रॉकेट लांच सिस्टम के फायर से लक्ष्य भेदने तक पूरे मार्ग पर रडार, इलैक्ट्रो ऑप्टिकल टारगेटिंग सिस्टम, टेलीमेट्री सिस्टम इत्यादि विभिन्न रेंज सिस्टमों के जरिये परीक्षण की निगरानी की गई और दिन के समय किए गए परीक्षणों के दौरान इस वेपन सिस्टम ने लक्ष्य को भेदने में उच्चतम सटीकता का प्रदर्शन किया। पहलेे दिन के परीक्षण में इस मिसाइल से 44 सैकेंड के भीतर कुल 12 गाइडेड रॉकेट दागे गए और सभी निशाने पूरी तरह अचूक रहे। पिछले साल मार्च महीने में इस मिसाइल के राजस्थान की पोखरण टेस्ट रेंज में भी तीन सफल परीक्षण किए गए थे और दिसम्बर माह में लगातार दो दिन तक किए गए परीक्षणों की सफलता को सेना की आर्टिलरी क्षमता बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
भारत में वर्ष 1986 में पिनाक वैपन सिस्टम का निर्माण शुरू किया गया था और इसके प्रारम्भिक प्रारूप का विकास डीआरडीओ द्वारा वर्ष 1995 में किया गया था। शुरूआती दौर में इसे दुश्मन की सेना के एयर टर्मिनल (वायुयान पत्तन) तथा संचार केन्द्र को ध्वस्त करने हेतु विकसित किया गया था, जिसे बाद के वर्षों में बहुउद्देशीय रॉकेट प्रणाली के रूप में विकसित किया गया और अब इसी रॉकेट प्रणाली को मिसाइल के रूप में विकसित किया गया है। वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने पिनाक एमके-1 संस्करण का इस्तेमाल किया था, जिसने पहाड़ की चोटियों पर तैनात पाकिस्तानी चौकियों को बड़ी सटीकता के साथ निशाना बनाते हुए उन्हें तबाह किया था। पिनाक के जरिये बेहद सटीक तरीके से दुश्मन के बंकर तबाह किए जाने के कारण पाकिस्तानी सैनिक उन बंकरों से बाहर निकलने को विवश हुए थे, जिसके बाद भारतीय सेना ने उन्हें भून डाला था। कारगिल युद्ध में पिनाक की उस बड़ी सफलता के बाद इसे बड़ी संख्या में भारतीय सेना में शामिल कर दिया गया है।
हाल ही में पिनाक वैपन सिस्टम के जिस उन्नत संस्करण ‘पिनाक एमके-2’ का सफल परीक्षण किया गया है, उसमें विशिष्ट गाइडेंस किट लगाई गई है, जो एडवांस नेविगेशन तथा कंट्रोल सिस्टम से लैस है। इसका नेविगेशन ‘इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम’ (आईआरएनएसएस) के जरिये किया जाता है, जिसे ‘नाविक’ भी कहा जाना है। नाविक से लैस होने के बाद पिनाक की सटीक मारक क्षमता में वृद्धि हो गई है। दरअसल पिनाक के पुराने संस्करण में गाइडलाइन सिस्टम नहीं था और अब इसे एडवांस गाइडलाइन सिस्टम से लैस किए जाने के बाद इसके जरिये भारतीय सेना दुश्मन के किसी भी तरह के हमले का जवाब देने के में सक्षम हो गई है। पिनाक के पुराने वर्जन में किए गए इन बदलावों के बाद पिनाका की मारक दूरी, क्षमता और लक्ष्य को भेदने की सटीकता काफी बढ़ गई है।
214 मिलीमीटर बैरल वाले 12 रॉकेट से लैस पिनाक वैपन सिस्टम के पहला संस्करण जहां अपने लक्ष्य पर 40 किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से हमला करने में सक्षम था, वहीं नया संस्करण लक्ष्य पर 80 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से हमला करने में सक्षम है। प्रत्येक पिनाक मिसाइल सिस्टम 12 रॉकेटों से लैस होता है और हर रॉकेट पर 250 किलोग्राम का वारहेड लदा होता है। पिनाक एमके-1 संस्करण की मारक दूरी 40 किलोमीटर थी जबकि पिनाक एमके-2 की शुरूआती मारक दूरी को बढ़ाकर 65 किलोमीटर किया गया और मई 2018 में इसे बढ़ाकर 70 किलोमीटर कर दिया गया। अब इसे एडवांस नेविगेशन तथा कंट्रोल सिस्टम से लैस करने के बाद इसकी मारक दूरी 75 किलोमीटर हो गई है और अब भारतीय सेना हमारी सीमा से ही पिनाक मिसाइलों के जरिये हमला कर पाकिस्तान के लाहौर को पूरी तरह बर्बाद करने में सक्षम हो गई है। डीआरडीओ द्वारा 120 किलोमीटर मारक दूरी वाले ‘पिनाक एमके-3’ का विकास भी जारी है।
बहरहाल पिनाक के पुराने संस्करण को अपग्रेड किए जाने के बाद यह पहले के मुकाबले और भी ज्यादा धारदार हो गई है। सिर्फ 44 सैकेंड में 12 मिसाइलें अर्थात् 4 सैकेंड से भी कम समय में एक मिसाइल दागने में सक्षम पिनाक मिसाइल सिस्टम दुश्मन के लिए इतना खतरनाक है कि यह दुश्मन को संभलने का मौका दिए बगैर उस पर गाइडेड मिसाइलों की बौछार करते हुए उसे तबाह कर देता है। पिनाक की सबसे बड़ी खासियत यह है कि टाटा ट्रक पर स्थापित होने के चलते इसे बड़ी आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता है और इसकी यही मोबिलिटी इसे बेहद अचूक और दुश्मन के लिए मारक बना देती है।
मुख्य संपादक, उगता भारत