सावरकर की रिहाई के कागजों पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था महात्मा गांधी ने : संदीप कालिया
नई दिल्ली । (अजय आर्य )अखिल भारत हिंदू महासभा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संदीप कालिया ने कहा है कि 1937 में हिंदू महासभा के नेता नरसिंह चिंतामणि केलकर ने पूना की एक सभा में महात्मा गांधी पर आरोप लगाया कि सावरकर की रिहाई के लिए तैयार किए गए प्रार्थना-पत्र पर महात्मा गांधी ने हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया था. गांधीजी के एक सहयोगी शंकर राव देव ने इस बात की जानकारी और इस समाचार की अखबारी कतरन गांधीजी को भेजी. 20 जुलाई, 1937 को गांधीजी ने शंकरराव को जवाबी चिट्ठी में लिखा –
‘श्री सावरकर की रिहाई के बारे में जो स्मारक-पत्र तैयार किया गया था, तो मैंने उस दस्तखत करने से मना कर दिया था, क्योंकि जो लोग उसे लेकर मेरे पास आए थे, मैंने उन्हें बताया था कि यह सर्वथा अनावश्यक है, क्योंकि नए कानून के अमल में आने के बाद श्री सावरकर की रिहाई तो हो ही जाएगी चाहे मंत्री कोई भी हो. और वही हुआ है. सावरकर-बंधु कम से कम यह तो जानते ही हैं कि हममें चाहे कुछ सिद्धातों को लेकर जो भी मतभेद रहे हों, लेकिन मेरी कभी भी यह इच्छा नहीं हो सकती थी कि वे जेल में ही पड़े रहें. जब मैं यह कहूंगा कि मेरी ताकत में जो कुछ भी था, वह सब मैंने उनकी रिहाई के लिए अपने ढंग से किया तो शायद डॉ सावरकर भी मेरी बात का अनुमोदन करेंगे. और बैरिस्टर (चिंतामणि केलकर) को शायद याद होगा कि जब पहली बार हम लंदन में मिले थे तब हमारे संबंध कितने मधुर थे. और कैसे जब कोई आगे नहीं आ रहा था, तब मैंने उस सभा की अध्यक्षता की थी जो उनके सम्मान में लंदन में हुई थी.’
हिंदू महासभा नेता ने कहा कि गांधीजी ने प्रारंभ में रिहाई के लिए याचिका लिखने के लिए पहले तो सावरकर जी को प्रेरित किया और बाद में जब उस रिहाई पत्र पर हस्ताक्षर करने का समय आया तो हस्ताक्षर करने से वह मुकर गए । श्री कालिया ने कहा कि यह कांग्रेस का दोगला चरित्र है , जो उसका पीछा आज तक कर रहा है । दोगले चरित्र के कारण ही यह पार्टी लोगों में अपना विश्वास खो चुकी है । उन्होंने कहा कि यह अत्यंत दुर्भाग्य का विषय है कि कांग्रेस के वर्तमान नेता गांधीजी के इसी दोगले व्यवहार और दृष्टिकोण का अनुकरण कर रहे हैं और राष्ट्रवादी लोगों पर कीचड़ उछालने से बाज नहीं आ रहे हैं।
मुख्य संपादक, उगता भारत