देश के 71 वें गणतंत्र दिवस के समय देश की राजनीति में दलित मुस्लिम गठजोड़ के स्वर कुछ अधिक ही सुनने को
मिल रहे हैं । मुस्लिम दलित गठजोड़ के लिए मायावती ने लोकसभा चुनावों के समय ‘ जय भीम और जय मीम ‘ का नारा दिया था । यद्यपि उस समय उनका यह प्रयोग सफल नहीं हो पाया । वास्तव में भारत में भारतीयता को क्षत-विक्षत करने के दृष्टिकोण से ही राजनीतिक लोग लोगों को बांटने की ऐसी रणनीति और कार्य योजना पर चिंतन मंथन करते रहते हैं , जिससे देश की एकता और अखंडता को खतरा पैदा हो सकता है। मुस्लिम तुष्टीकरण की अपनी मंशा को प्रकट करते हुए बसपा प्रमुख मायावती ने अभी पिछले दिनों यह मांग भी कर दी है कि पाकिस्तान के पीड़ित मुसलमानों को भी नागरिकता संशोधन कानून के अंतर्गत भारत की नागरिकता प्रदान की जाए । उनका यह बयान भी दलित मुस्लिम गठजोड़ की उनके मस्तिष्क में चल रही कसरत का ही संकेत करता है।
दलित मुस्लिम गठजोड़ के लिए सबसे पहले प्रयासों को करने वाले व्यक्ति के रूप में हमें आजादी पूर्व एक नाम जोगेंद्र नाथ मंडल के रूप में मिलता है। जिन्होंने पूर्वी बंगाल में काम करते हुए एक लोकप्रिय दलित नेता के रूप में अपने आप को स्थापित किया था। वह अंबेडकर द्वारा स्थापित शेड्यूल कास्ट फेडरेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे थे । बाद में उन पर मुस्लिम प्रेम का इतना अधिक रंग चढ़ा कि वह मुस्लिम लीग में ही सम्मिलित हो गए । वहां जाकर वह मोहम्मद अली जिन्ना के बहुत निकट हो गए थे। स्वतंत्रता मिलने के उपरांत जब भारत का विभाजन हुआ तो वह संयुक्त पाकिस्तान के कानून मंत्री बनाए गए , परंतु कुछ समय उपरांत ही उन्हें अपनी गलती का आभास हो गया कि वह गलत पाले में आ बैठे हैं। उन्हें पता चल गया कि वहां पर दलितों पर अत्याचार कितने भयानक स्तर पर होने लगे थे ? श्री मंडल दलितों के साथ होने वाले अपमानजनक व्यवहार को देख नहीं पाए थे । यही कारण रहा कि मंत्री होकर भी उन्हें पाकिस्तान छोड़कर भारत लौटना पड़ा।
मानवीय स्वभाव के दृष्टिगत भी और राजनीतिक तकाजे के अंतर्गत भी यदि समाज के दो समुदाय निकटता बनाते हैं तो उनकी इस निकटता पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। पर जब ऐसी निकटता से किसी एक वर्ग के द्वारा दूसरे वर्ग को अपना शिकार बनाया जा रहा हो और उसका अंतिम लक्ष्य देश को फिर विभाजन की भयानक त्रासदी की ओर ले जाना हो तो ऐसे समूह , समुदाय , वर्ग या संप्रदाय के लोगों के दृष्टिकोण और उद्देश्य को समझने की आवश्यकता होती है कि अन्ततः इसका अंतिम परिणाम क्या होगा ?
भारत के हिंदू समाज को बांटने के उद्देश्य से हमारे इतिहास को इस प्रकार से लिखा गया है कि जैसे यहां पर दलितों पर हमेशा अत्याचार होते रहे हैं और एक वर्ग विशेष है जो देश को अपनी मानसिक गुलामी के अंतर्गत लाने के लिए कुख्यात रहा है। हमारे दलित भाइयों को यही समझाया जा रहा है कि यह कुख्यात वर्ग ही वास्तव में हिंदू है अर्थात हिंदू समाज ब्राह्मण व ठाकुर से मिलकर ही बनता है । ओबीसी दलित आदि सब इस समाज के अंग नहीं हैं । मानसिक पराधीनता के अंतर्गत एक षड्यंत्र रचते हुए इन्हें बलात हिंदू समाज के साथ जोड़ कर रखा जा रहा है । ऐसा समझाने वाले लोगों का अंतिम उद्देश्य हिंदू को छिन्न-भिन्न कर इस देश में अपना वर्चस्व स्थापित करना है।
जो हिंदू लोग इस भूल भुलैया में फंस रहे हैं , वह वास्तव में अपने भविष्य के प्रति सचेत नहीं हैं । यदि वह आज फंसेंगे तो आने वाले समय में इसके गंभीर परिणाम भी इन्हीं को भुगतने पड़ेंगे।
आवश्यकता इस प्रकार के गंभीर षड़यंत्रों से बचाव करने की है । बचाव का अभिप्राय यहां देश की सुरक्षा से है और देश की सुरक्षा का अभिप्राय ऐसा सामाजिक ताना-बाना बनाने की गंभीर योजना को क्रियान्वित करने से है जिससे हिंदू समाज के भीतर की बुराइयों पर हम विजय प्राप्त कर सकें । जो लोग दलितों को अलग दिखाकर या भारत का मूल समाज कहकर उन्हें अपने ही हिंदू या आर्य भाइयों के विरुद्ध भड़काने का काम कर रहे हैं उनकी पहचान करनी होगी । साथ ही यदि कहीं पर भी रूढ़िवादिता के कारण दलित भाइयों के साथ उपेक्षा का व्यवहार हो रहा है तो उस पर बहुत शीघ्रता से लेपन करना होगा अर्थात उसका समूलोच्छेदन करना होगा।
मायावती और भीम आर्मी के नेताओं की ही भाषा खराब नहीं है , असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेता भी भारत के हिंदू समाज को दुर्बल करते हुए अपने राजनीतिक सपनों को साकार करने का ताना-बाना बुन रहे हैं। इन सबके दृष्टिकोण को समझना होगा। उसके लिए यदि किसी प्रकार के कानून को भी लाने की आवश्यकता हो , जिससे इन लोगों की जुबान पर लगाम लग सके तो उसे भी केंद्र सरकार को लाना चाहिए।
‘ भारत तेरे टुकड़े होंगे ‘- कहने वाले ‘टुकड़े-टुकड़े गेंग ‘- के विषय में यह समझना होगा कि उन्हें पीछे से खाद पानी कौन दे रहा है ? – निश्चय ही जो लोग ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग ‘- को खाद पानी दे रहे हैं और जेएनयू जैसी संस्था पर अपना वर्चस्व स्थापित कर वहां से इसी विचारधारा के युवाओं को देश को सौंप रहे हैं , वह भारत के बहुत बड़े शत्रु हैं । शत्रुओं के षड़यंत्रों को भी अब सार्वजनिक करने का समय आ गया है । यदि इस पर हम चुप रहे तो आने वाले भारत के लिए हम बहुत बड़ा संकट खड़ा कर देंगे । थोड़ी सी असावधानी से ही हम अपने विनाश की कहानी रच लेंगे।
सारे विपक्ष ने इस समय मोदी विरोध को ही अपना सबसे पवित्र धर्म मान लिया है । अब वह समय बीते दिनों की बात हो गया है जब इंदिरा गांधी को अटल बिहारी वाजपेयी ने एक विशेष अवसर पर चंडी देवी कह दिया था ।ऐसा कहकर उन्होंने आदर्श विपक्ष की भूमिका का निर्वाह किया था । अब ऐसे आदर्श विपक्ष की भूमिका की संभावना नहीं है। अब वास्तव में विपक्ष निराशा , क्रोध और घृणा से भरे हुए आक्रोश के क्षेत्र में प्रवेश पा चुका है । उसने सब प्रकार से प्रधानमंत्री मोदी को हटाने के प्रयास करके देख लिए हैं , परंतु वह जितना ही मोदी को हटाने का प्रयास करता है , मोदी की जड़ें उतनी ही मजबूत होती जा रही हैं । जिससे विपक्ष में इस समय बौखलाहट और आक्रोश स्पष्ट दिखाई दे रहा है । अपनी बौखलाहट और आक्रोश के कारण ही विपक्ष के नेता अब असामाजिक और देशद्रोही ताकतों के साथ खुले रूप में मंचों को सांझा कर रहे हैं । मोदी विरोध से राष्ट्रविरोध तक जाने में इन्हें कोई संकोच नहीं हो रहा है । जिसे देश की जनता देख रही है और समय आने पर इन्हें इसका दंड भी देगी। कुछ लोगों ने प्रदेशों की सरकारों के बदलने को मोदी और उनकी सरकार के विरुद्ध देश में चल रही हवा के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया है । वास्तव में ऐसा नहीं है। केंद्र के लिए देश के लोग आज भी मोदी का ही साथ देते दिखाई दे रहे हैं । मोदी के साथ देश खड़ा है और यही उनकी सबसे बड़ी ताकत है । जहां तक कुछ प्रदेशों में भाजपा के सत्ता गंवाने की बात है तो प्रादेशिक चुनावों में जनता पूर्व में भी सामान्य रूप से ऐसा करती रही है कि किसी भी क्षेत्रीय दल को वह सत्ता दे देती है । जब राष्ट्रीय मुद्दों की बात आती है तो अधिकतर ऐसा देखा गया है कि जनता अपना परिपक्व निर्णय देते हुए सक्षम नेता को ही अपना देश सौंपती है । बीच में खंडित जनादेश लेने वाले कई प्रधानमंत्री आए परंतु मोदी के साथ जनता ऐसा नहीं करेगी।
वास्तव में यही वह स्थिति है जो हमारे वर्तमान नेताओं को समाज में जोड़-तोड़ और तोड़फोड़ के लिए प्रेरित कर रही है । अपनी इसी सोच से खिसियाए हुए कई नेता दलित मुस्लिम गठजोड़ के लिए सक्रिय दिखाई दे रहे हैं तो कई अपने राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए ऐसा कर रहे हैं। यद्यपि भारत की जनता अब जागरूक हो चुकी है और वह नहीं लगता कि इन जोड़-तोड़ और तोड़फोड़ करने वाले नेताओं के षड़यंत्रों को समझ नहीं पाई होगी। अब लोग देश के बारे में सोच रहे हैं और अपने अस्मितापरक चिंतन में अपना ध्यान लगा रहे हैं । लोग यह भी समझ रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने जिस दृढ़ता का परिचय देते हुए धारा 370 व 35 ए को हटाया , उसे केवल वही कर सकते थे । इसी प्रकार राम मंदिर निर्माण के लिए भी उन्होंने जिस सावधानी से मार्ग प्रशस्त किया है वह भी उनके लिए बहुत बड़ी उपलब्धि रहा है । कई लोगों को आशंका थी कि मोदी के आते ही हिंदू मुस्लिम दंगे भड़क जाएंगे और देश में बहुत बड़े स्तर पर खून खराबा होगा ।परंतु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। विपक्ष के नेता इस प्रतीक्षा में थे कि राम मंदिर के लिए जैसे ही सुप्रीम कोर्ट से आदेश मिलेगा वैसे ही देश में दंगे भड़क जाएंगे और उन पर वह अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक सकेंगे । वहां भी उन्हें निराशा हाथ लगी। तीन तलाक के मुद्दे पर भी प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी दृढ़ता का प्रदर्शन किया और यह एक बहुत ही शुभ संकेत रहा कि मुस्लिम समाज के भी बड़े वर्ग ने उनकी इस बात को स्वीकार किया कि मुस्लिम समाज के भीतर बहुत बड़े सुधारों की आवश्यकता है । मुस्लिम बहनों ने भी प्रधानमंत्री मोदी का साथ देने का चुपचाप निर्णय लिया । इससे भी विपक्ष के तोते उड़ गए हैं ।अब सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर उन्होंने जिन युवाओं को भड़काने का काम किया है ।
इन सारी परिस्थितियों में दलित मुस्लिम गठजोड़ की राजनीति करने वाले लोग गठजोड़ नहीं बल्कि एक ‘ठगजोड़’ बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं। इन ठगों के उद्देश्यों को समझकर जनता को सावधान रहना होगा । हमें कुछ वैसा ही मंत्र रटना होगा कि भेड़िया आएगा और भेड़ उठाकर ले जाएगा । समझने की आवश्यकता है कि भेड़ कौन है और भेड़िया कौन है ? समय अपने आप को देशभक्त सिद्ध करने का है और साथ ही देश के शत्रुओं को उनकी सही औकात बता देने का भी है।इस गणतंत्र दिवस पर हमें इसी प्रकार आत्ममंथन करना चाहिए।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत