सुदेश शर्मा भारतीय
एक बार एक महफिल सजी हुई थी और लोग आपस में हंसी-ठिठोली कर रहे थे। तभी वहाँ पर एक बुजुर्ग सज्जन आये और आते ही उन्होंने एक बड़ी गुदगुदाती हुई घटना सुनाई। सभी दिल खोल कर हँस पड़े और उनकी वाह-वाह करने लगे। अभी लोग शान्त हुये ही थे कि उन्होंने फिर से वही चुटकुला सुना दिया। कुछ लोग जिन्हें पहली बार में पूरी बात समझ नहीं आई थी अब वह भी खिलखिला कर हँस पड़े। लेकिन उन बुजुर्ग सज्जन ने तो कुछ देर बार फिर से वही चुटकुला सुना दिया। अब लोगों ने बस एक रूखी सी मुस्कुराहट से ही उनका साथ दिया। हद तो तब हुई जब उन्होंने फिर से वही जोक सुनाना चाहा। लोगों ने भी उकता कर कह ही दिया कि महाशय कोई नया जोक सुनाईये और नहीं कम से कम इस घिसी-पिटी कहानी को तो यहाँ से ले जाईये। लोगों की बात सुनकर वह बुजुर्ग सज्जन मुस्कुराते हुये कहने लगे, ”दोस्तों, जब आप एक ही घटना पर बार-बार हँस नहीं सकते तो जिन्दगी भर एक ही घटना पर बार-बार रोते क्यों रहते हैं, हाय-हाय क्यों करते रहते हैं? खुशी का मौका तो कुछ पल भी संभाल नहीं पाते और दुख वाली घटनाओं को जीवन भर दिल से लगा कर रखते हैं। आखिर आप चाहते क्या हैं, सुख या दुख? जो चाहते हैं उसे पकड़िये बाकी भुला दीजिये और जीवन का पूरा आनन्द लीजिये।”
अब यहाँ पर कोई कह सकता है कि जीवन में सुख है ही बहुत थोड़ा, ज्यादा तो दुख और कठिनाईयों से ही सामना होता है। एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार भी एक स्वस्थ युवा दिन में औसतन 17 बार हँसता है किन्तु आयु और रोगों के बढ़ने के साथ-साथ इसमें गिरावट आती जाती है। इसीलिये कहा जाता है कि हँसी तो बचपन में ही खुलकर नसीब होती है लेकिन इसकी सच्चाई तो कुछ और ही है। वस्तुत: हँसने और खुश होने का आपस में गहरा सम्बन्ध है और हम खुश कब होते हैं?
एक बच्चा खुश होता है कुछ नया सीख कर और उसके लिये दुनिया में सब कुछ नया ही है। इसीलिये बच्चा पत्तों के हिलने या अपने खड़े होने जैसी उन छोटी-छोटी बातों पर भी खुश हो लेता है जो एक वयस्क के लिये मायने भी नहीं रखतीं। वहीं एक किशोर खुश होता है उन बातों पर जो उसे बड़प्पन और महत्वपूर्ण होने का अहसास करवायें, इसीलिये किशोरों तथा युवाओं के जोक्स आमतौर पर खाने-पहनने, दूसरों की हँसी उड़ाने या फिर सेक्स-हिंसा जैसे सार्वजनिक रूप से प्रतिबन्धित विषयों पर केन्द्रित होते हैं। इसके अलावा दूसरों से मिलने-जुलने और अपने विस्तार (किसी भी स्तर पर) में तो सभी को आनन्द आता है जो प्राय: हास्य के रूप में प्रकट भी होता है। सामान्य रूप से आनन्द की अनुभूति होती है नयेपन में, विस्तार में, बड़प्पन में और तनावमुक्ति में। आयु बढ़ने के साथ-साथ हमारा सांसारिक ज्ञान तथा लोगों से जुड़ाव बढ़ता जाता है और आयु के साथ-साथ हमारा रहन-सहन भी विकसित होता ही है और परिवार में रहकर बड़प्पन भी आ जाता है। इन सब के साथ किसी न किसी अंश में तनाव भी बढ़ता ही है और इसीलिये हमारे लिये खुश होने के लिये बहुत कम विषय और अवसर रह जाते हैं। लेकिन इसीलिये यह भी जरूरी हो जाता है कि हम अधिक हँसने की आदत डालें ताकि इसी बहाने खुशी के कुछ हर्मोन्स हमारे शरीर में बनते रहें। यूनीवर्सिटी ऑफ मैरीलैन्ड मेडिकल सेन्टर के अनुसार हँसना भी एक प्रकार का व्यायाम ही है। जब हम हँसते हैं तो न केवल चेहरे की 15 पेशियों की कसरत होती है बल्कि पेट-छाती-पीठ, हाथ-पैर आदि शरीर के अनेक अंगों का स्वाभाविक व्यायाम होता है और फेफड़े अधिक खुलते हैं जिससे अधिक श्वास गहराई तक भरा जाता है। रक्तचाप कम होता है और हृदय की नाड़ियाँ सुदृढ़ होती हैं जिससे हृदय में अधिक रक्त का प्रवाह होता है और अधिक ऑक्सीजन रक्त में मिलती है। रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ जाती है। अवसाद तथा नकारात्मक भावना पैदा करने वाले हार्मोन्स की रोकथाम होती है। तन-मन का सारा तनाव और कसाव दूर होता है तथा शरीर में पोषक रसों का स्राव होने लगता है। शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता ही नहीं आत्मविश्वास की भी वृद्धि होती है। एक मनोवैज्ञानिक सर्वेक्षण में पाया गया कि खुशदिल लोग कठिन परिस्थितियों का आराम से सामना कर सकते हैं और उन्हें रोग भी कम होते हैं। प्राय: देखा गया है कि दिल के रोगी आम लोगों की अपेक्षा 40प्रतिशत कम हँसते हैं या ऐसा कह लें कि जो लोग कम हँसते हैं उन्हें ही दिल का रोग, पक्षाघात, गठिया तथा अल्सर जैसे रोग अधिक होते हैं। पिछले दिनों शब्द सुरति संगम आश्रम, पंजाब में एक विशेष शरीर सुधार (Body Shaping) शिविर लगाया गया। इसमें आहार संयम तथा क्रिया योग के अभ्यास के साथ-साथ हास्य गोष्ठी भी रखी गयी और इससे सभी लोगों को बड़े ही अच्छे परिणाम प्राप्त हुये। दस दिनों के इस शिविर में न केवल अनेक लोगों का 5 से 8 किलो भार घट गया बल्कि श्वास, दिल, मधुमेह, अनिद्रा तथा जोड़ों के दर्द जैसे अनेक रोगों में आराम भी आ गया। जिन लोगों ने गुरु जी द्वारा आविष्कृत ‘सिद्धामृत सूर्य क्रिया योग’ का अभ्यास किया है वह जानते ही हैं कि इस साधना में भी हास्य का पूरा योग रखा जाता है।
दरअसल शरीर ही नहीं मन के साथ भी हँसने का बड़ा गहरा सम्बन्ध है। कभी भी आप हँसते हुये किसी पर गुस्सा नहीं कर सकते, किसी को गाली नहीं दे सकते। हँसते हुये यदि भोजन अथवा दवा आदि का भी सेवन किया जाये तो वह गहरे अन्दर तक अपना प्रभाव छोड़ जाती है। कई प्रयोगों में यह देखा गया कि जिन लोगों को किसी विशेष वस्तु (नीम-करेला या अन्य कोई एलर्जिक वस्तु) का सेवन करने से उल्टी आ जाया करती थी, उन्हें जब हँसते-हँसाते हुये वही वस्तुयें दी गयीं तो वह आराम से न केवल उन्हें खा गये बल्कि पचा भी गये। हँसने से मस्तिष्क के भीतर कुछ विशेष हिस्से इस प्रकार क्रियाशील हो जाते हैं जो हमें सुख और आराम का अनुभव करवाते हैं और इतना ही नहीं किसी को हँसता देखकर हमारे दिमाग की उन ग्रन्थियाँ में भी हलचल शुरू हो जाती है, इसीलिये देखा गया है कि हँसी संक्रामक होती है। कुल मिलाकर अगर यह कहा जाये कि हँसी एक दवा ही नहीं अमृत के समान है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
इसलिये जब भी जहाँ भी मौका मिले हँसने से चूकियेगा नहीं लेकिन याद रहे, कभी किसी की मजबूरी या कमजोरी पर नहीं हँसियेगा। वह मौका तो उसे हँसाने का है उस पर हँसने का नहीं। किसी जमाने में एक शायर ने कहा था- ”मेरी दुनिया में ग़म गर इतने थे, दिल भी या रब कई दिये होते।” लेकिन आजकल के जमाने में तो यही कहना उचित होगा कि ”मेरी दुनिया में ग़म गर इतने थे, हँसी के क्लब भी या रब कई दिये होते।”