इस्लाम और शाकाहार: गाय और कुरान – ३
मुजफ्फर हुसैन
गतांक से आगे…
28 वर्ष की आयु में बगदाद की विख्यात इसलामी अकादमी अलगजाली के नेतृत्व में स्थापित की गयी। उनकी प्रसिद्घ पुस्तक ‘अहयाउल दीन’ (रिवाइवल ऑफ रिलीजियस साइंस) अत्यंत सम्मानित और विश्वसनीय पुस्तक मानी जाती है। उक्त पुस्तक के दूसरे भाग के पृष्ठ 23 पर 17 से 19 पंक्ति के बीच अपने ऐतिहासिक कथन में लिखता है-गाय का मांस मर्ज यानी बीमारी है, उसका दूध सफा शिफा यानी स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है और उसका घी दवा है।
गाय का संरक्षण केवल उसके दूध और घी के लिए ही करना पर्याप्त नही है, बल्कि गाय तो मनुष्य जाति की मां है। क्योंकि उसकी दी हुई हर चीज इनसानों के लिए वरदान है। एक मां अपने स्तन से जिस प्रकार अपने बच्चे को दूध पिलाती है उसी प्रकार गाय अपने आंचल से समस्त मानव जाति को दूध पिलाती है। वैज्ञानिक दृष्टिï से यह बात सिद्घ हो चुकी है कि गाय का दूध पीने से मस्तिष्क बलवान बनता है, जिससे उसकी स्मरणशक्ति अधिक मजबूत बनती है। जिससे मन और मस्तिष्क मजबूत बनेगा वह हमेशा अल्लाह को याद करेगा। इसलिए मनुष्य समाज के विकास के लिए गाय का दूध एक बुनियादी जरूरत है। ऐसे लाभदायी पशु को जो साक्षात माता है, उसे मारना दुनिया का सबसे बड़ा पाप है। जिन्हें मांस का ही भक्षण करना है तो वे किसी अन्य पशु को काटने की स्वतंत्रता रखते हैं। लेकिन इनसानियत की खातिर वे गाय जैसे उपयोगी पशु को काटने के बारे में अपना विचार त्याग दें। गाय का संरक्षण मनुष्य जाति का पवित्र कर्म ही नही बल्कि उसका धर्म भी है।
लंदन स्थित शाहजहां मसजिद के इमाम अल हाफिजत बीएस मसरी कहते हैं कि कुरान पशुओं के साथ क्रू रता की घोर विरोधी है। कुरान में कई जगह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि दुनिया में पशु और जीव जंतुओं के प्रति दया दिखाओ। उन्हें कष्ट पहुंचाने से दूर रहो। दुनिया की आबादी में एक तिहाई मुसलमान हैं, इसलिए यह उनका दायित्व है कि वे प्राणियों के प्रति दया दिखाएं और उन्हें बचाने के लिए विश्वव्यापी आंदोलन चलाएं। अब समय आ गया है कि जब दुनिया के मुसलमान कुरान में लिखित उन आदेशों का प्रचार प्रसार करें जो प्राणियों की रक्षा के लिए उन पर दायित्व समान हैं। इसलिए मसरी का कहना है कि उनकी इच्छा है कि वे दुनिया में प्राणियों की रक्षा हेतु इसलामी नियमों पर आधारित संगठन बनाएं और उसे आंदोलन के रूप में सारी दुनिया में प्रचारित करें। पशुओं के कल्याण की पहली शर्त यह है कि दुनिया में शाकाहार का प्रचार हो। इसलामी दुनिया में प्राणियों की रक्षा नामक पुस्तक में हल अफीज मसरी लिखते हैं कि धर्म के नाम पर मुसलमान जिस तरह से पशुओं का कत्लेआम करते हैं, यह धर्म के नाम पर बड़ा कलंक है। कुरान एवं अन्य इसलामी विद्वानों की अनेक पुस्तकों को उद्धृत करते हुए वे लिखते हैं कि न केवल जानवर को जान से मारना बल्कि उसे अन्य प्रकार की यातनाएं देना भी घोर पाप है। किसी पक्षी के पर काटना, उसे पिंजरे में बंद करना और सर्कस आदि खेल के लिए उन पशु पक्षियों का शोषण करना भी अमानवीय है। इसलाम ने इन सभी बातों से घृणा की है। उसके पैगंबर और खलीफाओं ने ऐसा करने से बार बार इनकार किया है। यहां तक कि वृक्षों को काटना भी महापाप है। कुदरत के कारखाने में जो है वह उसका है तुम कौन होते हैं जो उसका दुरूपयोग करके उसकी सृष्टिï को चुनौती देते हो?