15 जनवरी को नहीं 22 दिसंबर को होती है मकर संक्रांति
आज हम आपको आर्य जगत के सुप्रसिद्ध विद्वान आचार्य दार्शनेय लोकेश जी के एक तार्किक और तथ्यात्मक विश्लेषण से अवगत कराते हैं। जिसके अनुसार यह सिद्ध होता है कि मकर संक्रांति वास्तव में 14 या 15 जनवरी को नहीं बल्कि 22 दिसंबर को प्रत्येक वर्ष आती है। उसी दिन हमें यह पर्व मनाना भी चाहिए ।
आचार्य श्री के साथ पिछले दिनों मेरी विशेष बातचीत हुई । जिसमें उन्होंने प्रमाणों के आधार पर यह सिद्ध किया कि जब हम उत्तरायण काल को 22 दिसंबर से होना मानते हैं (जिसे आज का विज्ञान भी स्वीकार कर चुका है ) तो मकर संक्रांति का काल भी उसी समय आता है । उसी समय सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है । उन्होंने बताया कि जनवरी की किसी भी तारीख में मकर संक्रांति नहीं आ सकती।
वह कहते हैं कि यह एक वैश्विक घटना है। जिसे हम गणित , ज्योतिष और अपने शास्त्रों के माध्यम से सिद्ध कर सकते हैं । आचार्य श्री ने ‘ पंचसिद्धांतिका ‘ का हवाला देते हुए कहा कि वहां पर स्पष्ट लिखा है कि जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करें उसी समय सूर्य का उत्तरायण काल आरंभ होता है और सूर्य के उत्तरायण काल में प्रवेश करते समय ही मकर संक्रांति आती है ।यह वैश्विक घटना 21 या 22 दिसंबर को होती है ।
आचार्य श्री का कहना है कि 1561 में स्वामी नित्यानंद जैसे विद्वान ने भी सिद्धांत ग्रंथ देकर यह स्पष्ट किया कि मकर संक्रांति का पर्व सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश करते समय ही आता है ।इसी प्रकार भारतीय ज्योतिष के लेखक बालशंकर दीक्षित ने भी इसी मत की पुष्टि की है । जबकि संपूर्णानंद संस्कृत महाविद्यालय के सुप्रसिद्ध विद्वान केरादत्त जोशी ने भी वेद और अन्य शास्त्रों के द्वारा यह सिद्ध किया है कि सूर्य के उत्तरायण काल में प्रवेश करते समय ही मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। आचार्य श्री ने हमें यह भी बताया कि विष्णु पुराण और सूर्य सिद्धांत में भी इसी मत की पुष्टि की गई है।
इसके अतिरिक्त उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि 1949 में द्वारिका पीठाधीश्वर शंकराचार्य जी के द्वारा यह मठादेश निकाला गया था कि प्रचलित पंचांग वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गलत हैं । इनके आधार पर हमारे त्योहारों की स्थिति भी गलत बन चुकी है। अतः इनका ठीक किया जाना आवश्यक है।
इस सब के उपरांत भी हम भारतवासी गलत ढंग से अपने मकर संक्रांति के पर्व को मनाते चले आ रहे हैं। हम यह भी ध्यान नहीं करते कि भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु के संबंध में यह स्पष्ट किया था कि वह उस समय अपने प्राण त्यागेंगे जब सूर्य उत्तरायण में प्रवेश करेगा । स्पष्ट है कि यह घटना 22 दिसंबर को होनी थी तो वह मकर संक्रांति तक क्यों प्रतीक्षा करते रहे ? यह तो ठीक है कि उन्होंने मकर संक्रांति को प्राण त्यागे , परंतु यह कहां का न्याय है कि एक वैज्ञानिक घटना से जुड़ी सच्चाई को हम स्वीकार नहीं कर रहे हैं , अर्थात जो घटना 22 दिसंबर को हो गई उसे 14 जनवरी से लाकर जोड़ने का अतार्किक और अवैज्ञानिक प्रयास कर रहे हैं । निश्चित रूप से अब इस गलती को सुधारने का समय आ गया है । जिसके लिए आचार्य लोकेश जी जैसे विद्वानों का हमें अभिनंदन करना चाहिए कि वह हमें गलती को ठीक करने का अवसर तार्किक दृष्टिकोण से उपलब्ध करा रहे हैं ।
आपका क्या मत है ? मेरे मत से तो यह हमारे इतिहास की एक बहुत गलत व्याख्या है , जिसे ठीक किया ही जाना चाहिए।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
22 December ko surya dakshinayan hote huye makar rekha k upar se hai….
14 January ko Surya uttarayan me pravesh karte huye makar rekha pr hota hai…