नई दिल्ली । (विशेष संवाददाता ) पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की विधानसभा की 70 में से 67 सीटें जीतकर सबको आश्चर्य में डाल दिया था। इस बार बीजेपी के हाथ से कई राज्य निकल चुके हैं। ऐसे में दिल्ली का विकेट भी केजरीवाल झटक जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। केजरीवाल की कार्यशैली पर यदि गौर किया जाए तो उन्होंने ऊंची उड़ान भरने के स्थान पर यथार्थ के धरातल पर चलने में अपना और अपनी पार्टी का भला देखना शुरू कर दिया है । अब वे पीएम बनने और हर एक प्रान्त में जाकर अपने प्रत्याशी खड़े कर वहां पर सरकार बनाने के सपने छोड़कर अपने आप को दिल्ली तक सीमित करके दिखा रहे हैं । दिल्ली के लोगों पर वह ध्यान दे रहे हैं । प्रदूषित जल को ठीक करने के लिए उन्होंने कुछ अच्छे कार्य भी किए हैं। जिनके चलते लोगों में उनके प्रति अब अधिक गुस्सा नहीं दिखाई दे रहा है।
हालांकि भाजपा के चुनाव प्रचारक के रूप में मोदी अपनी बड़ी लाइन अभी भी खींचे हुए हैं । निश्चित रूप से केजरीवाल के सामने मोदी का धुआंधार प्रचार एक बड़ी चुनौती होगा। लेकिन यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि यदि अपनी वर्तमान 67 सीटों में से 20 – 25 सीटें आम आदमी पार्टी गवा भी देती है तो भी उसके पास बहुमत लायक विधायक बच जाएंगे। ऐसी परिस्थितियों में एकदम नहीं कहा जा सकता कि अगला चुनाव भाजपा दिल्ली में जीत ही जाएगी। यदि सब कुछ सामान्य रहा और केजरीवाल फिर कोई बड़ा सब्जबाग दिल्ली के मतदाताओं को दिखाने में सफल हो गए तो जनता उन्हें फिर अगले 5 साल के लिए राजतिलक कर सकती है। वैसे भी कांग्रेस जैसी पार्टी दिल्ली में अपना कोई करतब दिखाने में अभी सफल होती नहीं दिख रही है। अगला चुनाव भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच ही होता दिखाई दे रहा है। के अतिरिक्त दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की छवि भी अपने आप में कुल मिलाकर ठीक बनी हुई है। उसका लाभ भी केजरीवाल और उनकी पार्टी को मिलता हुआ दिखाई दे रहा है
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