कल के एक दैनिक समाचार पत्र की प्रथम पृष्ठ की लीड न्यूज़ को मैं पढ़ रहा था । राजनाथ सिंह का यह वक्तव्य उस समाचार का हेडिंग बनाया गया था कि भाजपा धर्म की राजनीति नहीं करती।
देश के एक ऐसे बड़े नेता जो पूर्व में गृह मंत्री भी रह चुके हैं और देश की सबसे बड़ी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं , साथ ही वर्तमान में देश के रक्षा मंत्री भी हैं , के इस वक्तव्य को पढ़कर बड़ा कष्ट हुआ । लगता है धर्मनिरपेक्ष गैंग की भांति भाजपा ने भी धर्म को एक अफीम समझ लिया है। जबकि धर्म अफीम न होकर एक सोमरस है । एक प्रेम रस है जो जितना पिया जाए उतना ही आनंद देता है । धर्म तोड़ने की वस्तु नहीं है। यह जोड़ने की वस्तु है , जबकि मजहब या संप्रदाय या रिलीजन तोड़ने की वस्तु है । मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना – – – – मेरा मानना है कि मजहब ही तो सिखाता है आपस में बैर रखना । धर्म वह है जो हमारे आंतरिक जगत को एक दूसरे के साथ जोड़ने का प्रशंसनीय कार्य करता है । यह नीति , न्याय और नैतिकता पर आधारित होता है ।
मजहब अनीति , अन्याय और अनैतिकता पर आधारित होता है । मजहब एक ऐसा भूत है जो जिस पर चढ़ जाता है वह मजहबी उन्मादी हो जाता है । मजहबपरस्ती या सांप्रदायिकता उसके सिर चढ़कर बोलती है और वह नरसंहार करता है , दूसरों की संपत्ति लूटता है , महिलाओं की अस्मिता लूटता है और समाज में अस्त व्यस्तता अथवा अराजकता को प्रोत्साहित करता है । वह आतंकवादी बनता है। जबकि धर्म प्रेमी व्यक्ति मानवतावादी बनता है । सबके काम आता है और उसका लक्ष्य संसार में शांति व्यवस्था बनाए रखना होता है ।
भाजपा को धर्म की इसी परिभाषा को स्थापित करके डंके की चोट कहना चाहिए कि हम धर्म की राजनीति करते हैं । मानवतावाद , नीति , न्याय , नैतिकता इन सब के प्रचार प्रसार के लिए हम समर्पित हैं । गलत डंके की चोट यह भी कहना चाहिए कि हमारा हिंदुत्व या वैदिक धर्म इन्हीं मानवोचित गुणों के लिए समर्पित है और इन्हीं के लिए प्राचीन काल से कार्य करता आया है , इसलिए हम यह बड़ी शान के साथ कहते हैं कि हम धर्म की राजनीति करते हैं और करते रहेंगे।
अधर्म की पक्षपाती , अन्यायपरक , अनीतिपरक और तुष्टिकरण को प्रोत्साहित करने वाली राजनीति को भुगतते हुए इस देश को सैकड़ों वर्ष व्यतीत हो गए। तुर्कों , मुगलों और ब्रिटिश सत्ताधारियों के बाद कांग्रेसी शासनकाल में इस देश ने इसी प्रकार की अनीतिपरक राजनीति को होते देखा है । अब अपेक्षा की जाती है कि नीतिपरक , न्यायसंगत और धर्म संगत निर्णय लेने और देने वाली सरकार देश के पास है । यदि इसका रक्षा मंत्री भी यह कहता है कि हम धर्म की राजनीति नहीं करते तो वह दिन कब आएगा जब हमारे देश का शासक छाती तान कर यह कहेगा कि हम धर्म की राजनीति करते हैं और हमें इस बात पर गर्व है कि हम धर्म संगत निर्णय लेने को ही अपनी राजनीति का सर्वोपरि धर्म मानते हैं ।
राजनाथ सिंह जी ! अब वह समय आ चुका है जब आपको दोगली बातों से बचकर स्पष्ट बातों को कहना ही चाहिए ।
मित्रो ! आपका क्या विचार है ?
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत